इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी EVM को लेकर अब अमेरिका में भी सवाल उठने लगे हैं। अमेरिका की नेशनल इंटेलिजेंस डायरेक्टर तुलसी गबार्ड ने दावा किया है कि EVM को आसानी से हैक करके चुनाव नतीजों में हेरफेर की जा सकती है। तुलसी ने पूरे अमेरिका में बैलेट पेपर लागू करने की अपील की है ताकि वोटर्स चुनाव की पारदर्शिता पर भरोसा कर सकें। गबार्ड का यह बयान सोशल मीडिया में तेजी से फैल रहा है। अमेरिका में चुनाव सुरक्षा पर सवाल उठने के बाद भारत में चुनाव आयोग ने दावा किया है कि अब तक के मतदान में 5 करोड़ से अधिक वीवीपैट की पुष्टि हो चुकी है और उम्मीदवारों के सामने इन वीवीपैट पर्चियों का EVM से मिलान किया गया है। बता दें कि भारत में भी EVM को लेकर राजनीतिक बहसें होती हैं लेकिन दोनों देशों की मशीनें तकनीकी और कार्यप्रणाली के मामले में काफी अलग है। चुनाव आयोग के अधिकारी ने भारतीय EVM और अमेरिका समेत अन्य देशों की EVM में कई अतंर बताए है जिसे जान लेना बेहद जरूरी है।
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अमेरिका की वोटिंग मशीन
- अमेरिका की वोटिंग मशीन कई अलग-अलग प्राइवेट कंपनियां तैयार करती है जैसे- ES&S, Dominion, Hart आदि।
- अमेरिका के कुछ मशीनें इंटरनेट से जुड़ती हैं या नेटवर्क के जरिए डाटा ट्रांसफर करती हैं।
- इंटरनेट की कनेक्टविटी के कारण ऐसे वोटिंग मशीन पर साइबर हमले होने की संभावना अधिक है। यानी बेहद आसान तरीके से हैकिंग हो सकती है।
- VVPAT यानी वोटर स्लिप अमेरिका के सभी राज्यों में अनिवार्य नहीं है। कुछ जगह पेपर ट्रेल मिलता है।
- बात करें सेंट्रलाइजेशन की तो अमेरिका के हर राज्य, यहां तक की काउंटी का भी सिस्टम अलग है।
- अमेरिकी वोटिंग मशीन के अधिकत्तर सॉफ्टवेयर प्राइवेट कंपनियां द्वारा बनाए जाते हैं।
- टेस्टिंग और सेफगार्ड के मामले में अमेरिका में नियम राज्य स्तर अलग-अलग हैं।
- अमेरिकी वोटिंग मशीनों का ऑपरेटिंग सिस्टम Windows और Linux पर चलती है और प्रोग्रामिंग के बावजूद अमेरिकी मशीन में बदलाव संभव है।
भारत की EVM
- भारत की EVM का निर्माण भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) द्वारा किया जाता है।
- भारत की EVM बिल्कुल ऑफलाइन है। यानी इसमें कोई इंटरनेट कनेक्शन नहीं होता है।
- EVM ऑफलाइन होने के कारण हैकिंग लगभग असंभव है। वहीं, भारत में EVM के लिए कोई ऑपरेटिंग सिस्टम नहीं है।
- EVM में बटन दबाने के बाद पुष्टि के लिए पर्ची का प्रिंट आता है। यानी हर वोट का प्रिंटेड रसीद मिलता है।
- EVM में एक जैसी तकनीक है, यानी पूरे देश में एक जैसी ही मशीनें है और EVM में एक बार प्रोग्रामिंग के बाद उसे बदला नहीं जा सकता।
- EVM का सॉफ्टवेयर सरकारी संस्था द्वारा विकसित किया जाता है। इसका सॉफ्टवेयर प्राइवेट कंपनियां तैयार नहीं कर सकती।
- भारत में वोटिंग से पहले EVM मशीन की तीन स्तरों पर जांच होती है।
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अमेरिका में क्यों उठते हैं सवाल?
कुछ मशीनें इंटरनेट या नेटवर्क से जुड़ी होती हैं, जिससे हैकिंग का खतरा बढ़ता है। वहीं, निजी कंपनियां सॉफ्टवेयर बनाती हैं, जिनकी कोडिंग सार्वजनिक नहीं होती। इसके कारण पारदर्शिता पर सवाल उठाया जाता है। 2020 अमेरिकी चुनाव के बाद कई राज्यों में डोमिनियन कंपनी की मशीनों पर वोट में गड़बड़ी के आरोप लगे थे।
भारत में क्यों है EVM ज्यादा सुरक्षित?
भारत की EVM मशीनें पूरी तरह ऑफलाइन होती हैं, कोई वायरलेस या इंटरनेट सुविधा नहीं होती। इसके अलावा VVPAT से प्रत्येक वोटर पुष्टि कर सकता है कि उसका वोट सही पड़ा है कि नहीं। वहीं, चुनाव आयोग और तकनीकी विशेषज्ञों के कड़े मानकों पर मशीनें बनाई और चेक की जाती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के दावों को माना था कि EVM में हेराफेरी की संभावना नहीं है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने वीवीपैट को EVM के साथ अनिवार्य करने का आदेश दिया था ताकि भरोसा हो कि वोट सहीं गया है।