सूख रहा है कैस्पियन सागर, नंगी आखों से देखी गई 'सतह' की जमीन!
दुनिया
• AKTAU 29 Jun 2025, (अपडेटेड 29 Jun 2025, 7:06 PM IST)
इसी साल अप्रैल महीने में ब्रिटेन की नेचर पत्रिका में एक स्टडी छपी है। स्टडी में बताया गया है कि इस सदी के अंत तक कैस्पियन सागर का जलस्तर 18 मीटर (59 फीट) तक घट सकता है।

कैस्पियन सागर। Photo Credit- NASA
कैस्पियन सागर की दुनिया का सबसे बड़े खारे पानी का झील है। यह सागर 4 लाख स्क्वायर मील यानी कि 10 लाख स्क्वायर किलोमीटर में फैला है। कैस्पियन दुनिया का सबसे बड़ा जमीन से घिरा हुआ जल निकाय भी है। मगर, पिछले कुछ समय से कैस्पियन सागर की दुनियाभर में चर्चा है। दरअसल, ऐसी कई रिपोर्ट्स सामने आई हैं, जिसमें यह सामने आया है कि आने वाले समय में कैस्पियन सागर पूरी तरह से सूख जाएगा। अब इस खबर ने रूस, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ईरान और अजरबैजान को चिंता में डाल दिया है।
दरअसल, इसी साल अप्रैल महीने में ब्रिटेन की नेचर पत्रिका में एक स्टडी प्रकाशित हुई है। स्टडी के मुताबिक, इस सदी के अंत तक कैस्पियन सागर का जलस्तर 18 मीटर (59 फीट) तक घट सकता है और कैस्पियन सागर का जलस्तर 18 मीटर (59 फीट) तक घट सकता है जिसकी वजह से इसकी 34 प्रतिशत तक सतह कम हो सकती है।
इकोसिस्टम को भारी नुकसान होगा
स्टडी में कहा गया है कि अगर कैस्पियन सागर के पानी में पांच से 10 मीटर की भी कमी होती है तो, इसके इकोसिस्टम को भारी नुकसान पहुंचेगा। इकोसिस्टम प्रभावित होने से इसमें रहने वाली कैस्पियन सील और स्टर्जन मछलियां विलुप्त हो सकती हैं।
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कजाकिस्तान के इकोलॉजी मंत्रालय में काम करने वाले आदिलबेक कोज़ीबाकोव ने अल-जजीरा को बताया कि उन्हें और उन जैसे लोग, जो कैस्पियन के किनारे रहते हैं उन्हें सालों से पता है कि सागर लगातार सिकुड़ रहा है। कोज़ीबाकोव ने कहा, 'हमें यह जानने के लिए कोई अध्ययन करने की जरूरत नहीं है कि समुद्र सिकुड़ रहा है। यह नंगी आंखों से देखा जा सकता है।'
कैस्पियन मध्य गलियारे का हिस्सा
कैस्पियन सागर मध्य गलियारे का हिस्सा है। यह चीन से यूरोप तक का सबसे तेज जल मार्ग। साथ ही कैस्पियन तेल और नेचुरल गैस का एक प्रमुख स्रोत है। इन चर्चाओं के बीच कई लोगों को डर है कि कैस्पियन सागर का हश्र कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के बीच मौजूद अरल सागर जैसा हो सकता है, जो 1960 के दशक में सिकुड़ना शुरू हो गया था। दरअसल, अरल सागर में जिन नदियों से पानी आता था, उन नदियों का पानी रूस ने डैम बनाकर रोक लिया, ताकि कपास के खेतों की सिंचाई की जा सके।
मात्र 10 प्रतिशत ही बचा अरल सागर
वर्तमान में अरल सागर अपनी मूल सतह का केवल 10 प्रतिशत ही घेरते हुए है, यानि इसमें केवल 10 प्रतिशत हिस्सा ही पानी से घिरा हुआ है। इसकी वजह से अरल सागर में रहने वाले इकोसिस्टम और आसपास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ा है। अरल सागर, के सूखने की वजह जलवायु परिवर्तन है। मगर, कैस्पियन के सूखने की वजह जलवायु परिवर्तन नहीं है, बल्कि इंसान हैं।
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तेल कंपनियों कर रहीं प्रदूषित
यूरोप की सबसे बड़ी और सबसे लंबी वोल्गा नदी रूस से होकर कैस्पियन सागर में जाकर गिरती है। वोल्गा, कैस्पियन में 80-85 प्रतिशत पानी का सोर्स रही है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, रूस के जल प्रबंधन ने कैस्पियन को बहुत हद तक प्रभावित किया है।
बता दें कि पिछले कुछ सालों में रूस ने वोल्गा नदी पर बहुत सारे बांध और जलाशय बनाए हैं। रूस इसके पानी का इस्तेमाल खेती और उद्योगों के लिए करता है। नतीजतन, कैस्पियन सागर में वोल्गा से बहुत कम पानी बह रहा है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, तेल कंपनियां काफी समय से कैस्पियन के पर्यावरण को प्रदूषित कर रही हैं।
कजाकिस्तान निकाल रहा कैस्पियन से तेल
कजाकिस्तान के तीन प्रमुख तेल क्षेत्रों को विदेशी कंपनियां चलाती हैं। इस साल फरवरी में कैस्पियन सागर को बचाने के कुछ लोगों ने अभियान चलाया लेकिन इसका फिलहाल फायदा होता नहीं दिखाई देता है। कजाकिस्तान के तीनों तेल क्षेत्र सोवियत काल में खोजे गए थे। अब इन तेल क्षेत्रों को विदेशी कंपनियां संचालित करती हैं। लोग आरोप लगाते हैं कि विदेशी तेल और गैस कंपनियों के साथ राज्य द्वारा हस्ताक्षरित अनुबंधों को गुप्त रखा गया है, जिससे कैस्पियन सागर के आसपास के पर्यावरण पर उनके वास्तविक प्रभाव का निर्धारण करना असंभव हो जाता है।
मगर, इस बीच कैस्पियन सागर को बचाने की लड़ाई जी जान से शुरू हो चुकी है। कैस्पियन को बचाने की लड़ाई के बारे में कार्यकर्ता कोज़ीबाकोव ने कहा, 'हम इन मुद्दों को नीचे से उठाना चाहते हैं ताकि सरकार को दिखाया जा सके कि लोग चिंतित हैं। न केवल इकोलॉजिस्ट बल्कि आम नागरिक, जो यहां के निवासी हैं वो भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
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