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अफ्रीका क्यों बदलने जा रहा अपना मैप, अभी वाले में दिक्कत क्या है?

अफ्रीका महाद्वीप अपना मौजूदा मैप बदलना चाहता है। कई संगठन इसकी मांग उठा रहा हैं। अब अफ्रीकी यूनियन ने भी नक्शा बदलने का समर्थन किया है। जल्द ही सदस्य देशों के साथ बातचीत होगी।

Africa Continent Correct Map.

अफ्रीका महाद्वीप बदलेगा अपना नक्शा। (AI Generated Image)

अफ्रीकी यूनियन अब अफ्रीका महाद्वीप के नक्शे को बदलने की तैयारी में है। पिछले कई वर्षों से मैप को बदलने की मांग उठाई जा रही है। अफ्रीका के अलग-अलग हिस्सों में 'करेक्ट द मैप' अभियान चल रहा है। संगठनों ने 2018 के इक्वल अर्थ प्रोजेक्शन मैप को अपनाने की मांग की। यह मैप धरती का असली नक्शा प्रस्तुत करता है। अफ्रीकी यूनियन ने अंतरराष्ट्रीय संगठनों और सरकारों से मर्केटर का ग्लोबल मानचित्र के इस्तेमाल को रोकने की अपील की। 

 

यूनियन का मानना है कि मर्केटर का मैप सटीक नहीं है। मानचित्रकार जेरार्डस मर्केटर ने दुनिया का नक्शा शिपिंग के खातिर बनाया था। इस मानचित्र में उत्तरी अमेरिका और ग्रीनलैंड को बड़ा दिखाया गया है, जबकि अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका छोटे दिखते हैं। आज जानते हैं कि अफ्रीकी यूनियन को नक्शा बदलने की जरूरत क्यों पड़ रही है?

मर्केटर के नक्शे से अफ्रीका को क्या दिक्कत?

16वीं शताब्दी में जेरार्डस मर्केटर ने दुनिया का मैप तैयार किया था। यह मैप सटीक नहीं है। नक्शे में आप देखेंगे कि रूस का क्षेत्रफल अफ्रीका से बड़ा है। मगर वास्तविकता इसके उलट है। रूस का क्षेत्रफल लगभग 1.709 करोड़ वर्ग किलोमीटर है, जबकि अफ्रीका का क्षेत्रफल इससे दोगुना 3.037 करोड़ वर्ग किलोमीटर है। नक्शे में ग्रीनलैंड और उत्तर अमेरिका का क्षेत्रफल अफ्रीका से बड़ा दिखता है। वास्तविकता में दोनों भूभाग के लिहाज से अफ्रीका से छोटे हैं। 

पक्षपाती है मर्केटर का मैप

अफ्रीका महाद्वीप ग्रीनलैंड के आकार से करीब 14 गुना बड़ा है। इसी तरह अमेरिका, कनाडा और चीन को मिलने के बाद भी अफ्रीका का क्षेत्रफल इन देशों से विशाल है। मर्केटर के मैप को दुनियाभर में बड़ी संख्या में लोग पक्षपाती और साम्राज्यवादी विचारों को बढ़ावा देने वाला मानते हैं। इसमें पश्चिम देशों को बड़ा दिखाया गया है। यूरोप और उत्तरी अमेरिका की तुलना में अफ्रीका और दक्षिण अमेरिकी के देशों के आकार बेहद छोटे हैं।

 

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गलत धारणा को बढ़ावा

अफ्रीकी आयोग की उपाध्यक्ष सेल्मा मलिका हद्दादी का कहना है कि यह केवल एक मैप लग सकता है लेकिन लेकिन वास्तव में यह ऐसा नहीं है। मर्केटर ने इस गलत धारण को बढ़ावा दिया है कि अफ्रीका छोटा है। मगर क्षेत्रफल के लिहाज से यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा महाद्वीप है। एक अरब से अधिक आबादी है। इस तरह की गलत धारणा का असर शिक्षा, मीडिया और नीतियों पर पड़ता है।

 

कौन से मैप को अपनाने की उठ रही मांग?

अफ्रीका नौ फिल्टर और स्पीक अप अफ्रीका जैसे संगठन मर्केटर के नक्शे के खिलाफ हैं। पूरे महाद्वीप में करेक्ट द मैप अभियान चलाया जा रहा है। संगठनों की मांग है कि दुनियाभर के अंतरराष्ट्रीय संगठन और सरकारें साल 2018 के इक्वल अर्थ प्रोजेक्शन को अपनाना शुरू करें। यह मैप सभी देशों के वास्तविक आकार को दिखाने का प्रयास करता है। मर्केटर के मैप से अधिक सटीक है। 

 

अफ्रीका नो फ़िल्टर के कार्यकारी निदेशक मोकी मकुरा का कहना है कि अफ्रीका के मैप का मौजूदा आकार सही नहीं है। यह दुनिया का सबसे गलत सूचना और भ्रामक प्रचार अभियान है। अब इसे रोकना होगा।

सदस्य देशों से बात करेगा अफ्रीका यूनियन

'करेक्ट द मैप' अभियान में विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठनों से इक्वल अर्थ मैप को अपनाने की अपील की गई है। अफ्रीका नौ फिल्टर और स्पीक अप अफ्रीका जैसे संगठनों के अभियान को अफ्रीकी यूनियन का समर्थन मिला है। अफ्रीकी आयोग की उपाध्यक्ष सेल्मा मलिका हद्दादी का कहना है कि हम इस अभियान का समर्थन करते हैं। अफ्रीकी यूनियन व्यापक मानचित्र अपनाने की वकालत करेगा। इस पर सदस्य देशों के साथ सामूहिक चर्चा की जाएगी।

 

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विश्व बैंक हटा रहा मर्केटर के नक्शे

कैरिबियन समुदाय (कैरिकॉम) क्षतिपूर्ति आयोग ने भी अफ्रीकी यूनियन का समर्थन किया है। इस बीच विश्व बैंक के प्रवक्ता का कहना है कि हम पहले से ही विंकेल-ट्रिपल या इक्वल अर्थ का इस्तेमाल करते हैं। वेब मानचित्रों से मर्केटर को हटाया जा रहा है।

गूगल मैप्स के डेस्कटॉप वर्जन में अब भी मर्केटर मैप

दुनियाभर के स्कूल, संगठनों और बड़ी-बड़ी कंपनियों में आज भी मर्केटर के नक्शे का इस्तेमाल होता है। गूगल मैप्स के मोबाइल एप पर मर्केटर का नक्शा डिफॉल्ट तौर पर दिखता है, लेकिन 2018 में गूगल ने अपने डेस्कटॉप वर्जन को मर्केटर से 3D ग्लोब व्यू पर स्विच कर लिया था।

 

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