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क्यों हैरतअंगेज है यूक्रेन का ड्रोन हमला, भारत इससे क्या सीख सकता?

रूस हैरान-परेशान है, पूरी दुनिया सन्न है। हर तरफ यूक्रेन के ड्रोन हमले की चर्चा है। रूस को इतना बड़ा जख्म शायद ही किसी ने दिया हो, जितना बड़ा 1 जून को यूक्रेन ने उसके अंदर घुसकर दिया।

Ukraine's deadliest attack on Russia.

रूस पर यूक्रेन का सबसे घातक हमला। (AI Generated Image)

यूक्रेन ने रविवार यानी 1 जून को रूस पर आधुनिक युद्ध का सबसे हैरतअंगेज हमला किया। यूक्रेन के इस खुफिया मिशन की चर्चा दुनियाभर की सेनाओं में होना तय है। हमले की तुलना इजरायल के पेजर और वॉकी-टॉकी अटैक से की जा रही है। यूक्रेन ने बेहद सस्ते ड्रोन से रूस के सबसे महंगे विमानों को मिट्टी में मिलाया है, लेकिन रूस के सबसे घातक एयरबेसों तक ड्रोनों को पहुंचाना आसान नहीं था। इसके लिए उसने जो रणनीति बनाई, वह भी कमाल की है। यूक्रेन ने अपने ऑपरेशन का नाम 'स्पाइडरवेब' रखा और रूस उसके जाल में पूरी तरह से फंस गया।

 

वेस्ट प्वाइंट स्थित मॉडर्न वॉर इंस्टीट्यूट के रक्षा विशेषज्ञ जॉन स्पेंसर ने यूक्रेन के हमले की तुलना इजरायल के पेजर और वॉकी-टॉकी मिशन से की। उन्होंने कहा, 'दोनों हमले बेहतर खुफिया जानकारी, ऑपरेशनल नवाचार और रणनीतिक दुस्साहस से जुड़े हैं। दोनों ही छोटे देशों ने यह साबित किया कि कैसे अपने से आकार में बड़े और तकनीकी श्रेष्ठ देश को मात दिया जा सकता है। दोनों देश सैन्य इतिहास में अपनी जगह पाने के हकदार हैं।'

यूक्रेन के हमले से क्या सबक मिला?

यूक्रेन के हमले ने यह साबित कर दिया है कि आधुनिक युद्ध में ड्रोन सबसे अहम हैं। एक छोटा सा ड्रोन कुछ भी कर सकता है। ऑपरेशन सिंदूर के वक्त भी भारत और पाकिस्तान के बीच ड्रोन वार देखने को मिली थी। आशंका जताई जा रही है कि रूस के अंदर ही यूक्रेन के मददगार थे, जिनकी मदद से इतने बड़े हमलों को अंजाम दिया गया। बिना अंदरूनी मदद के हजारों किमी दूर इन हमलों को अंजाम दे पाना बेहद मुश्किल था। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने लगभग 15 लोगों को पाकिस्तान के लिए जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया। यूक्रेन हमले के बाद भारत को न केवल निगरानी बढ़ानी होगी, बल्कि देश विरोधी तत्वों से भी निपटना होगा, क्योंकि यही तत्व दुश्मन के हथियार बन सकते हैं।

कब बना हमले का प्लान?

यूक्रेन ने रूस पर सबसे घातक हमले का प्लान लगभग 18 महीने पहले बनाया था। भले ही मिशन को अंजाम पहुंचाने में डेढ़ साल का समय लगा, लेकिन जब हमला हुआ तो न केवल रूस बल्कि पूरी दुनिया सन्न रह गई।   

 

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किसने की मिशन की निगरानी?

यूक्रेन के खुफिया हमले की निगरानी यूक्रेन की सुरक्षा सेवा (SBU) के निदेशक वासिल मालियुक ने की। 1 जून को रूसी एयरबेसों पर हमले का आदेश राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने जारी किया था। हमले के बाद एसबीयू के मुखिया लेफ्टिनेंट जनरल वासिल माल्युक की एक फोटो सामने आई है। इसमें वह ऑपरेशन से जुड़े नक्शों को गौर से देख रहे हैं। 1 जून की शाम जेलेंस्की ने पूरे ऑपरेशन को शानदार बताया और कहा कि रूस को भारी नुकसान पहुंचा है। यह पूरी तरह से उचित और वाजिब भी है।

किन एयरबेसों को बनाया निशाना?

  • बेलाया 
  • डायगिलेवो
  • ओलेन्या
  • इवानोवो
  • रियाजान 

 

बता दें कि रूस के इरकुत्स्क क्षेत्र स्थित बेलाया एयर बेस यूक्रेन से 4000 किलोमीटर दूर है। तब भी यूक्रेन यहां तक ड्रोन पहुंचने और हमला करने में कामयाब रहा। ऐसे ही बाकी चार अन्य एयरबेस भी यूक्रेन से हजारों किमी की दूरी पर स्थित हैं।

 

ऑपरेशन से जुड़े नक्शे देखते लेफ्टिनेंट जनरल वासिल माल्युक।

 

 

रूस को कितना नुकसान?

पांच एयरबेस पर यूक्रेन हमलों में रूस को लगभग अपने 40 विमान गंवाने पड़े। उधर, यूक्रेन की एसबीयू का दावा है कि ड्रोन हमले से रूस को लगभग 7 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ। क्रूज मिसाइलों को ले जाने वाले 34%विमान एयरबेस पर ही खड़े-खड़े नष्ट हो गए। बता दें कि यूक्रेनी ड्रोन की कीमत महज कुछ सौ डॉलर है। वहीं रूस के एक विमान की कीमत अरबों डॉलर में है। यूक्रेन ने अपने हमले में टीयू-95 और टीयू-22एम-3 बमवर्षक और ए-50 विमानों को तबाह किया है। इन विमानों का इस्तेमाल रूस यूक्रेन के शहरों पर बमबारी करने में करता था। यूक्रेन के सैन्य विशेषज्ञ सेरही कुजान के मुताबकि रूस के पास कुल 120 रणनीतिक बमबर्षक विमान थे। इनमें से 40 को यूक्रेन ने नष्ट कर दिया है।

 

  • ए-50 विमान: यह विमान एयर डिफेंस, गाइडेस सिस्टम और रूसी लड़ाकू विमानों के टारगेट को कोआर्डिनेट करता है। रूस के पास अभी 10 से कम विमान हैं। इन विमानों की कीमत लगभग 350 मिलियन डॉलर है।
  • टीयू-95: यह सोवियत संघ के जमाने का विमान है। 1952 में अपनी पहली उड़ान भरी। परमाणु बम ले जाने के उद्देश्य से बनाया गया था। बाद में इसमें क्रूज मिसाइल लॉन्च करने की तकनीक अपग्रेड की गई। एक विमान में 16 क्रूज मिसाइलें ले जाई जा सकती हैं। विमान एक बार में रूस से अमेरिका तक की यात्रा कर सकता है।
  • टीयू -160: यह रूस का सबसे आधुनिक सामरिक बमवर्षक विमान है। साल 1987 से रूस की सेवा में जुटा है। विश्व का सबसे बड़ा बमवर्षक विमान भी है।

रूस के भीतर कैसे पहुंचे ड्रोन?

यूक्रेन ने तस्करी के माध्यम से रूस के भीतर ड्रोनों को भेजा। इसके बाद कार्गो ट्रक की छत पर लकड़ी से एक नई छत बनाई गई। इसमें ड्रोनों को रखा गया। सभी ट्रकों को अपने लक्ष्य की तरफ रवाना किया गया। खास बात यह है कि चालकों यह नहीं पता था कि ट्रक में ड्रोन हैं। एयरबेस के पास पहुंचते ही रिमोट के माध्यम से ट्रक की छत को खुला गया। इसके बाद एक-एक करके ड्रोन उड़ने लगे। कुछ ही देर में रूसी एयरबेसों में एक साथ भीषण तबाही मचने लगी। खास बात यह है कि रूस के अलग-अलग इलाकों में तीन टाइम जोन में यूक्रेन ने इन हमलों को अंजाम दिया। 

कुछ इस तरह से कंटेनर की छत पर लकड़ी से जगह बना ड्रोनों को रखा गया था। ( फोटो- सोशल मीडिया)

 

 

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विमान के ऊपर क्यों मंडरा रहे थे ड्रोन?

यूक्रेन ने इन ड्रोनों को अपने यहां खुद ही तैयार किया। विस्फोटक के तौरआईईडी और ग्रेनेड को लगाया। सभी ड्रोन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और कैमरे से लैस थे। हमले से पहले वीडियो यूक्रेन तक भेजे। इसके बाद विमान के ऊपर मंडराते हुए उस जगह की तलाश की, जहां हमला करने से विमान को सबसे अधिक नुकसान पहुंचे। सटीक जगह की पहचान होने के बाद इन ड्रोनों ने आत्मघाती हमला किया। 

कितने ड्रोन से किया गया अटैक? 

यूक्रेनी राष्ट्रपति के मुताबिक रूस के एयरबेस पर कुल 117 ड्रोनों से हमला किया गया। 117 लोगों ने ड्रोन को ऑपरेट किया। रूस के अंदर ही यूक्रेन का ऑपरेशन ऑफिस था। जहां से हमलों को अंजाम दिया गया है। यह ऑफिस रूस की संघीय सुरक्षा सेवा (FSB) के मुख्यालय के बगल में ही था।

 

 

 

 

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