पोप फ्रांसिस का शनिवार को पूरे रस्मो रिवाज के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया। इसमें पूरी दुनिया के राष्ट्राध्यक्ष या उनके प्रतिनिधि शामिल हुए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से लेकर अन्य देशों के राष्ट्रपति इन कार्यक्रम में शामिल हुए, लेकिन एक जो सबसे चौंकाने वाली बात रही वह यह थी कि इजरायल की तरफ से न तो वहां के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू खुद शामिल हुए और नहीं उनका कोई प्रतिनिधि। बल्कि सिर्फ वेटिकन में इजरायल के राजदूत ही वहां पर मौजूद थे।
सबसे पहले तो इजरायल ने दुख व्यक्त करने में ही चार दिन लगा दिए और अब उन्होंने प्रतिनिधि के तौर पर कहें तो वेटिकन के इजरायली राजदूत को भेजा। तो समझते हैं कि इसके क्या मायने हैं।
नेतन्याहू के ऑफिस ने दो वाक्यों का बयान गुरुवार को जारी किया जिसमें लिखा गया था, 'इजरायल पोप फ्रांसिस के गुजरने पर पूरी दुनिया में कैथोलिक कम्युनिटी के लोगों और कैथोलिक चर्च के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता है। ईश्वर उन्हें शांति प्रदान करे।'
दूसरे देशों के बड़े नेता हुए शामिल
हालांकि, अन्य देशों और नेताओं ने श्रद्धांजलि दी और अपने गहरी संवेदनाएं व्यक्त कीं। इतना ही नहीं इसके पहले इजरायल के आधिकारिक हैंडल से एक मैसेज पोस्ट किया गया था जो कि बाद में डिलीट कर दिया गया। उस मैसेज में येरुशलम की पश्चिमी दीवार पर पोप फ्रांसिस की एक तस्वीर को दिखाया गया था और मैसेज के अंत में लिखा था, 'उनकी स्मृति आशीर्वाद की तरह रहे।'
बाद में इस पोस्ट को डिलीट कर दिया गया। हालांकि, इसके पीछे विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि कुछ त्रुटियों की वजह से उस मैसेज को डिलीट किया गया।
इजरायल के राजदूत हुए शामिल
और अब इस बात को लेकर काफी विवाद हो रहा है कि इजरायल ने तुलनात्मक रूप से लो लेवल का डेलीगेशन भेजा है। इजराइल ने वेटिकन के राजदूत यारोन साइडमैन को भेजा है, जबकि अन्य देशों की ओर से उनके राष्ट्राध्यक्षों ने भाग लिया।
फिलिस्तीन की बात करें तो उसके प्रधानमंत्री मोहम्मद मुस्तफा पोप फ्रांसिस के अंतिम संस्कार में शामिल हुए।
क्या है वजह?
पोप फ्रांसिस हमेशा गाजा में इजरायल की सैन्य कार्रवाइयों की आलोचना करने में मुखर रहे हैं और उन्होंने सुझाव दिया है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को यह देखना चाहिए कि क्या इजरायल की कार्रवाइयों को 'नरसंहार' के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
पोप ने गाजा में चल रही स्थितियों को 'शर्मनाक' बताया और फिलिस्तीनी लोगों के प्रति सहानुभूति भी व्यक्त की। हालांकि, ईस्टर संडे के अपने अंतिम सार्वजनिक संबोधन में उन्होंने फिलिस्तीनियों और इजरायलियों दोनों के दर्द के बारे में बात की थी।
'फिलिस्तीनियों का पक्ष लिया'
पोप के सभी धर्मों के बीच संवाद कायम करने के प्रयास के बावजूद इजरायल में कुछ लोगों का मानना है कि उन्होंने फिलिस्तीनियों का पक्ष लिया। हालांकि, इसके विपरीत, फिलिस्तीनी अथॉरिटी ने पोप के प्रति बहुत सम्मान व्यक्त किया है। फिलिस्तीन के प्रधानमंत्री मोहम्मद मुस्तफा भी पोप फ्रांसिस के अंतिम संस्कार में शामिल हुए।
फिलिस्तीनियों ने कहा है कि पोप के द्वारा व्यक्त की गई सहानुभूति ने उन्हें कठिन समय में आशा की किरण दी है। कथित तौर पर, इससे पहले, पोप फ्रांसिस अक्सर युद्ध के दौरान गाजा शहर के एक चर्च में शरण लिए हुए छोटे ईसाई समुदाय से संपर्क करते थे, और उनकी भलाई को लेकर चिंता व्यक्त किया करते थे।