सुबह की पॉटी से लेकर रात को सोने तक; कैसे पृथ्वी की सेहत बिगाड़ रहे हम
दुनिया
• NEW DELHI 22 Apr 2025, (अपडेटेड 22 Apr 2025, 11:25 AM IST)
आज 'अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी दिवस' है। इसे इसलिए मनाया जाता है ताकि इंसानों को इस बात का अहसास हो कि उनकी हरकतों की वजह से पर्यावरण को कैसे नुकसान पहुंचता है?

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)
अरबों साल पहले पृथ्वी पर जीवन पनपा था। वैज्ञानिकों का मानना है कि सबसे पहले जीवन समंदरों में पनपा था। मगर अब पृथ्वी 'बूढ़ी' हो रही है। बूढ़ी होने का मतलब यह है कि इसके प्राकृतिक संसाधन तेजी से खत्म हो रहे हैं। इसकी बड़ी वजह हम 'इंसान' ही हैं। और इंसानों को इस बात का अहसास हो कि उनकी हरकतों की वजह से पर्यावरण को कैसे नुकसान पहुंचता है? इसलिए 22 अप्रैल को 'अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी दिवस' मनाया जाता है।
इसकी शुरुआत 1970 में अमेरिका से हुई थी। तब अमेरिका में करीब 2 करोड़ से ज्यादा लोग पर्यावरण बचाने के लिए सड़कों पर उतर आए थे। यह वह दौर था, जब अमेरिका में इंडस्ट्रियलाइजेशन तेजी से बढ़ रहा था और इससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा था। पहले 22 अप्रैल को अमेरिका में ही पृथ्वी दिवस मनाया जाता था लेकिन 90 के दशक से यह हर साल दुनियाभर में मनाया जाता है। इसका मकसद इंसानों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना है, ताकि पृथ्वी को बचाया जा सके।
पृथ्वी ब्रह्मांड का एकमात्र ग्रह है, जहां जीवन है। दूसरे ग्रहों पर जीवन की संभावनाओं को तलाशा जा रहा है। और तब तक हमारा एकमात्र 'ठिकाना' पृथ्वी ही है। इसलिए पृथ्वी को बचाना हम सबकी साझा जिम्मेदारी है, लेकिन क्या ऐसा हो रहा है? तो इसका जवाब शायद 'नहीं' है। क्योंकि हमारी रोजमर्रा की आदतें ऐसी हैं, जो पृथ्वी को नुकसान पहुंचा रही हैं। इसकी शुरुआत हमारी सुबह की पॉटी से ही हो जाती है और रात के सोने तक जारी रहती है।
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हमारी हरकतें कैसे पहुंचा रही नुकसान?
- सुबह की पॉटीः आमतौर पर सुबह उठते ही सबसे पहले पॉटी जाते हैं। पॉटी जरूरी है लेकिन इसकी वजह से आजकल पानी की बर्बादी काफी बढ़ गई है। आजकल ज्यादातर घरों में वेस्टर्न टॉयलेट होते हैं, जिनमें पानी बहुत इस्तेमाल होता है। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, हर दिन हर व्यक्ति टॉयलेट के लिए 20 से 40 लीटर तक पानी की खपत करता है। शहरी क्षेत्रों में यह और भी ज्यादा है। जल शक्ति मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि भारतीय शहरों में हर घर में 30% पानी सिर्फ टॉयलेट पर खर्च होता है। भारत में हर व्यक्ति हर दिन टॉयलेट के लिए 10 से 20 लीटर पानी इस्तेमाल करता है। ऐसे में 4 लोगों का एक परिवार हर दिन 80 लीटर तक पानी खर्च करता है। इस हिसाब से हर व्यक्ति सालाना 7 हजार लीटर पानी बर्बाद टॉयलेट पर खर्च करता है।
- ब्रश और नहानाः पॉटी के अलावा ब्रश करने और नहाने-धोने में भी पानी की बहुत बर्बादी होती है। ब्रश करने पर औसतन 1 से 2 मिनट का वक्त लगता है। दांत साफ करते समय ज्यादातर लोग नल खुला छोड़ देते हैं। विश्व संसाधन संस्थान (WRI) की रिपोर्ट बताती है नल खुला रहने से 6 से 10 लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। ब्रश करने के लिए हर व्यक्ति रोजाना 2 से 8 लीटर पानी इस्तेमाल करता है। अगर मग का उपयोग करें तो 2 लीटर तक पानी बच सकता है। इसी तरह वर्ल्ड बैंक की 2020 की रिपोर्ट बताती है कि नहाने के लिए हर व्यक्ति रोजना 50 से 200 लीटर पानी खर्च करता है। अगर 10 मिनट शॉवर चल रहा है तो इससे 250 लीटर तक पानी बर्बाद हो जाता है।
- अखबार पढ़नाः पॉटी करने और नहाने-धोने के बाद जब आप अखबार पढ़ते हैं तो इससे भी पर्यावरण को नुकसान होता है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में हर साल 1.5 करोड़ टन कागज की खपत होती है। इसमें से 40% यानी करीब 60 लाख टन कागज सिर्फ अखबार बनाने के लिए लगता है। एक टन कागज बनाने के लिए 17 पेड़ कटते हैं और करीब 90 हजार लीटर पानी लगता है। अगर आप रोज 20 पन्नों का अखबार पढ़ते हैं तो सालभर में यह 7,300 पन्ने होते हैं। कुल मिलाकर 1.5 करोड़ टन कागज के लिए 25 करोड़ से ज्यादा पेड़ काटे जाते हैं।
- चाय-कॉफी पीनाः अखबार पढ़ने के साथ-साथ जो आप चाय या कॉफी पीते हैं, उसका भी पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है। कॉफी की खेती के लिए 1.1 करोड़ हेक्टेयर और चाय के लिए 50 लाख हेक्टेयर की जमीन की जरूरत होती है। 140 लीटर पानी लगता है तब जाकर 1 कप कॉफी बनती है। इसी तरह 1 कप चाय बनाने के लिए 34 लीटर पानी लग जाता है। एक स्टडी के मुताबिक, एक टी बैग से 3 अरब नैनोप्लास्टिक और 11 अरब माइक्रोप्लास्टिक के कण निकलते हैं। कुल मिलाकर, अगर कोई व्यक्ति रोजाना 1 कप कॉफी भी पी रहा है तो वो सालभर 51 हजार लीटर से ज्यादा पानी बर्बाद कर देता है।
- खाना बनानाः चाय-नाश्ते से फ्री होने के बाद जो खाना बनता है, वह भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है। दूध और मांस जैसे खाद्य उत्पादों से बहुत बड़ी मात्रा में कार्बन (CO2) निकलता है। एक किलो दूध बनाने से 20 किलो कार्बन निकलता है। इसी तरह LPG से खाना बनाने से भी बड़ी मात्रा में CO2 निकलती है। एक LPG सिलेंडर से 42 किलो CO2 निकलती है। इसके अलावा, भारत में हर साल 6.8 करोड़ टन खाना बर्बाद हो जाता है, जिससे मीथेन गैस बनती है। इतना ही नहीं, फूड पैकेजिंग की वजह से हर व्यक्ति सालभर में 50-60 किलो प्लास्टिक कचरा पैदा कर देता है। इसके अलावा, बर्तन धोने में ही हर दिन 20 से 30 लीटर पानी लग जाता है।
- स्कूल-ऑफिस जानाः अमेरिकी संस्था नैचुरल रिसोर्स डिफेंस काउंसिल (NRDC) के मुताबिक, जब पेट्रोल-डीजल जलता है तो बड़ी मात्रा में CO2 निकलती है। एक कार हर साल औसतन 4.6 मीट्रिक टन CO2 छोड़ती है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) के मुताबिक, दुनिया में 24% CO2 गाड़ियों से ही होता है। भारत में 60% शहरी लोग स्कूल-ऑफिस जाने के लिए अपनी निजी गाड़ी का इस्तेमाल करते हैं। अगर एक व्यक्ति रोजाना 20 किलोमीटर भी कार से सफर कर रहा है तो वह सालाना 900 किलो CO2 पैदा कर रहा है। इससे प्रदूषण बढ़ता है। अकेले दिल्ली में ही 40% प्रदूषण सिर्फ गाड़ियों से निकलने वाले धुएं से होता है।
- ऑफिस में कामः भारत में बिजली की 40% खपत कमर्शियल बिल्डिंग्स में होती है। इसके लिए ज्यादा बिजली की जरूरत होती है। भारत में 72% बिजली कोयले से बनती है। कोयले के जलने से CO2 और सल्फर डाय ऑक्साइड निकलती है। एक अनुमान के मुताबिक, एक लैपटॉप 8 घंटे तक चलने पर 0.5 किलो CO2 छोड़ता है। ऑफिस में चलने वाले AC-लाइट्स सब मिला लें तो हर व्यक्ति रोजना 3 से 4 किलो तक CO2 छोड़ रहा है। इसके अलावा, ऑफिसेस में हर साल औसतन 1.2 करोड़ टन कागज की खपत होती है। इतना ही नहीं, पुराने हो चुके लैपटॉप, एसी और लाइट्स से ई-वेस्ट बनता है, जिनसे खतरनाक केमिकल निकलते हैं, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं।
- घर आकर सोनाः घर आने के बाद अगर आप कम से कम 2 घंटे भी टीवी देख रहे हैं तो इससे बिजली की खपत 0.16 किलोवॉट प्रति घंटे हो जाती है। इसी तरह अगर घर में 4 LED बल्ब लगे हैं और वह रोजाना 4 घंटे चल रहे हैं तो इससे सालाना 59 किलो वॉट बिजली की खपत होती है। अमेरिका की एक स्टडी बताती है कि 48.8% भारतीय युवा सोने से पहले मोबाइल या लैपटॉप का इस्तेमाल करते हैं। मोबाइल इस्तेमाल करने का मतलब है कि इसे चार्ज भी करना होगा। अगर एक फोन को चार्ज होने पर 2 घंटे भी लग रहे हैं तो इससे 10 वाट प्रति घंटे तक बिजली की खपत हो जाती है। रात में 8 घंटे AC चलाने पर 5 से 7 किलो CO2 निकलती है।
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क्यों जरूरी है पर्यावरण बचाना?
पृथ्वी ही एकमात्र हमारा अपना घर है लेकिन इसके बावजूद इसे लगातार नुकसान पहुंचाया जा रहा है। नहाने-धोने जैसे कामों पर दिन करोड़ों लीटर पानी बर्बाद हो जाती है, जबकि वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट बताती है कि 2.2 अरब लोग ऐसे हैं जिनके पास पीने का साफ पानी नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2030 तक दुनिया की 40% आबादी के सामने पानी का संकट खड़ा हो सकता है। 2018 में आई नीति आयोग की रिपोर्ट भी कहती है कि भारत की 60 करोड़ आबादी के जल संकट का सामना कर रही है। इसी रिपोर्ट में यह भी आशंका जताई गई थी कि 2030 तक दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु समेत 21 शहरों में ग्राउंडवाटर खत्म हो जाएगा।
इसके अलावा, हमारी जरूरतें पूरी करने के लिए हर साल अरबों पेड़ काट दिए जाते हैं। पेड़ काटने की वजह से भी पर्यावरण को जबरदस्त नुकसान हो रहा है। पेड़ इसलिए जरूरी हैं, क्योंकि यह कार्बन डाय ऑक्साइड को सोखते हैं। एक पेड़ अपने जीवनकाल में औसतन 1 टन CO2 को सोख लेता है। ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच की पिछले साल आई एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में 2000 से 2023 के बीच 23.3 करोड़ हेक्टेयर के जंगल खत्म हो गए हैं। इस कारण सालाना 5 करोड़ टन CO2 हवा में जम रही है, जिससे गर्मी बढ़ रही है।
पेड़ कटने से वाइल्ड लाइफ पर भी खतरा है। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड की 2022 की रिपोर्ट बताती है कि जंगल कटने की वजह से 1970 से 2018 तक वन्यजीवों की आबादी 69% तक घट गई है।
पेड़ों की कटाई और जलवायु बदलने से तापमान भी तेजी से बढ़ रहा है। NASA का कहना है कि 19वीं सदी के बाद से धरती की सतह का तापमान 1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है। NASA के मुताबिक, 1993 से 2019 के बीच ग्रीनलैंड में हर साल औसतन 279 अरब टन बर्फ पिघल गई है। इसी दौरान अंटार्कटिका में भी सालाना औसतन 148 अरब टन बर्फ पिघली है।
कुल मिलाकर, अगर पर्यावरण और इस पृथ्वी को बचाना है तो हमें अपनी आदतों को बदलना होगा। अभी हम जिस लापरवाह तरीके से प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग कर रहे हैं, उसे बदलना नहीं होगा। नहीं तो वह दिन दूर नहीं, जब हम एक 'गर्म पृथ्वी' में जी रहे होंगे और खाने-पानी तक के लिए तरस रहे होंगे।
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