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बढ़ती गर्मी गर्भवती महिलाओं के लिए खतरनाक क्यों? समझिए एक-एक बात

क्लाइमेट सेंटर ने हाल ही में अपनी स्टडी पब्लिश की है। इस स्टडी में बताया गया कि जलवायु परिवर्तन की वजह से हीट रिस्क डे की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है और यह गर्भवती महिलाओं के लिए खतरनाक है।

climate change affect pregnanct woman

प्रतिकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Freepik)

देशभर में भीषण गर्म पड़ रही है। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा हीटवेव अलर्ट जारी किया गया है। मई महीने में दिल्ली- एनसीआर समेत अन्य राज्यों का तापमान 40 डिग्री के पार पहुंच चुका है। इस मौसम में अपनी सेहत का खास ख्याल रखें। भीषण गर्मी पड़ने के पीछे क्लाइमेट चेंज मुख्य कारण है। क्लाइमेट चेंज (तापमान और मौसम के पैटर्न में लगातार बदलाव) को जलवायु परिवर्तन भी कहते हैं। हाल ही में एक स्टडी हुई है जिसमें बताया गया है कि क्लाइमेट चेंज की वजह से अत्यधिक गर्म दिन बढ़े हैं जो गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत खतरनाक है। 

 

रिपोर्ट के मुताबिक पिछले पांच वर्षों (2020 से 2024) के दौरान भारत में हर साल औसतन 6 अतिरिक्त ऐसे दिन आए हैं जो गर्भवती महिलाओं के लिए गर्मी के कारण जोखिम भरे थे। इन दिनों को 'प्रेगनेंसी हीट-रिस्क डेज' कहा जाता है, यानी ऐसे दिन जब तापमान सामान्य से काफी ज्यादा होता है और गर्भवती महिलाओं के लिए खतरनाक हो सकता है।

 

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क्लाइमेट चेंज की वजह से बढ़े हिट रिस्क डेज

 

रिपोर्ट में बताया गया कि सिक्कम में क्लाइमेट चेंज की वजह से 32 अतिरिक्त प्रेगनेंसी हीट-रिस्क डेज दर्ज किए गए। गोवा में 24, केरल में 18, मुंबई में 26 ऐसे दिन सामने आए। चेन्नई, बेंगलुरु, पुणे में पिछले 5 सालों में 7-7 अतरिक्त गर्म दिन दर्ज किए गए। इस स्टडी को  Climate Central ने किया है जो कि वैज्ञानिकों का स्वतंत्र समूह है। स्टडी में 2020 से 2024 के बीच में 247 देशों और 940 शहरों के रोजाना के तापमान का विश्लेषण किया गया है। स्टडी में पाया गया कि हीट रिस्क डे की औसत वार्षिक संख्या में लगभग एक तिहाई की बढ़ोत्तरी हुई है।

 

क्या होता है हिट रिस्क डेज

 

हर साल कई ऐसा दिन होते हैं जब किसी इलाके का तापमान उसके इतिहास के 95 फीसदी से भी ज्यादा होता है। ये दिन गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत खतरनाक होते हैं। इस वजह से स्टील बर्थ, प्री टर्म बर्थ (समय से पहले जन्म) के जोखिम को बढ़ाता है। इससे सिर्फ बच्चे की सेहत पर ही असर नहीं पड़ता है बल्कि मां को भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

 

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वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में बताया कि क्लाइमेट चेंज गर्भवती महिलाओं और शिशु के जन्म के लिए खतरनाक बन चुका है। दुनिया के 90% देशों में अत्यधिक गर्म दिनों की संख्या दोगुनी हुई है। पिछले पांच सालों में क्लाइमेट चेंज की वजह से  247 में से 222 देशों और क्षेत्रों में गर्म दिनों की संख्या दोगुनी हो गई है। अब यह खतरा महाद्वीपों में भी फैल चुका है।

 

महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ता है असर

 

रॉयल कॉलेज ऑफ ऑब्सटेट्रिशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट्स (यूके) की अध्यक्ष डॉक्टर रानी ठाकुर ने कहा, 'इस रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन होने से महिलाओं के स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है खासतौर से विकासशील देशों में जहां स्वास्थ्य सुविधाएं पहले से ही कमजोर है'। डॉक्टर ठाकुर ने आगे कहा, 'गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण और लंबे समय तक हाई टेपरेंचर में रहने की वजह से बच्चा समय से पहले जन्म ले लेता है'।

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार, अधिक तापमान गर्भवती महिलाओं के लिए खतरनाक होता है। अधिक गर्मी की वजह से मिसकैरेज होने का खतरा बढ़ जाता है। अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (U.S. Environmental Protection Agency - EPA) की रिपोर्ट के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान गर्मी की वजह से नवजात शिशु का वजन कम हो सकता है। समय से पहले बच्चे का जन्म हो सकता है और मिसकैरेज होने का खतरा रहता है।

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