महिलाओं के कपड़ों को लेकर हमेशा से समाज की अपनी एक धारणा रही है। पहले के समय में महिलाएं ज्यादातर ट्रेडिशनल कपड़े पहनती थीं। खासतौर पर भारत में महिलाएं ट्रेडिशनल आउटफिट के रूप में साड़ी थी। पहले के समय में साड़ी एक कपड़े की थान होता था जिससे वे अपने जिस्म पर लपेट कर रखती थी। धीरे-धीरे महिलाओं के कपड़े पहनने का तरीका बदला। आज की 21वीं सदी की महिलाएं किसी खास मौके पर ही साड़ी पहनती हैं। ज्यादातर महिलाएं ऑफिस और कॉलेज जाने के लिए वेस्टर्न आउटफिट पहनती हैं क्योंकि ये कपड़े पहनने में ज्यादा कंफर्टेबल होते है। इन कपड़ों में आप आसानी से चल सकते हैं। इसी के साथ ही वेस्टर्न आउटफिट को महिलाओं की आजादी का प्रतीक माना जाता है।
आज भी गांव-देहात में कई महिलाएं सिर्फ ही साड़ी पहनती हैं। शहरीकरण की वजह से वहां की महिलाओं के पहनावे में भी धीरे-धीरे बदलाव देखने को मिल रहा है। आइए जानते हैं वेस्टर्न कपड़े कब से भारत में पहना जाने लगा और इसका इतिहास क्या है।
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किस महिला ने भारत में सबसे पहले वेस्टर्न ड्रेस पहनी
19वीं शताब्दी में वेस्टन आउटफिट को पहनने की शुरुआत हुई थी। भारत में Wealthy Parsis ने सबसे पहले वेस्टर्न कपड़े पहने की शुरुआत की थी। इस तरह के कपड़े उस समय में अमीर और संपूर्ण परिवार के लोग पहनते थे। वेस्टर्न कपड़ों को वह लोग पहनते थे जो पश्चिम संस्कृति को मानते थे। अंग्रेजों के आने के बाद टेक्सटाइल इंडस्ट्री में तेजी है।
पहले भारत में सिले हुए कपड़े पहनने का चलन नहीं था। महिलाएं खास मौकों पर रेशम और सूती की साड़ी पहनती थीं। वहीं, पुरूष धोती और कुर्ता पहनते थे और बाद में कुर्ते के साथ पयजामा का ट्रेंड आया। आजादी के बाद खासतौर पर महिलाओं के कपड़े में बदलाव आया। महिलाओं ने बदलते समाजिक परिवेश के साथ खुद को बदला। महिलाएं तरह-तरह के कपड़ों की बनी साड़ी और ब्लाउज पहनती थी। 1960 और 1970 के दशक में भारत के फैशन सेंस में तेजी से बदलाव आया। उस दौर में कुछ पुरुषों और महिलाओं ने पैंट और शर्ट पहनना शुरू किया।
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वेस्टर्न आउटफिट्स का इस्तेमाल सबसे ज्यादा हमारी फिल्मों में इस्तेमाल हुआ। कामकाजी महिलाओं ने उन कपड़ों को चुना जिसे पहनकर आसानी से काम कर सकती थी जैसे की सलवार- कमीज, ये पहनने में आरामदायक होने के साथ महिला सश्क्तिकरण को भी बढ़ावा दे रहे थे। इसी के साथ फिल्मों का भी लोगों पर खूब प्रभाव पड़ा। उस दौर में लोग हीरो- हीरोइन के स्टाइल को खूब कॉपी करते थे।
1990 के दौर में आर्थिक लिबराइजेशन की वजह से विदेशी कंपनियों ने भारत के फैशन को बढ़ावा दिया। इन विदेशी कंपनियों का कपड़ा सस्ता था जिसका लोगों में क्रेज बढ़ा। बदलते समय के साथ तकनीक बदली। आज के समय में लोग आरामदायक कपड़ों को पहनना ज्यादा पसंद करते हैं। कंफर्टेबल कपड़े लोगों का फैशन स्टेटमेंट बन गया है।