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हिमालयन ट्रेनों में ऐसा क्या है कि UNESCO ने बनाया वर्ल्ड हेरिटेज?

भारतीय रेलवे की हिमालयन ट्रेनें लोगों को लुभाती हैं। इन्हें यूनेस्को ने विश्व धरोहर में शामिल किया है। क्या है इनकी कहानी, आइए समझते हैं।

Darjeeling Himalayan Railway

हिमालयन रेलवे की ये ट्रेनें आज भी कोयले से चलती हैं। (इमेज सोर्स- https:www.dhr.in.net)

मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू।।। शर्मिला टैगोर और राजेश खन्ना की फिल्म आराधना का ये गाना, बच्चे-बच्चे की जुबान पर होता है। इस गाने को लव एंथम कहा जाए तो गलत नहीं होगा। कभी सोचा है कि जिस टॉय ट्रेन पर इस गाने की शूटिंग हुई है, आखिर वह अब तक इतनी लोकप्रिय कैसे बनी है, यूनेस्को ने इस ट्रेन को वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा क्यों दिया है, आइए जानते हैं। 

सोचिए कि पहाड़ी वादियां हों, हर तरफ हरियाली हो, सुंदर गुफाएं हों, मुस्कुराते लोग हों और खुशनुमा मौसम हो। छुक-छुक करके ट्रेन चल रही हो, चारो तरफ लोग हंस-गा रहे हों। किसे ये राह जन्नत जैसी न लगे। दार्जिलिंग की हिमालयन रेलवे भी तो ऐसी ही है। ये ट्रेन नहीं, जन्नत की सवारी है, जिसमें सवार होने दुनियाभर से लाखों लोग हर साल आते हैं। यही वजह है कि यूनेस्को ने इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया है। मतलब ये दुनिया की धरोहर है।

भारत की हिमालयन ट्रेन बेइंतहा खूबसूरत है। यह नीलगिरि की पहाड़ियों में फुदकती सी नजर आती है। टॉय ट्रेन के नाम से मशहूर ये ट्रेन 88 किलोमीटर का सफर पूरा करती है। जब यह ट्रेन घूम स्टेशन पर पहुंचती है तो इसकी जमीन से ऊंचाई 2300 मीटर हो जाती है। 

यूनेस्को ने क्यों दिया इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट
यूनेस्को ने इसे साल 1999 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया था। यह बेहद अनोखी ट्रेन है और भाप से चलती है। पूरे देश में भाप से चलने वाली ट्रेन बंद हो चुकी है लेकिन ये ट्रेन आज भी चलती है। यहां से सुंदर वादियां झलकती हैं, सड़कों के समानांतर ये ट्रेन चलती है, चाय बागानों से गुजरती ये ट्रेन, मुसाफिरों को अलग एहसास कराती है।

(इमेज सोर्स- https:www.dhr.in.net)

3 हिस्सों में बंटा है हिमालयन रेलवे 
वैसे हिमालय ट्रेन 3 हिस्सों में बंटा है। दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे सबसे चर्चित है। इसकी शुरुआत 1881 में हुई थी। नीलगिरी माउंटेन रेलवे, 46 किलोमीटर में फैला है। इसका प्रस्ताव 1854 में दिया गया था लेकिन यह शुरू 1891 में हुई। इसका निर्माण साल 1908 में हो गया था। यह ट्रेन 326 से लेकर 2203 मीटर की ऊंचाई तय करती है। तीसरी हिमालयन ट्रेन है कालका शिमला रेलवे। इसका सफर 96 किलोमीटर का है। यह सिंगल ट्रैक है। सभी तीनों ट्रैक आज भी सही ढंग से चल रहे हैं। 

(इमेज सोर्स- https:www.dhr.in.net)

दार्जिलिंग है कमाल की जगह
दार्जिलिंग की टॉय ट्रेन तो बेइंतहा खूबसूरत है। साल 1828 में दार्जिलिंग में अंग्रेजों ने निर्माण शुरू किया था। इसे सिक्किम से अलग कर दिया गया था। ईस्ट इंडिया कंपनी का ये प्रोजेक्ट अब तक चमक रहा है। ये शहर सस्ता और किफायती है इसलिए लोग बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं।

बॉलीवुड को पसंद है ये लोकेशन
परिणिता, बर्फी और जग्गा जासूस जैसी कई फिल्मों की शूटिंग दार्जिलिंग टॉयट्रेन में हुई है। कई मशहूर गानों की शूटिंग यहां हुई है। बालीवुड के निर्देशकों को ये लोकेशन बहुत रास आते हैं। यहां शूटिंग भी सस्ती है लेकिन लोकेशन किसी विदेशी इलाके को फेल कर दे। दार्जिलिंग में अगर आप शूट करना चाहते हैं तो www.nfrdhrbooking.in पर जाकर शूटिंग के लिए इसे बुक कर सकते हैं। 

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