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बच्चों को शिकार बना रही है टाइप 5 डायबिटीज, जानें लक्षण और बचाव

हम सभी टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज के बारे में जानते हैं। हाल ही में इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (IDF) ने टाइप 5 डायबिटीज को मान्यता दी है।

type 5 diabetes

डायबिटीज (Photo Credit: Freepik)

डायबिटीज एक लाइलाज बीमारी है जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है। डायबिटीज की वजह से शरीर के बाकी अंगों पर भी प्रभाव पड़ता है। इस बीमारी को दवाओं, खानपान और हेल्दी लाइफस्टाइल के साथ कंट्रोल कर सकते हैं। हम सभी जानते हैं डायबिटीज दो तरह की तरह होती है टाइप 1 और टाइप 2। हाल ही में टाइप 5 डायबिटीज के बारे में पता चला है।

 

इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (IDF) ने आधिकारिक तौर पर डायबिटीज के एक नए रूप टाइप 5 डायबिटीज को मान्यता दी है। यह डायबिटीज खासतौर से वयस्कों और किशोरों को होता है। यह टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज से अलग है। आइए जानते हैं क्या होता है टाइप 5 डायबिटीज।

 

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क्या होता है टाइप 5 डायबिटीज

 

टाइप 5 डायबिटीज सीवियर इंसुलिन डेफिशिएंट डायबिटीज (SIDD) है जो  टाइप 2 से बिल्कुल अलग है। टाइप 5 डायबिटीज खासतौर से बचपन या किशोरों में कुपोषण की वजह से होता है।

 

टाइप 5 डायबिटीज के लक्षण

  • लगातार थकान महसूस होना
  • बिना कारण वजन घटना
  • बार-बार संक्रमण होना
  • शारीरिक विकास में रुकावट

बच्चों में अत्यधिक प्यास लगा, बार- बार पेशाब आना, घावों का धीरे-धीरे भरना, भूख ना लगना, पाचन संबंधी समस्याएं, गर्दन के आसपास डार्क स्किन पैच शामिल है। इसके अलावा बच्चे में एकाग्रता, याददाश्त और पढ़ाई में भी परेशानी महसूस कर सकते हैं। 

 

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कब आया था टाइप 5 का पहला केस

 

1955 में टाइप 5 डायबिटीज का पहला केस आया था। 1960 में यह भारत, पाकिस्तान और अफ्रीका के कुपोषित समूह में देखा गया था। हालांकि टाइप 5 डायबिटीज को पिछले 70 साल से देखा जा रहा है लेकिन इसे वैश्विक स्वास्थ्य चर्चाओं में नजर अंदाज किया गया है।

 

20वीं सदी में इसे टाइप 1 और टाइप 2 डाबिटीज के बीच में गलत तरीके से क्लासिफाई किया गया था। पहले माना गया था कि यह स्थिति इंसुलिन प्रतिरोध से विकसित होती है। पिछले कुछ सालों से डॉक्टर हॉकिन्स अपनी टीम के साथ इस पर शोध कर रहे हैं जिसमें पाया गया कि ये बीमारी लाखों लोगों को प्रभावित कर रहा है। टाइप 5 से पीड़ित लोगों में इंसुलिन की कमी देखी गई। लंबे समय तक पोषक तत्वों की कमी की वजह से पैंक्रियाज के विकास पर प्रभाव पड़ता है जिस कारण से यह बीमारी होती है।

 

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