सोशल मीडिया एक ऐसा माध्यम है जिसका इस्तेमाल हम सभी लोग करते हैं। खासतौर से हम दिमाग को रिलेक्स करने के लिए सोचते हैं कि 5 मिनट रील देख लेते हैं लेकिन कब वह 5 मिनट एक घंटे में बदल जाता है। इसका पता नहीं चलता है। हाल ही में NeuroImage ने अपनी स्टडी में बताया है कि शॉर्ट वीडियो सिर्फ आपको एंटरटेन नहीं करते हैं बल्कि दिमाग की कार्यप्रणाली को भी बदल सकते हैं जिससे ध्यान भटकना, काम में फोकस नहीं कर पाना आदि की समस्या हो सकती है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि शॉर्ट वीडियो को अधिक देखने से दिमाग का रिवॉर्ड पाथवे एक्टिव हो जाता है। यही सर्किट शराब पीने या जुआ खेलने पर भी एक्टिव होता है। आसान भाषा में कहें तो यह छोटे- छोटे क्लिप्स आपके दिमगा के डोपामिन सिस्टम को जरूरत से ज्यादा एक्टिव करते हैं जिसकी वजह से आपका दिमाग रोजमर्रा की चीजों में खुशी महसूस करने की क्षमता खोने लगता है। इसी कारण से आप स्क्रॉलिंग की आदत पर काबू नहीं कर पाते हैं।
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कैसे दिमाग में बनता है स्क्रॉलिंग का चक्र?
शॉर्ट वीडियो को इस तरह बनाया जाता है कि आप उसकी तरफ खींचते जाते हैं। हर स्वाइप, टैप और ऑटोप्ले ट्रांजिशन दिमाग में डोपामिन नाम का केमिकल छोड़ता है। यही डोपामिन आपको खुशी का एहसास कराता है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर दिखने वाले वीडियो में आपके रूचि की चीजों को दिखाया जाता है जिससे आपके दिमाग में बार बार डोपामिन हिट होता है और स्क्रॉलिंग का एक चक्र बन जाता है।

समय के साथ डोपामिन के तेज झटके आपके दिमाग की रिवॉर्ड सिस्टम को सुन्न कर देता है। पहले जो काम आपको सचमुच खुशी देते थे जैसे किताब पढ़ना, खाना एन्जॉय करना या किसी से बात करना। ये सभी काम आपको फीके और बेकार लगने लगते हैं। न्यूरोसांइटिस्ट्स ने पाया कि इसी तरह का पैटर्न तब बनता है जब शराब पीते हैं या जुआ खेलते हैं। दोनों ही मामलों में देखा गया कि अत्यधिक उत्तेजना की वजह से दिमाग को उस तरह किक नहीं मिलता है जिस कारण से चिड़चिड़ापन महसूस होता है। शोधकर्ताओं ने कहा, जितना ज्यादा आप स्क्रॉल करेंगे दिमाग को उतने ही स्क्रॉलिंग की आदत हो जाएगी।
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रील देखने से दिमाग पर पड़ता है प्रभाव
रील्स या शॉर्ट वीडियो देखने का सबसे अधिक प्रभाव दिमाग के प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स पर पड़ता है। दिमाग का यह हिस्सा निर्णय लेने, ध्यान केंद्रित करने और भावनाओं के नियंत्रित करने का काम करता है। इसे कंट्रोल सेंटर भी कहा जाता है। जब यह हिस्सा ज्यादा उत्तेजित हो जाता है तो दिमाग में कई समस्याएं महसूस होने लगती है। जैसे-
- किसी एक काम पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो जाता है।
- छोटी छोटी जानकारियां याद नहीं रहती है।
पेरशानी का बात तब होती है जब दिमाग धीरे- धीरे इसका आदी बनने लगता है। इस वजह से जब हम लंबे आर्टिकल पढ़ते हैं, किसी प्रोजेक्ट पर गहराई से काम करने लगते हैं और शांत बैठकर काम करते हैं तो असहज महसूस करने लगते हैं।
नींद पर पड़ता है प्रभाव
देर रात तक रील्स देखने से बॉडी क्लॉक धीरे -धीरे खराब हो जाता है। हमारी सकैर्डियम क्लॉक इस बात पर निर्भर करती है कि रोशनी और गतिविधियों का पैटर्न कैसा है? जब सोने का समय होता है तब बॉडी क्लॉक दिमाग को संकेत देता है लेकिन मोबाइल की रोशनी और विजुल्स दिमाग को अलर्ट मोड में डाल देता है इस कारण मेलाटोनिन देर से रिलीज होता है। रात में देरी से सोने से सिर्फ नींद ही नहीं प्रभावित होती बल्कि दिमाग की याददाश्त वाले हिस्से पर भी प्रभाव पड़ता है। आपकी छोटी-छोटी बातों और चीजों को भुलने लगते हैं।

शरीर के साथ दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए नींद बहुत जरूरी है। अगर आप पर्याप्त मात्रा में नींद नहीं लेते हैं तो मेंटल हेल्थ पर भी धीरे धीरे प्रभाव पड़ता। शरीर और मस्तिष्क अच्छी तरह से काम करें। इसके लिए जरूरी है कि आप 7 से 9 घंटे की नींद लें।
रील देखते समय इन बातों का रखें ध्यान
- दिनभर में सिर्फ 25 से 30 मिनट रील देखने से दिमाग पर प्रभाव नहीं पड़ता है।
- घंटों रील देखने की आदत आज ही छोड़ दें।
- सोने से आधे घंटे पहले फोन ना चलाएं।
- डोपामिन के लेवल को बढ़ाने के लिए व्यायाम करें।
- परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं।