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योगी का श्राप, तांत्रिक का गुस्सा या अकाल, क्यों उजड़ा भानगढ़ का किला?

भूत होते हैं या नहीं होते हैं? भानगढ़ का किला इतना बदनाम क्यों है, क्यों यहां जाने से लोग डरते हैं? क्या है इसके उजड़ने की कहानी? पढ़ें विस्तार से।

भानगढ़ का किला भारतीय पुरात्तव विभाग की देखरेख में है। (फोटो क्रेडिट- wikipedia.org)

Bhangarh Fort.

राजस्थान का भानगढ़ किला। किवदंतियां हैं कि यहां सूर्यास्त के बाद रहने पर अपशकुन होने लगता है। यहां के भूत-प्रेत लोगों को डराने लगते हैं। शाम होने के बाद अगर कोई यहां रहा तो जिंदा नहीं बचेगा। भूत मार डालेंगे। यहां सैकड़ों भूत रहते हैं। ये हवेली सबसे खतरनाक हवेलियों में से एक है। यहां की सच्चाई क्या है, किसी को कुछ भी पता नहीं है। सदियों से यहां के बारे में दंतकथाएं चली हैं, ये दंतकथाएं, सच का रूप अख्तियार कर चुकी हैं।

भानगढ़ किले के बाहर एक बोर्ड है, जिसमें लिखा है, 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भानगढ़। भानगढ़ की की सीमा में सूर्योदय से पहले एवं सूर्यास्त के पश्चात प्रवेश वर्जित है। भानगढ़ की सीमा में किसी प्रकार के मवेशियों का प्रवेश करना कानून अपराध है। आज्ञा का उल्लंघन करने वाले पर कानूनी कार्यवाही की जाएगी। आज्ञा से अधीक्षक पुरात्तव विभाग।'

सरकार भूत-प्रेत, जादू-टोने में यकीन नहीं रखती। संविधान में अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता। फिर भी अगर सरकार, यहां सूर्योदय के बाद किसी को आने नहीं देती तो इसकी क्या वजह हो सकती है। क्या सरकार खुद मानती है कि ये जगह भूतिया है? आखिर वजह क्या है, समझते हैं।

किसने बनवाया था भानगढ़ का किला?
भानगढ़ किले का निर्माण आमेर के राजा भगवंत दास ने 16वीं शताब्दी के अंतिम सालों में करवाया था। राजा मान सिंह के भाई माधोसिंह जब सत्ता में आए तो उन्होंने इसे राजधानी बना दिया। मधोसिंह, मुगल बादशाह अकबर के दरबार में दीवान थे।

क्या हैं भानगढ़ किले से जुड़ी किवदंतियां?
ऐसी जनश्रुति है कि जब भगवंत दास, भानगढ़ का किला बना रहे थे, तब उनसे वहीं पास में एक योगी का आश्रम था। उनका नाम बालूनाथ योगी था। उन्होंने भानगढ़ का किला बनाने पर सहमति दे दी लेकिन शर्त ये रखी कि किला इतना ऊंचा न हो कि उसकी छाया आश्रम पर पड़े। राजा के सेवकों ने ये बात नहीं मानी। नागर शैली में बने इस किले में सेवकों ने 7 मंजिला शाही महल बना दिया। बाल योगी नाराज हुए और उन्होंने श्राप दे दिया किला तबाह हो जाए। उनके श्राप से ये शहर तहस-नहस हो गया। बात में वह शहर वीरान हो गया।

दूसरी कहानी है कि भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती की सुंदरता पर एक जादूगर फिदा हो गया था। एक बार वजह बाजार में घूम रही थीं, तभी वहीं पास में एक शख्स उन्हें निहाने लगा। उसका नाम सिंधिया था। उसे काला जादू आता था। वह राजकुरमारी के प्यार में पड़ गया। राजकुमारी ने उसे नहीं देखा। जिस दुकान से राजकुमारी के लिए इत्र जाता था, उसी दुकान पर उसने इत्र में काला जादू कर दिया। राजकुमारी को यह बात पता लगी तो उन्होंने इत्र को फेंक दिया। इत्र उन्होंने जिस पत्थर पर वह लुढकने लगा। 

जादूगर अपने काले जादू में खुद मारा गया लेकिन उसने श्राप दिया कि राजकुमारी जिस किले में रहती हैं, वहां रहने वाले सभी लोग जल्द ही मर जाएंगे और दुबारा पैदा नहीं होंगे। उनकी आत्माएं यहां भटकेंगी। जादूगर के श्राप के बाद दूसरे राज्य ने इस पर आक्रमण किया। यहां रहने वाले लोग मारे गए। कहते हैं कि इस वजह से भी यह शहर वीरान हो गया। 

कुछ लोगों का कहना है कि भानगढ़ में 1783 के आसपास एक ऐसा अकाल पड़ा था जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी। तब से ही ये इलाका विरान है। लोगों के जाने के बाद यह किला खंडहर में बदल गया था। यहां के बारे में अलग-अलग कथाएं चलती हैं लेकिन उनकी सच्चाई क्या है किसी को नहीं पता है।

रात में नहीं रुकने देता है प्रशासन
भानगढ़ की सारी कहानियों को विज्ञान कल्पना मानता है। यहां के स्थानीय लोग, इन कहानियों को सच मानते हैं। यहां रात में प्रशासन किसी को ठहरने नहीं देता। दिलचस्प बात ये है कि पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित इलाका माना है लेकिन यहां पुरातत्व विभाग का कोई दफ्तर भी नहीं है। यहां भूत देखे के दावे किए जाते हैं लेकिन सब कुछ अफवाह ही है। 

कैसे पहुंचे भानगढ़?
भानगढ़ किला दिल्ली से करीब 284 किलोमीटर दूर है। 3 से 4 घंटे में यहां पहुंचा जा सकता है। आप अगर ट्रेन से आना चाहते हैं तो अलवर उतर सकते हैं। भानगढ़, अलवर जिले के सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के पास है। 

कब आ सकते हैं भानगढ़?
भानगढ़ किले में लोग 6 बजे सुबह से 6 बजे शाम तक घूम सकते हैं। यह एक विशाल खंडहर है, जो बेइंतहा खूबसूरत है। लोगों को यहां रात में आने से डर लगता है।

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