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मुश्किल समय में अपनाएं लेमोनेडिंग की ट्रिक, तनाव से रहेंगे दूर

जिंदगी में मुश्किल समय आने पर लेमोनेडिंग की तरकीब अपनाएं। इसका मतलब है कि जब जिंदगी आपको नींबू दें तो चिंता करने की बजाय लेमोनेड बनाएं।

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प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Freepik)

क्या आपने कभी सोचा है कि दो लोग समान निराशाजनक स्थिति का सामना कर रहे हैं। दोनों व्यक्तियों के सोचने के तरीके में कितना अंतर होगा। आइए आपको उदाहरण से समझाते हैं एक तरफ नेहा नाम की लड़की देर से उठती है, अपने शर्ट पर कॉफी पर गिरा देती है और ऑफिस जाते समय ट्रैफिक में फंस जाती है। वह निराश होकर बड़बड़ाती है कि दिन की शुरुआत ही खराब हुई तो पूरा दिन पता नहीं कैसे बितेगा दूसरा तरफ आरव भी देर से उठता है और अपनी शर्ट पर कॉफी गिरा देता है लेकिन वह गुस्सा होने की बजाय नई शर्ट पहनता है और अपने पंसदीदा पॉडकास्ट को सुनते समय ट्रेफिक जाम को एक बहाना समझ लेता है।

 

इन दोनों की सोच में अंतर है। एक के लिए हर चीज में सिर्फ निगेटिविटी है तो दूसरे लिए पॉजिटिव अप्रोच है। ठीक उसी तरह जिंदगी जब आपको नींबू दें तो उसका लेमोनेड बनाएं। मुश्किल समय में भी पॉजिटिविटी देखना ही लेमोनेडिंग है। ये सिर्फ आपको सकारात्मक अप्रोच ही नहीं देता है, वास्तव में तनाव को कम करने में भी मदद करता है।

 

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क्या होता है लेमोनेडिंग

हाल ही में एक स्टडी में बताया गया कि जो व्यक्ति चंचलता के साथ अपनी समस्या का हल ढूंढते हैं उन्हें भावनात्मक तौर पर कम तनाव महसूस होता है और इसकी सबसे अच्छी बात है। आपको जब भी लगे कि आप किसी मुश्किल में फंसने वाले हैं तो आप लेमोनेड के तरीके से सोचें। इससे आप समस्या का समाधान आसानी से ढूंढ सकते हैं।

 

ऑरेगॉन स्टेट यूनिवर्सिटी के संबंधित अध्ययन के लेखक जियानग्यो शेरेन ने कहा, हमारे अध्ययन से पता चला कि प्लेफुलनेस और रचनात्मकता के साथ मुश्किल समय से आसानी से निजात पा सकते हैं। 

2021 में कोरोना की दूसरी लहर के समय शेन और उसके सहकर्मी ने अमेरिका में 503 लोगों का सर्वे किया। इसमे शामिल लोगों ने संक्रम के जोखिम, भविष्य के बारे में अपनी चिंताओं के बारे में बताया। उन्होंने अपने संकट के उस समय में अपने इमोशनल और बिहेवियरल रिस्पॉन्स के बारे में भी बात की।

 

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शोध में सामने आई ये बातें

शोधकर्ताओं ने उन लोगों उनकी मौज-मस्ती के आधार पर चार अलग ग्रुप में बांट दिया गया। स्टडी में पाया गया कि जिन लोगों में जितनी ज्यादा प्लेफुलनेस थी वे लोग भविष्य को लेकर उतने ही आशावादी थे। वे वैक्सीन के काम करने से लेकर उससे जुड़ी हर चीज को लेकर कॉन्फिडेंट थे। इन लोगों को पूरी उम्मीद थी कि चीजें जल्द सामान्य हो जाएंगी।
 
शेन ने बताया कि लिंग, उम्र, फैमिली इनकम और शिक्षा स्तर का मौज मस्ती से कोई लेना देना नहीं था। वहीं, जो लोग कम मौज मस्ती करने वाले थे वे आइसोलेट रहते थे। रिसर्च में पाया गया कि हाई प्लेफुलनेस वाले लोग लाइफ को खुलकर जीना पंसद करते हैं। वे हर छोटी छोटी चीज में खुशी ढूंढ लेते हैं। 

 

कैसे अपनाएं लेमोनेडिंग का फॉर्मूला

  • अपने अंदर प्लेफुलनेस बढ़ाएं।
  • स्पॉटेनियनस होकर चीजें करें।
  • छोटी-छोटी चीजों में खुशी ढूंढें।
  • उन लोगों के साथ समय बिताएं जिनके साथ आपको खुशी मिलती है।

डिस्क्लेमर: यह आर्टिकल इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारियों और सामान्य बातचीत पर आधारित है। खबरगांव इसकी पुष्टि नहीं करता है। विस्तृत जानकारी के लिए आप अपने किसी डॉक्टर की सलाह लें।

 
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