सिंधु घाटी सभ्यता (2700-2100 ईसा पूर्व) से मोहनजोदड़ो (आधुनिक सिंध, पाकिस्तान) की खुदाई में जब हाथों में चूड़ियां पहने एक नृत्य करती महिला की मूर्ति दिखी तो समझ आया कि चूड़ियों की परंपरा हजारों सालों से चली आ रही है। मानव सभ्यता के इतिहास में चूड़ियां आभूषणों के सबसे पुराने रूपों में से एक मानी जाती हैं। इतिहास बताता है कि चूड़ियां टेराकोटा, सीप, लकड़ी, कांच और धातु से बनाई जाती रही हैं। हड़प्पा और मौर्य काल से लेकर आधुनिक समय तक चूड़ियां भारतीय संस्कृति और परंपरा का अहम हिस्सा रही हैं।
हिंदी शब्द 'बंगरी' (कांच) से लिए गए नाम से चूड़ियों को अलग-अलग संस्कृतियों में अलग-अलग नाम और आकार दिया गया। पंजाबियों के लिए 'चूड़ा' तो बंगाली दुल्हनों के लिए समुद्री सीप से बनी सफेद चूड़ियां और बिहारी दुल्हनों के लिए 'लाख' की चूड़ियां नाम से समझा जाने लगा। चूड़ियों की पहली खोज का क्रेडिट मोहनजोदड़ो बस्तियों को दिया जाता है, जो अब से लगभग 5000 साल पहले की हैं। मौर्य साम्राज्य, रोमन साम्राज्य और भारत के अन्य प्राचीन स्थलों से लेकर विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों की खोज ने चूड़ियों के और अधिक प्रमाण दिए।
पहले कैसे बनती थीं चूड़ियां?
पहले चूड़ियां सीप और मिट्टी से तैयार की जाती थीं। जैसे-जैसे औजारों और तकनीक के बारे में समझ विकसित हुई, वैसे-वैसे विभिन्न धातुओं, कांच और कीमती पत्थरों से चूड़ियां बनाई जाने लगीं। हाल के दिनों में सिंथेटिक प्लास्टिक और रबर का इस्तेमाल फैशन की चूड़ियों में किया जाता है। भारत में मोहनजोदड़ो, मौर्य, ब्रह्मपुरी और तक्षशिला की खुदाई से सीप, लकड़ी, चमड़ा, हड्डी, हाथी दांत, जेड, एगेट, पत्थर, कांच, मिट्टी, लाख, कैल्सेडनी, तांबा, कांस्य, सोना और चांदी जैसी धातुओं से बनी कई तरह की चूड़ियां मिली हैं।
पहले चूड़ियां बनाने के लिए समुद्री सीप या पत्थरों को कठोर सतह पर रगड़कर चूड़ियां बनाई जाती थीं। मिट्टी की चूड़ियां केवल आकार देकर और फिर सुखाकर बनाई जाती थीं। धीरे-धीरे चूड़ियों पर डिजाइन दिए जाने लगे और जड़ाई और पत्थरों की सजावट भी की जाने लगी। शुरुआती खुदाई में कलाई के चारों ओर चूड़ियां पहने हुए देवी-देवताओं की मूर्तियां मिली हैं जो दिखाती हैं कि चूड़ियां पहले से ही महिलाओं के लिए एक आभूषण थी।
चूड़ियों का हब- फिरोजाबाद
उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद को दुनिया का सबसे बड़ा चूड़ी उत्पादक कहा जाता है। यहां विभिन्न समुदाय एक साथ मिलकर काम करते हैं। फिरोजाबाद का सदर बाजार चूड़ियों की दुकानों के लिए सबसे प्रसिद्ध है। यहां चूड़ियां बनाने के लिए कोयले के बजाय प्राकृतिक गैस का उपयोग किया जाता है। चूड़ी उद्योग से पहले फिरोजाबाद उत्तर प्रदेश के पिछड़े शहरों में से एक माना जाता था।
कम आबादी के कारण यहां शिक्षण संस्थान, मेडिकल फेसिलिटी और व्यापार कम थे। चूड़ी उद्योग के विकास के बाद से यहां के व्यापार में वृद्धि हुई है। इसके कारण झुग्गी-झोपड़ियां नई बस्तियों में बदल गई हैं। लगभग एक लाख श्रमिकों को रोजगार मिल रहा है। ये कहना गलत नहीं होगा कि चूड़ी उद्योग के विकास के कारण फिरोजाबाद का आर्थिक जीवन पूरी तरह से बदल गया है।