सिनेमा का हमारे समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। कई बार कुछ फिल्में लोगों के दिलों में अमिट छाप छोड़ती हैं। फिल्म देखते समय हम खुद को उसमें डुबा देते हैं। यह सिनेमा की शक्ति है कि उसमें दिखाए जाने वाली चीजों से हम खुद को कनेक्टेड महसूस करते हैं। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हम उस फिल्म को बड़े पर्दे या मोबाइल की छोटी स्क्रीन पर देख रहे हैं। कई बार हम भावनात्मक सीन देखने के बाद रोने लगते हैं तो खुशी वाले सीन्स को देखकर चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
कुछ लोग हर बात पर इमोशनल हो जाते हैं। जबकि कुछ लोगों को इस तरह का अनुभव नहीं होता है। हाल ही में सिनेमाघरों में मोहित सूरी की रोमांटिक म्यूजिक ड्रामा 'सैयारा' रिलीज हुई है। इस फिल्म को देखने के बाद लोग थिएटर्स में रोते हुए नजर आ रहे हैं। इन लोगों की वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही हैं। फिल्म देखने के बाद लोग रोने लग जाते हैं? इस बारे में हमने दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल के असिस्टेंट प्रोफेसर और मनोचिकित्सक डॉक्टर लोकेश सिंह शेखावत से बात की।
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फिल्म देखने के बाद क्यों रोने लगते हैं लोग
कई बार ऐसा होता है कि फिल्म में दिखाई गई चीजों से जुड़ाव महसूस होता है। ऐसा हो सकता है कि उनके साथ असल जिंदगी में ऐसा कभी हुई हो या उन्होंने इस चीज को रियल लाइफ में अनुभव किया हो। पर्दे पर उस चीज को देखकर भावुक हो जाते हैं। कुछ लोग बहुत ज्यादा ही भावुक होते हैं। कुछ लोग चीजों से बहुत ज्यादा जुड़ाव महसूस नहीं कर पाता है। हर व्यक्ति अलग है- डॉक्टर लोकेश सिंह शेखावत, दिल्ली
क्यों होता है इमोशनल ब्रेकडाफन
रिसर्च के मुताबिक हमारा दिमाग उन भावनाओं को असली मानता है जो स्क्रीन पर दिख रही होती हैं। इसकी वजह मिरर न्यूरोन है जो हमें दूसरों की भावनाओं को महसूस करने में मदद करता है। व्यक्ति को उस क्षण में कितनी सहानुभूति दिखानी है इसमें ऑक्सीटॉसिन हार्मोन मुख्य भूमिका निभाता है। निर्देशक अपनी फिल्म की कहानी के जरिए दर्शकों में सहानुभूति की भावना जगा सकता है। जो लोग ज्यादा सहानुभूति रखने वाले होते हैं वे फिल्म देखने के दौरान और बाद में भावुक हो जाते हैं।
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Journal of Media Psychology के मुताबिक जो लोग अधिक सहानुभूति, भावनात्मक रूप से संवेदनशील हैं या जीवन में उस तरह की घटना से गुजरे हैं उन्हें फिल्म देखने के दौरान अधिक रोना आता है।