आज विश्वभर में वर्ल्ड ओवेरियन कैंसर डे मनाया जा रहा है। हर साल 8 मई को यह दिन मनाया जाता है। इस दिन को खासतौर पर ओवेरी (गर्भाश्य) कैंसर के बारे में जागरूक करने के लिए सेलिब्रेट किया जाता है ताकि महिलाएं समय रहते इसकी पहचान कर सकें। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के मुताबिक, ओवेरियन कैंसर भारतीय महिलाओं में तीसरा और दुनियाभर में आठवां सबसे आम कैंसर है।
महिलाओं में यह सबसे आम कैंसर होता है। हर साल इस बीमारी की वजह से लाखों महिलाओं की मौत होती हैं। ओवेरियन कैंसर को साइलेंट किलर कहा जाता है। शुरुआत में इस बीमारी के लक्षण बहुत सामान्य लगते हैं इसलिए इसके बारे में जल्दी पता नहीं पता चल पाता है। आइए इसके पीछे के कारणों के बारे में जानते हैं।
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ओवेरियन कैंसर होने के कारण
परिवार में कैंसर की हिस्ट्री-अगर आपके परिवार में मां, बहन या बेटी किसी को ब्रेस्ट या ओवेरियन कैंसर हुआ है तो ओवेरियन कैंसर होने का खतरा ज्यादा रहता है। ऐसा इसलिए क्योंकि आपके अंदर भी अपने परिवार के ही जींस होते हैं।
उम्र-ओवेरियन कैंसर होने का खतरा सबसे ज्यादा 50 साल की ज्यादा उम्र वाली महिलाओं को होता है। मेनोपॉज के बाद हार्मोन में बदलवा आता है जिस कारण से कई बार ओवेरी के सेल्स में बदलाव आता है और कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।
एंडोमेट्रियोसिस- एंडोमेट्रियोसिस (जब एंडोमेट्रल की कोशिकाएं गर्भाशय के बाहर बढ़ती हैं और अन्य अंगों से जुड़ जाती हैं तो एंडोमेट्रोयोसिस कहा जाता है) से पीड़ित महिलाओं को ओवेरियन कैंसर होने का खतरा ज्यादा रहता है।
बांझपन- जो महिलाएं मां नहीं बन सकती हैं उन्हें ओवेरियन कैंसर होने का खतरा ज्यादा रहता है।
मोटापा-कम उम्र में मोटापे के शिकार लोगों में ओवेरियन कैंसर होने का खतरा ज्यादा रहता है। फैट टिशूज ज्यादा मात्रा में एस्ट्रोजन का उत्पादन करते हैं जिसकी वजह से हार्मोन अंसतुलित हो जाते हैं।
स्मोकिंग-स्मोकिंग की वजह से ओवेरियन कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। तम्बाकू में पाया जाने वाला टॉक्सिन डीएनए के सेल्स को प्रभावित करता है और म्यूटेशन होने की संभावना बढ़ जाती है।
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आवेरियन कैंसर के लक्षण
- ब्लोटिंग
- बार बार पेशाब आना
- पेल्विक पेन
- भूख न लगना
- कमर दर्द
- मेनोपॉज के बाद ब्लीडिंग
- पीरियड साइकिल में बदलाव
ओवेरियन कैंसर का कोई इलाज नहीं है लेकिन शुरुआती लक्षणों के बारे में पता चल जाए तो इसे रोका जा सकता है। कीमोथेरीपी, हार्मोन थेरेपी,रेडिएशन थेरेपी, सर्जरी, टारगेट थेरेपी के जरिए इसका इलाज किया जा सकता है।
Disclaimer: यह आर्टिकल इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारियों पर आधारित है। विस्तृत जानकारी के लिए आप अपने किसी डॉक्टर की सलाह लें।