भारत के 5 बड़े नदी जल विवाद जिनको लेकर सरकारों में होता है टकराव
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• DELHI 03 May 2025, (अपडेटेड 03 May 2025, 9:04 PM IST)
भारत में नदी जल के बंटवारे को लेकर भी कई राज्यों में विवाद हैं। इस लेख में बताएंगे कि आखिर क्या हैं वे विवाद और क्यों हैं?

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: PTI
भारत में नदियों का जल बंटवारा राज्यों के बीच तनाव का प्रमुख कारण रहा है, और इनमें से कई विवाद दशकों से अनसुलझे हैं। कावेरी, यमुना, नर्मदा, गोदावरी और सतलुज जैसी नदियों को लेकर होने वाले ये विवाद न केवल जल संसाधनों की कमी को उजागर करते हैं, बल्कि राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक टकराव को भी बढ़ावा देते हैं। इनमें हरियाणा और पंजाब के बीच भाखड़ा नहर विवाद हाल के दिनों में सुर्खियों में रहा है। यह विवाद सतलुज नदी के पानी के बंटवारे और भाखड़ा-नांगल बांध से जल आपूर्ति को लेकर है, जो दोनों राज्यों के लिए कृषि और पेयजल का आधार है।
1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद से ही यह मुद्दा जटिल बना हुआ है, जब हरियाणा अलग राज्य बना। 1981 के जल बंटवारा समझौते और भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) के दिशानिर्देशों के बावजूद, हाल ही में पंजाब द्वारा हरियाणा को दी जाने वाली पानी की मात्रा में कटौती ने विवाद को और गहरा दिया है। हरियाणा का आरोप है कि पंजाब ने 9,500 क्यूसेक से घटाकर 4,000 क्यूसेक पानी की आपूर्ति की, जिससे उसके कई जिले जल संकट से जूझ रहे हैं। वहीं, पंजाब का दावा है कि उसके पास अतिरिक्त पानी नहीं है, क्योंकि वह खुद ही भूजल के संकट और धान की फसल के लिए जरूरी पानी से जूझ रहा है। यह विवाद न केवल जल प्रबंधन की चुनौतियों को उजागर करता है, बल्कि अंतर-राज्यीय सहयोग की कमी को भी दर्शाता है।
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लेकिन ऐसा नहीं है देश में यह एकमात्र नदी जल विवाद है, तो खबरगांव इस आर्टिकिल में आपको भारत के 5 बड़े नदी जल विवाद से रू-ब-रू कराएगा और बताएगा कि इनके बीच विवाद की जड़ क्या है?
1. कावेरी नदी जल विवाद
कावेरी नदी को 'दक्षिण भारत की गंगा' कहा जाता है। यह कर्नाटक के कोडगु जिले में तालकावेरी से निकलती है और तमिलनाडु होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है। कावेरी नदी को लेकर मूलतः कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच विवाद है। यह विवाद लगभग 100 सालों से चला आ रहा है लेकिन अब यह विवाद काफी गहरा हो गया है।
धान की खेती के लिए प्रसिद्ध तमिलनाडु का डेल्टा क्षेत्र कावेरी के पानी पर अत्यधिक निर्भर है। वहीं, कर्नाटक में मांड्या और मैसूर जैसे क्षेत्र भी इसी नदी के पानी से सिंचाई करते हैं। मानसून की अनिश्चितता के कारण दोनों राज्यों में पानी की मांग काफी ज्यादा बढ़ जाती है और उसका एकमात्र स्रोत कावेरी ही बचती है। इसी को लेकर विवाद है
1892 और 1924 के समझौतों में जल बंटवारे के नियम तय किए गए थे, लेकिन स्वतंत्रता के बाद इन समझौतों पर असहमति बढ़ती गई। कर्नाटक का मानना है कि ये समझौते औपनिवेशिक काल में तमिलनाडु के पक्ष में थे।
वहीं कर्नाटक द्वारा निर्मित कृष्णराजसागर और तमिलनाडु का मेट्टूर बांध जल नियंत्रण के लिए बनाए गए, लेकिन इनके कारण जल प्रवाह में बदलाव हुआ, जिससे विवाद और बढ़ा। इसके अलावा अनियमित मानसून और सूखे ने कावेरी बेसिन में पानी की उपलब्धता को कम किया है, जिससे दोनों राज्यों के बीच और ज्यादा तनाव बढ़ा है।
मौजूदा स्थिति की बात करें तो 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (CWMA) को जल बंटवारे की निगरानी का जिम्मा सौंपा, लेकिन कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच असहमति अभी भी बनी हुई है। हाल के वर्षों में, मानसून के दौरान जल छोड़े जाने को लेकर दोनों राज्यों में विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं।
2. नर्मदा नदी जल विवाद
नर्मदा नदी मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान से होकर बहती है। सरदार सरोवर बांध के निर्माण के बाद से ही इसके जल को लेकर विवाद की स्थिति रही है। यह नदी मध्य प्रदेश की जीवन रेखा मानी जाती है। सरदार सरोवर बांध की वजह से गुजरात में सिंचाई और पेयजल आपूर्ति को बढ़ावा मिला, लेकिन मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया। इसके अलावा जल बंटवारे को लेकर मध्य प्रदेश और गुजरात के बीच सहमति नहीं बन पाई। मध्य प्रदेश का आरोप है कि गुजरात अधिक पानी का उपयोग करता है।
वहीं बांध के कारण नदी का प्राकृतिक प्रवाह प्रभावित हुआ, जिससे मछली पालन और जैव विविधता पर असर पड़ रहा है। मौजूदा स्थिति की बात करें तो नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण (1979) ने जल बंटवारे के लिए दिशानिर्देश दिए थे, लेकिन इसका कार्यान्वयन एक चुनौती बनी हुई है। हाल के वर्षों में, गुजरात और मध्य प्रदेश के बीच तनाव कम हुआ है, लेकिन विस्थापन और पर्यावरणीय मुद्दे अभी भी चर्चा में हैं।
3. गोदावरी नदी जल विवाद
गोदावरी, भारत की दूसरी सबसे लंबी नदी है जो कि महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा से होकर बहती है। इस नदी के जल बंटवारे को लेकर राज्यों के बीच विवाद रहा है। महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश ने गोदावरी पर कई बांध और नहरें बनाई हैं, जिससे जल प्रवाह में बदलाव आया है। तेलंगाना के गठन के बाद यह विवाद और जटिल हो गया।
गोदावरी का पानी उद्योगों, विशेष रूप से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में, बड़े पैमाने पर उपयोग होता है, जिससे कृषि के लिए पानी की कमी हो जाती है। इस विवाद को सुलझाने के लिए 1975 में गोदावरी जल विवाद न्यायाधिकरण ने जल बंटवारे के लिए नियम बनाए, लेकिन तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच नए सिरे से असहमति उभर गई।
1969 में गोदावरी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन जस्टिस बच्चावत की अध्यक्षता में हुआ, जिसमें महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा और कर्नाटक शामिल थे। 1975-79 के दौरान राज्यों के बीच कई द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय समझौते हुए। उदाहरण के लिए, पोलावरम परियोजना समझौते के तहत गोदावरी के 80 टीएमसी (हजार मिलियन क्यूबिक फीट) जल को कृष्णा नदी में डायवर्ट करने का प्रावधान है, जिसमें आंध्र प्रदेश को 45 टीएमसी और कर्नाटक-महाराष्ट्र को 35 टीएमसी मिलता है।
हालांकि, पोलावरम परियोजना से तेलंगाना के खम्मम जिले के कई गांवों के डूबने का खतरा है, जिससे तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच तनाव बढ़ा।
गोदावरी बेसिन में 215.88 मिलियन घन मीटर जल भंडारण क्षमता वाले गंगापुर बांध और जयकवाड़ी बांध जैसे कई बांध हैं, जो सिंचाई और औद्योगिक विकास में योगदान देते हैं। फिर भी, बेसिन के निचले हिस्सों में बाढ़ और मराठवाड़ा में सूखे की समस्या बनी रहती है।
अनसुलझा है, जो बेहतर जल प्रबंधन और अंतर-राज्यीय सहयोग की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
अब मौजूदा स्थिति में गोदावरी जल प्रबंधन बोर्ड की स्थापना के बावजूद, राज्यों के बीच सहमति बनाना चुनौतीपूर्ण है। हाल के वर्षों में, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच बांधों से जल छोड़े जाने को लेकर तनाव बढ़ा है।
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4. महानदी जल विवाद
महानदी छत्तीसगढ़ और ओडिशा से होकर बहती है, इन दोनों राज्यों के बीच जल बंटवारे को लेकर विवाद बना हुआ है। महानदी की लंबाई 900 किलोमीटर है और इसका बेसिन क्षेत्र 132,100 वर्ग किमी है, जो छत्तीसगढ़ में 75% और ओडिशा में 25% फैला है।
विवाद 2016 में शुरू हुआ, जब ओडिशा ने आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ ने बिना सहमति के ऊपरी क्षेत्र में छह औद्योगिक बैराज और बांध बनाए, जिससे हीराकुड बांध में जल प्रवाह 19,237 मिलियन क्यूबिक मीटर (MCM) से घटकर 2,119 MCM रह गया। ओडिशा की मांग 23,651 MCM है, जिससे 4,414 MCM की कमी हो रही है। छत्तीसगढ़ का दावा है कि वह केवल 4% जल उपयोग करता है, जबकि ओडिशा 14% उपयोग करता है, और शेष 82% समुद्र में चला जाता है।
2018 में, केंद्र सरकार ने अंतर-राज्य नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत महानदी जल विवाद ट्रिब्यूनल का गठन किया, जिसकी समयसीमा अब अप्रैल 2026 तक बढ़ा दी गई है। ट्रिब्यूनल ने 2023 में नदी बेसिन का निरीक्षण शुरू किया, जिसमें छत्तीसगढ़ के कलमा बैराज से गैर-मानसून सीजन में 1,000-1,500 क्यूसेक जल छोड़ा गया।
बता दें कि छत्तीसगढ़ द्वारा निर्मित कई बांधों, जैसे हीराकुंड और महानदी जलाशय, ने ओडिशा में जल प्रवाह को प्रभावित किया। ओडिशा का आरोप है कि छत्तीसगढ़ अधिक पानी रोक रहा है। दोनों राज्य महानदी के पानी पर कृषि और उद्योगों के लिए निर्भर हैं। छत्तीसगढ़ में कोयला और इस्पात उद्योगों की बढ़ती मांग ने विवाद को और गहराया है।
5. कृष्णा नदी जल विवाद
कृष्णा जल नदी विवाद भारत के चार राज्यों—महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश—के बीच एक लंबे समय से चला आ रहा अंतर-राज्यीय विवाद है। यह विवाद कृष्णा नदी के पानी के बंटवारे और उपयोग को लेकर है, जो इन राज्यों के लिए सिंचाई, पेयजल और औद्योगिक जरूरतों के लिए महत्वपूर्ण जल स्रोत है। कृष्णा नदी की लंबाई 1,400 किमी है, जो महाराष्ट्र के महाबलेश्वर से निकलती है और कर्नाटक, तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश से होकर बंगाल की खाड़ी में मिलती है। इसका बेसिन क्षेत्र 258,948 वर्ग किमी में फैला हुआ है।
विवाद की शुरुआत 1956 में आंध्र प्रदेश के गठन के साथ हुई, जब अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत कृष्णा जल विवाद ट्रिब्यूनल (KWDT) बनाया गया। पहले चरण (KWDT-I) में 1976 में पानी का बंटवारा हुआ जिसके तहत महाराष्ट्र को 560 TMC, कर्नाटक को 700 TMC, और आंध्र प्रदेश को 800 TMC पानी दिया गया। बाद में, 2004 में KWDT-II ने 2010 में इसमें संशोधन करके महाराष्ट्र को 666 TMC, कर्नाटक को 911 TMC, और आंध्र प्रदेश को 1,001 TMC पानी देने की बात कही।
लेकिन 2014 में आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद तेलंगाना एक नया राज्य बना, जिसने विवाद को और जटिल कर दिया। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच पुराने 811 TMC के हिस्से को लेकर मतभेद है। तेलंगाना का दावा है कि उसे बड़ा हिस्सा मिलना चाहिए, जबकि आंध्र प्रदेश मौजूदा अनुपात को बनाए रखना चाहता है।
कर्नाटक की अलमाटी बांध परियोजना भी विवाद का एक कारण है, जिससे आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में जल आपूर्ति को प्रभावित किया है। 2023 में आंध्र प्रदेश ने आरोप लगाया कि कर्नाटक ने 30 TMC जल रोका, जिससे श्रीशैलम और नागार्जुन सागर बांधों में जल स्तर कम हुआ।
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