देशभर में जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक श्रद्धालु कृष्ण भक्ति में लीन है। देशभर के मंदिरों में जश्न का माहौल है। मथुरा के मंदिरों में ऑपरेशन सिंदूर की झलक देखने को मिली रही है। यहां भक्तों भीड़ उमड़ी है। पूरे जिले में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी है। बांके बिहारी मंदिर में भक्तों का तांता लगा है। अभी तक मथुरा-वृंदावन में 25 लाख भक्त भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन कर चुके हैं।
श्रीकृष्ण जन्मूभूमि मंदिर में ऑपरेशन सिंदूर की झलक देखने को मिल रही है। फूल बंगला को कोलकाता और बेंगलुरु से लाए गए सिंदूरी फूलों से सजाया गया है। इसी फूल बंगले में ठाकुरजी विराजते हैं। मथुरा के कारीगरों ने छह महीने की कड़ी मेहनत से भगवान श्रीकृष्ण की पोशाक तैयार की है। सोने और चांदी के तारों से बनी इस पोशाक में इंद्रधनुष के सातों रंग दिखते हैं। उधर, गुजरात के द्वारिका में भगवान श्रीकृष्ण की श्रंगार आरती की गई।
वृंदावन के ठाकुर बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधक मुनीश शर्मा और उमेश सारस्वत ने जानकारी दी कि हाई कोर्ट के निर्देश पर रविवार सुबह मंगला आरती के वक्त मंदिर परिसर में सिर्फ 500 भक्तों के मौजूद रहने की अनुमति है। ताकि दबाव या भगदड़ जैसी स्थिति न बने।
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मेघधेनु पोशाक में दर्शन देंगे ठाकुरजी
श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के सचिव कपिल शर्मा का कहना है कि ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से लोगों को सुदर्शन चक्रधारी कृष्ण के दर्शन हुए हैं। इस वजह से पूर्णावतार भगवान श्री कृष्ण भी सिंदूर बंगले में विराजमान होंगे और दर्शन देंगे। ठाकुरजी कटरा केशवदेव में बने भागवत भवन में विराजमान होंगे। ठाकुरजी सिंदूर पुष्प बंगले में चांदी से मढ़े गर्भगृह में मेघधेनु पोशाक धारण करके भक्तों को दर्शन देंगे।
221 किलो चांदी से सजा गर्भ गृह
पुजारियों के मुताबिक यह भगवान कृष्ण का 5252वां जन्मोत्सव है। श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सदस्य गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी का कहना है कि पूरे मंदिर को सजाया गया है और कंस के कारागार के रूप में प्रसिद्ध इसके गर्भगृह में 221 किलो चांदी जड़ी गई है।
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राधा रमण मंदिर में सुबह मनाई जाएगी जन्माष्टमी
वृंदावन के श्री राधा रमण मंदिर में जन्माष्टमी अगली सुबह मनाई जाती है। मंदिर के सेवायत दिनेश चंद्र गोस्वामी ने बताया कि सुबह जन्माष्टमी का उत्सव भगवान राधा रमणजी के प्राकट्य के साथ मनाई जाएगी। भगवान को गुड़ और तिल का विशेष प्रसाद चढ़ाया जाता है। बाद में छप्पन भोग लगाया जाता है।