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3 बिलों में ऐसा क्या है कि विपक्ष ने फाड़ दी कॉपी? हंगामे की पूरी वजह

गंभीर मामलों में गिरफ्तारी या हिरासत में लिए जाने पर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को हटाने वाले बिल को संयुक्त समिति के पास भेज दिया गया है। इन बिलों पर बुधवार को संसद में जबरदस्त हंगामा हुआ?

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लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह। (Photo Credit: PTI)

गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ्तार या हिरासत पर रहने पर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को पद से हटाने वाले बिल बुधवार को लोकसभा में पेश हुए। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जब इन तीन बिलों को लोकसभा में पेश किया तो जमकर हंगामा हो गया। विपक्ष ने इस पर जोरदार हंगामा किया। विपक्षी सांसदों ने इन बिलों की कॉपी फाड़कर कागज के टुकड़े अमित शाह की तरफ भी फेंके।

 

विपक्ष ने संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए इन बिलों का विरोध किया। विपक्ष ने कहा कि यह बिल न्यायशास्त्र के उस सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं जो 'दोषी साबित होने तक निर्दोष' होने की बात कहता है। विपक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि अगर यह कानून बना तो इसका दुरुपयोग किया जा सकता है।

 

वहीं, विपक्ष का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, 'हम इतने बेशर्म नहीं हो सकते कि गंभीर आरोपों का सामना करते हुए भी संवैधानिक पदों पर बने रहें।'

क्या हैं यह बिल? 6 पॉइंट्स में समझें

  1. बिलों के नाम क्या?: सरकार को जो तीन बिल लेकर आई है, उनके नाम गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरिज (अमेंडमेंट) बिल 2025, द कंस्टीट्यूशन (130वां अमेंडमेंट) बिल 2025 और जम्मू-कश्मीर रिऑर्गनाइजेशन (अमेंडमेंट) बिल 2025 है।
  2. तीन बिल की जरूरत क्यों?: गृह मंत्री अमित शाह ने तीन अलग-अलग बिल पेश किए। एक बिल केंद्र सरकार और राज्यों की विधानसभा के लिए है। दूसरा बिल पुडुचेरी विधानसभा के लिए है। जबकि, तीसरा बिल जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए है।
  3. किन पर लागू होगा?: प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्री, केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री और मंत्रियों पर यह कानून लागू होगा।
  4. प्रावधान क्या है?: पीएम-सीएम या मंत्रियों को किसी गंभीर आपराधिक मामले में गिरफ्तार किया जाता या 30 दिन तक हिरासत में रखा जाता है तो उन्हें खुद इस्तीफा देना होगाइस्तीफा नहीं दिया तो पद से हटा दिया जाएगा
  5. गंभीर अपराध क्या होंगे?: ऐसे सभी अपराध, जिनमें 5 साल या उससे ज्यादा की सजा का प्रावधान है, उन्हें गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा जाता हैइसमें हत्या और बलात्कार जैसे अपराध शामिल होते हैं
  6. बरी हो गए तो क्या होगा?: गिरफ्तारी या हिरासत में इस्तीफा देने के बाद अगर मंत्री को अदालत जमानत दे देती है या बरी कर देती है तो उन्हें वापस उस पद पर नियुक्त किया जा सकेगा

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बिल पेश हुए तो क्या हुआ?

बुधवार को दोपहर 2 बजे के बाद जैसे ही लोकसभा में अमित शाह ने यह तीनों बिल पेश किए, वैसे ही जबरदस्त हंगामा शुरू हो गया।

 

अमित शाह ने जब इन बिलों को पेश किया तो कुछ विपक्षी सांसद नारेबाजी करते हुए वेल तक आ पहुंचे। कुछ सांसदों ने तो बिल की कॉपी भी फाड़ दी और उसके कागज के टुकड़े अमित शाह की तरफ फेंक दिए। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू और रवनीत सिंह बिट्टू समेत कई बीजेपी सांसदों ने विपक्षी सांसदों को अपनी सीट पर वापस जाने को कहा।

 

 

इस दौरान कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने 2010 में गुजरात के गृह मंत्री रहते हुए अमित शाह की गिरफ्तारी का जिक्र किया। वेणुगोपाल ने दावा किया कि गिरफ्तारी के बावजूद अमित शाह पद पर थे। इस पर पलटवार करते हुए अमित शाह ने कहा कि उन्हें 'झूठे' आरोपों में गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक अदालत ने उन्हें बरी नहीं कर दिया, तब तक वे किसी संवैधानिक पद पर नहीं थे।

 

शाह ने कहा, 'विपक्ष हमें नैतिकता के बारे में क्या सिखा रहा है? मैंने इस्तीफा दे दिया था। हम इतने बेशर्म नहीं हो सकते कि आरोपों का सामना करते हुए भी संवैधानिक पदों पर बने रहें। मैंने गिरफ्तारी से पहले ही इस्तीफा दे दिया था'

 

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विपक्ष क्यों कर रहा है इनका विरोध?

विपक्ष ने इन बिलों को 'संघीय ढांचे पर हमला' बताया है लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा कि हम उस दौर में जा रहे हैं, जब राजा किसी को भी अपनी मर्जी से हटा देता था।

 

विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी के सम्मान समारोह में राहुल गांधी ने कहा, 'हम उसी दौर में जा रहे हैं, जब राजा किसी को भी गिरफ्तार करवा देते थे और मर्जी से हटा देते थे। अब निर्वाचित व्यक्ति की कोई अवधारणा ही नहीं बची। आपका चेहरा पसंद नहीं तो ED से केस करवा दिया, 30 दिन में लोकतांत्रिक तरीके से चुना व्यक्ति खत्म। यह नया है'

 

 

इसी कार्यक्रम में कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया कि अगर यह बिल पास हो गए तो संसदीय लोकतंत्र और संघीय ढांचा कमजोर हो जाएगा। उन्होंने कहा, 'पिछले 11 साल में हमने देखा है कि किस तरह से ED, IT और CBI जैसी एजेंसियों का विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए खुलेआम दुरुपयोग हो रहा है'

 

वहीं, लोकसभा में जब इस बिल को पेश किया गया तो कई विपक्षी सांसदों ने इसका जमकर विरोध किया। AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी से लेकर कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी और केसी वेणुगोपाल ने इसका विरोध किया। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने अमित शाह से इन बिलों को वापस लेने की मांग की। उन्होंने कहा कि यह बिल उचित प्रक्रिया को दरकिनार करते हैं और जांच अधिकारी को 'भारत के प्रधानमंत्री का बॉस' बनाते हैं।

 

असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि 'यह बिल जांच एजेंसियों को आरोपों और शक के आधार पर जज और जल्लाद बनने की खुली छूट देता है। यह सरकार पुलिस स्टेट बनाने पर तुली है। यह निर्वाचित सरकार के लिए मौत की कील होगी। इस देश को पुलिस राज्य में बदलने के लिए भारत के संविधान में संशोधन किया जा रहा है' उन्होंने इसकी तुलना नाजी जर्मनी की सीक्रेट पुलिस सर्विस 'गेस्टापो' से की।

 

 

कई मुख्यमंत्रियों ने भी इसका विरोध किया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि यह भारत में लोकतांत्रिक युग को हमेशा के लिए 'खत्म' कर देगा। उन्होंने कहा कि यह 'महा-आपातकाल' से भी बड़ा कदम है और इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खत्म कर देगा।

 

 

तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने X पर पोस्ट करते हुए लिखा, 'तानाशाही इसी तरह शुरू होती है। वोट चुराओ, विरोधियों को चुप कराओ और सरकारों को कुचलो' उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र की बीजेपी सरकार भारत को तानाशाही में बदलकर संविधान और उसकी लोकतांत्रिक नींव को कमजोर कर रही है। उन्होंने कहा, 'किसी भी उभरते हुए तानाशाह का पहला कदम अपने प्रतिद्वंद्वियों को गिरफ्तार करने और उन्हें पद से हटाने की शक्ति हासिल करना होता हैयह बिल ठीक यही करना चाहते हैं'

 

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संयुक्त समिति के पास भेजे गए बिल

विपक्ष ने आरोप लगाया कि इन बिलों को जल्दबाजी में लाया गया है। हालांकि, गृह मंत्री अमित शाह ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि इन बिलों को संसद की संयुक्त समिति के पास भेजा जा रहा है, जहां विपक्ष और दोनों सदनों के सदस्यों को सुझाव देने का मौका मिलेगा।

 

संसद की संयुक्त समिति में 31 सदस्य होंगे, जिन्हें लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा के सभापति चुनेंगे। इन बिलों को अब संयुक्त समिति के पास भेजा जाएगा। शीतकालीन सत्र से पहले यह समिति अपनी रिपोर्ट देगी और फिर इन बिलों को पेश किया जाएगा।

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