सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने घोषणा की है कि पंजाब की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तीन प्रमुख स्थान- अटारी, हुसैनीवाला और सादकी पर हर शाम होने वाली झंडा उतारने की रस्म- Beating Retreat Ceremony अब फिर से शुरू की जाएगी। इस आयोजन को 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद दोनों देशों के बीच बढ़े तनाव और सुरक्षा कारणों से कुछ समय के लिए आम जनता के लिए बंद कर दिया गया था। हालांकि, अब 21 मई से मीडियाकर्मियों के लिए और 22 मई से आम नागरिकों के लिए इस आयोजन को फिर से खोल दिया जाएगा।
बता दें कि 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' नाम का सैन्य अभियान चलाया था, जिसमें पाकिस्तान और PoK में कई आतंकी ठिकानों को नष्ट किया गया था। पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 निर्दोष लोग मारे गए थे, जिसमें 25 भारतीय और 1 नेपाली नागरिक शामिल था। इसके एक दिन बाद यानी 8 मई को, बीएसएफ ने 'सार्वजनिक सुरक्षा' का हवाला देते हुए इन तीनों जगहों पर लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी थी।
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हालांकि, बीएसएफ ने यह स्पष्ट किया कि इस दौरान भी झंडा उतारने की परंपरा रोज निभाई जाती रही, बस दर्शकों को उसमें भाग लेने की अनुमति नहीं थी। अब जब स्थिति नियंत्रण में है, तो यह कार्यक्रम फिर से आम जनता के लिए खोला जा रहा है लेकिन कुछ बदलावों के साथ।
क्या होंगे बदलाव?
- अब बीएसएफ और पाक रेंजर्स के बीच हाथ मिलाना नहीं होगा।
- सीमा द्वार (गेट) भी रस्म के दौरान नहीं खोले जाएंगे।
- समारोह की कुछ औपचारिकताएं सीमित कर दी गई हैं लेकिन झंडा उतारने की मूल परंपरा जारी रहेगी।
- कार्यक्रम का समय शाम 6 बजे निर्धारित किया गया है।
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इस रस्म का इतिहास
यह झंडा उतारने की रस्म भारत और पाकिस्तान की सीमा पर हर शाम होती है। सबसे प्रसिद्ध कार्यक्रम अटारी-वाघा सीमा पर होता है, जिसे देखने हजारों लोग रोज पहुंचते हैं। यह रस्म 1959 में शुरू हुई थी और इसका उद्देश्य सीमा पर तैनात दोनों देशों की सेनाओं के बीच सम्मानजनक संबंध और अनुशासन को दिखाना है। बीएसएफ के जवान पूरे जोश और तालमेल से परेड करते हैं और झंडे को सम्मानपूर्वक उतारते हैं।