भंवरी देवी: इंसाफ की तलाश में संवार दी महिलाओं की जिंदगी
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• JAIPUR 25 Oct 2024, (अपडेटेड 25 Oct 2024, 5:30 PM IST)
भंवरी देवी, दशकों बाद इंसाफ के लिए तरस रही हैं। उन्हें इंसाफ नहीं मिल पाया। बाल विवाह के खिलाफ काम करने वाली इस महिला के साथ जो कुछ भी हुआ, वह शर्मनाक है। पढ़ें इनकी कहानी।

भंवरी देवी रेप के वर्षों बाद आई थी विशाखा गाइडलाइन। उनकी वजह से महिला सुरक्षा से जुड़ा कानून बदल गया। (फोटो क्रेडिट- BBC)
कुछ लोग खुद पर जुल्म सहकर समाज को इतना कुछ दे जाते हैं, जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती। जुल्म उन पर होता है, वे अपने हक की लड़ाई लड़ते हैं और ऐसा सामाजिक बदलाव लेकर आते हैं, जिसकी वजह से आने वाली पीढ़ियों की नजरों में उनका कद इतना बढ़ जाता है, जिसे भुला पाना असंभव हो जाता है। भंवरी देवी की कहानी भी कुछ ऐसी है। राजस्थान के जिस जयपुर को देखने दुनियाभर से लोग आते हैं, वहीं से कुछ किलोमीटर दूर, एक छोटा सा गांव है भटेरी। यह गांव गुर्जरों का है। गुर्जर समुदाय, इस गांव का बहुसंख्यक समाज है। जिन जातियों को अति पिछड़े का दर्जा मिला है, उनमें से ही एक जाति है कुम्हार। भंवरी देवी इसी जाति से आती हैं। भंवरी देवी ने लेकिन जो काम किया, वह इतना बड़ा है कि जिसके लिए देश की सारी जाति और धर्म की महिलाएं, उनकी ऋणी रहेंगी।
राजस्थान में महिलाओं की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। 1980 के दशक में तो स्थितियां और भयावह थीं। एक बड़ा तबका, बेटियों को जन्मते ही मार डालता था, भ्रूणहत्या अपने चरम पर थी और लड़कियों को कम उम्र में ही ब्याह दिया जाता था। नवजात शिशुओं का भी ब्याह हो जाता है। राजस्थान की इन्हीं कुरीतियों के खिलाफ सरकार और सामाजिक संगठनों ने मुहिम चलाई। भंवरी देवी, उस मुहिम की अगुवा बन गईं। वे राजस्थान की ऐसी महिलावादी कार्यकर्ता बनीं, जिन्होंने सैकड़ों बच्चों की जिंदगियां बचाईं।
राजस्थान के गावों में ऊंच-नीच और जातिवाद अपने चरण पर था। सरकार ने इस दिशा में सुधार के लिए राज्य स्तर नई पहल की शुरुआत की। राज्य सरकार की ओर से महिला विकास कार्यक्रम में भंवरी देवी की तैनाती 'साथिन' के तौर पर हुई। साथिन, उन महिलाओं को कहा गया, जिनका मुख्य काम महिला उत्पीड़नों को रोकना था, बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाना था। वह महिलाओं के शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा को लेकर जागरूकता फैलाती थीं, घर-घर जाकर लोगों की मदद करती थीं। वे अपना काम कर रही थीं लेकिन उनके खिलाफ वहां का प्रभावशाली गुर्जर समुदाय भड़क गया। इस समुदाय के लोगों की आंखों में वे किरकिरी बन गई थीं।
जातीय हिंसा की भी शिकार हुईं भंवरी
भंवरी देवी पहली बार चर्चा में तब आईं, जब साल 1987 में उन्होंने पड़ोस के एक गांव में हुए बलात्कार के मुद्दे पर अपनी आवाज उठाई। उनके गांव के लोग, भंवरी देवी के साथ खड़े हो गए। वे महिला अधिकारों पर जमकर बोलतीं। बाल विवाह रुकवातीं लेकिन एक केस में उनका मुखर होना, गुर्जर समुदाय के कुछ लोगों को अखर गया। साल 1992 तक, भंवरी देवी बाल विवाह रोकने वाली ऐसी सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर प्रसिद्ध हो गई थीं जिन्हें रूढ़ीवादी लोग सख्त नापसंद करते थे। साल 1992 में ही राज्य सरकार ने 'आखा तीज' के दिन बाल विवाह रोकने के लिए कैंपेन लॉन्च कर दिया। आखा तीज, हिंदुओं का प्रसिद्ध त्योहार 'अक्षय तृतिया' ही है। इस दिन राजस्थान में बड़े स्तर पर बाल विवाह होते थे। इसे रोकने के लिए ही भंवरी देवी ने ऐसी दुश्मनी मोल ली, जिसकी बड़ी कीमत उन्हें चुकानी पड़ी।
भंवरी देवी, अक्षय तृतिया के दिन गांव में होने वाले बाल विवाहों के खिलाफ अलख जगाती रहीं। वे आवाज उठाती रहीं, जिसे गुर्जर समुदाय के लोग खारिज करते रहे। भंवरी देवी, महिला विकास योजना में काम कर रहे कार्यकर्ताओं के साथ अपने भातेरी गांव में भी बाल विवाह को रोकने के लिए कोशिशें करती रहीं। भंवरी देवी के खिलाफ ग्राम प्रधान तक उतर आया। योजना ये थी कि एक गुर्जर परिवार में इसी दिन शादी होगी।
राम करण गुर्जर के परिवार ने तय किया कि इसी दिन अपनी एक साल से भी कम उम्र की बेटी की शादी रचाएंगे।भंवरी देवी ने तत्काल सब डिविजन अधिकारी (SDO) को बुलाया, उन्होंने डिप्टी सुप्रिटेंडेंट ऑफ पुलिस (DSP) को भी बुला लिया। एक के बाद एक कई दौरे हुए, जिसकी वजह से बाल-विवाह नहीं हो पाया। अगले दिन, अक्षय तृतिया के ही दिन, दोपहर 2 बजे यह शादी संपन्न हो गई। यह पुलिस की जानकारी में हुआ लेकिन किसी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी। गांव में भंवरी देवी ने इस मुहिम को छेड़कर आफत मोल ले ली। लोग भंवरी देवी के परिवार का बहिष्कार करने लगे। उनके घर के बनाए गए बर्तनों को लोग खरीदने से कतराने लगे, उनके पति को लोग पीटने लगे। गुजर्रों के एक गुट ने पति को पीट भी दिया।
22 सितंबर 1992 को भंवरी देवी अपने पति के साथ खेत में काम कर रही थीं, तभी 5 लोगों का एक झुंड आया और उनके साथ छेड़छाड़ करने लगा। भंवरी देवी के पति मोहन लाल को ऐसे मारा कि वे बेहोश हो गए। राम करण, राम सुख, ग्यारसा, बद्री और श्रवण शर्मा के नाम के लोगों ने भंवरी देवी के साथ गैंगरेप किया। ग्यारसा और बद्री ने उनका रेप किया। भंवरी देवी ने कहा कि ग्यारसा और बद्री ने उनके साथ गैंगरेप किया, तीन अन्य आरोपियों ने उन्हें दबोचे रखा। भंवरी देवा ने इस केस की शिकायत पहले महिला विकास योजना के प्रचेता को द, जिसने बस्सी पुलिस स्टेशन में एक प्राथमिकी (FIR) दर्ज कराई। इस केस में सभी ऊंची जातियां एकजुट हो गई थीं और भंवरी देवी के उत्पीड़न से ग्राम प्रधान से लेकर कोर्ट तक का रुख ऐसा रहा, जो संदेहास्पद रहा।
कोर्ट ने क्या कहा था?
इस केस में सेशन कोर्ट ने जो फैसला सुनाया, उसकी देशव्यापी आलोचना हुई। कोर्ट ने कहा कि कोई पति, अपनी पत्नी के साथ हो रहे गैंगरेप को देख नहीं सकता है। कोर्ट ने कहा कि किसी ऊंची जाति का पुरुष, नीची जाति की महिला के साथ बलात्कार नहीं कर सकता है। कोर्ट ने यहां तक कह दिया था कि आरोपी ऊंची जाति के थे, एक ब्राह्मण पर भी आरोप लगे थे, वे नीची जाति के महिला के साथ रेप नहीं कर सकते हैं। सबूतों के अभाव में आरोपी बरी हो गए। राज्य सरकार, कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट पहुंची। साल 2007 में डेढ़ दशक के बाद तक सिर्फ एक सुनवाई हुई। दो दशक से ज्यादा वक्त बीत चुका है। 4 आरोपी मर चुके हैं लेकिन भंवरी को आज भी इंसाफ का इंतजार है। बद्री बचा है, उसे जेल की सलाखों के पीछे भंवरी देखना चाहती हैं लेकिन ऐसा होना अभी मुमकिन नहीं लग रहा है। भंवरी को इंसाफ भले ही न मिला हो, उनकी वजह से भारतीय दंड संहिता (IPC) बदली, विशाखा गाइडलाइंस की वजह से कामकाजी महिलाओं की स्थिति बदली, जिसे कभी अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
कैसे पड़ी भंवरी देवी केस की नींव?
भंवरी देवी के साथ गैंगरेप साल 1992 में हुआ था। वर्षों के अन्याय के बाद विशाखा एनजीओ और कुछ सामाजिक संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख करने की ठानी। साल 1997 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई। केंद्र सरकार और राज्य सरकार के खिलाफ दायर इस याचिका में कामकाजी महिलाओं को अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत कुछ अधिकार मांगे गए। अनुच्छेद 14, विधि के समक्ष समता, अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा से संबंधित है। भंवरी देवी के साथ हुए कुख्यात गैंगरेप केस में इंसाफ भी मांगा गया। उन्होंने बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाई तो उनके साथ ये सलूक किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने मूल अधिकारों से जुड़े प्रावधानों की व्याख्या कुछ अंतरराष्ट्रीय अधिवेशनों का जिक्र करते हुए किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सम्मान के साथ लैंगिक समानता, महिला का हक है, वह सम्मान के साथ अपना काम कर सकती है। यही केस, 'विशाखा गाइडलाइंस' की वजह बना। इन गाइडलाइंस को जस्टिस जेएस वर्मा, जस्टिस सुजाता मनोहर और जस्टिस बीएन कृपाल की बेंच ने जारी किया था। कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़नों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की उस अपूर्णता को दुरुस्त किया, जिसे सुधारने की मांग एक अरसे से की जा रही थी। कामकाजी महिलाओं के लिए यह गाइडलाइन, वरदान बनकर सामने आई।
विशाखा गाइडलाइंस से जुड़ी पढ़ें एक-एक डीटेल-
सुप्रीम कोर्ट ने इस केस की सुनवाई के बाद महिला सुरक्षा को लेकर जो गाइडलाइन जारी की, वह विधि द्वारा प्रवर्तनीय बनाया गया। पहले भारतीय नागरिक और आपराधिक कानूनों में महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर सुरक्षा देने को लेकर स्पष्ट दिशानिर्देश और कानून नहीं बने थे। इस गाइडलाइन के बाद महिलाओं को बड़ी सुरक्षा मिली।
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी गाइडलाइन में कहा कि यह नियोक्ता का दायित्व होगा कि वह कार्यस्थल पर तैनात महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोके, अगर उनके सात कुछ ऐशा होता है तो कानूनी कार्यवाही करेगे, उनकी सुरक्षा के लिए हर वह कदम उठाए, जो जरूरी हो। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की परिभाषा भी तय की गई। अगर कोई पुरुष, किसी महिला के शरीर को छूता है या छूने की कोशिश करता है, अंतरंगता के लिए कहता है, गंदे इशारे करता है, बयान देता है, पॉर्नोग्रॉफिक कंटेंट दिखाता है या ऐसा कोई काम करता है, जिसकी प्रकृति यौन अपराधों से जुड़ी है तो यह महिला का यौन उत्पीड़न है।
गाइडलाइन के मुताबिक अगर प्राइवेट हों या सरकारी संस्थान हों, अगर महिलाओं का यौन उत्पीड़न होता है तो इसके खिलाफ वे सभी जरूरी कदम उठाएं। इसके लिए जागरूकता पैदा करें। सरकारी और प्राइवेट संस्थानों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए नियम बनाए जाएं। आरोपी के खिलाफ कड़े कदम उठाए जाएं। कार्यस्थल पर काम करने का उचित माहौल हो।
आरोपी के खिलाफ आपराधिक केस चले। इसे चलवाने की जिम्मेदारी भी नियोक्ता की ही होगी। महिला की शिकायत पर जल्द से जल्द एक्शन लिया जाए। हर संस्थान में एक शिकायत समिति हो, जिसकी अध्यक्षता एक हमिला करे, समिति के सदस्यों में आधे से ज्यादा महिलाएं हों, वरिष्ठ स्तर पर कोई अवैधानिक दबाव न हो, यह समिति जांच के लिए एक एनजीओ या किसी बाहरी निकाय की भी मदद ले सकती है।
शिकायत समिति वार्षित तौर पर सरकार को रिपोर्ट भेजे और ऐसे मामलों के निपटारे से संबंधित बातें भी सरकार को बताए। संस्था समय-समय पर यौन अपराधों से जुड़े जागरूकता बैठकों का आयोजन करे। विशाखा गाइडलाइन, महज सुप्रीम कोर्ट का एक निर्देश ही नहीं है बल्कि कानूनी तौर पर बाध्य भी है। इसके उल्लंघन होने की दिशा में कोर्ट का रुख किया जा सकता है।
विशाखा गाइडलाइंस से पहले कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों का निपटारा, धारा 354 और 509 के तहत होता था। धारा 354, छेड़छाड़ से संबंधित है और 509 किसी महिला के शील भंग से संबंधित है। विशाखा गाइडलाइंस के आधार पर ही साल 2013 में सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ वुमन एट वर्क प्लेस एक्ट आया। इस एक्ट में भी विशाखा गाइडलाइंस का स्पष्ट प्रभाव झलका। यह अधिनियम भी लैंगिक समानता, यौन उत्पीड़ के खिलाफ कानून और भयमुक्त कार्यस्थल बनाने के लिए अधिनियमित किया गया है।
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