logo

ट्रेंडिंग:

300 महिलाओं की वीरता की गवाही देता भुज एयरबेस, जहां पहुंचे राजनाथ सिंह

आज हम आपको भुज के माधापुर की 300 वीर महिलाओं की ऐसी कहानी बताएंगे, जिसे जानकर आप भी उनके साहस और जज्बे को सलाम किए बिना नहीं रह पाएंगे।

Brave 300 women built Gujarat Bhuj runway in just 72 hours

भुज एयरबेस, Photo Credit: Facebook/Indian Air Force page

भारत और पाकिस्तान के बीच 19 दिनों तक चला तनावपूर्ण दौर आखिरकार सीजफायर के साथ खत्म हुआ। इसके बाद 16 मई को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कच्छ के भुज स्थित एयरबेस पहुंचे। हाल ही में पाकिस्तान के साथ हुए सैन्य संघर्ष के दौरान कच्छ जिले में कई ड्रोन बरामद किए गए थे और भुज एयरबेस पर ड्रोन हमले की भी कोशिश की गई थी, जिसे भारतीय सुरक्षा बलों ने नाकाम कर दिया। भुज एयरबेस सिर्फ एक सैन्य ठिकाना नहीं, बल्कि यह भारत और खासकर गुजरात की साहसी और वीर महिलाओं के योगदान का गवाह भी है। यह एयरबेस एक गौरवशाली इतिहास से जुड़ा हुआ है। 

 

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भुज में एक ऐसी घटना हुई, जो आज भी देशभक्ति और नारी शक्ति की मिसाल है। उस समय पाकिस्तानी वायुसेना ने भुज के रुद्र माता एयरबेस पर जोरदार हमले किए थे। 8 दिसंबर, 1971 की रात को पाकिस्तानी जेट विमानों ने 14 नापलम बम गिराए, जिससे एयरस्ट्रिप पूरी तरह बर्बाद हो गई। इस वजह से भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान उड़ान नहीं भर पा रहे थे और यह भारत के लिए बड़ा खतरा था क्योंकि भुज का एयरबेस कराची के बहुत करीब था। 

 

यह भी पढ़ें: 'PAK को प्रोबेशन पर रखा है नहीं सुधरा तो...', भुज में बोले रक्षामंत्री

क्या हुआ था?

पाकिस्तान ने 14 दिनों में भुज एयरबेस पर 35 बार हमले किए, जिसमें 92 बम और 22 रॉकेट दागे गए। एयरस्ट्रिप को जल्दी ठीक करना जरूरी था लेकिन भारतीय वायुसेना के पास इतने मजदूर नहीं थे। उस समय भुज एयरबेस के इंचार्ज स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक थे। उन्होंने पास के माधापार गांव से मदद मांगी। गांव की करीब 300 महिलाओं ने बिना डरे सेना की मदद के लिए हामी भरी। 

 

महिलाओं ने कैसे की मदद?

72 घंटे में कमाल: इन महिलाओं ने दिन-रात मेहनत करके सिर्फ 72 घंटों में क्षतिग्रस्त एयरस्ट्रिप को दोबारा तैयार कर दिया। यह इतना बड़ा काम था कि इसे असंभव माना जा रहा था। 

 

खतरे के बीच काम: पाकिस्तानी विमान बार-बार बमबारी कर रहे थे। जब हमला होता, तो सायरन बजता और महिलाएं झाड़ियों में छिप जातीं। सायरन बंद होने पर वे फिर काम शुरू कर देतीं। 

 

छिपने की तरकीब: दुश्मन की नजर से बचने के लिए महिलाओं ने हल्की हरी साड़ियां पहनीं। एयरस्ट्रिप को छिपाने के लिए गाय के गोबर का भी इस्तेमाल किया गया ताकि ऊपर से यह सामान्य जमीन जैसी दिखे। 

 

देशभक्ति का जज्बा: इन महिलाओं ने अपने बच्चों को पड़ोसियों को सौंप दिया और भूख-प्यास भूलकर काम किया। उनकी बहादुरी की वजह से भारतीय वायुसेना फिर से उड़ान भर सकी और युद्ध में पाकिस्तान को जवाब दे सकी। 

 

यह भी पढ़ें: भारतीय हथियारों का लोहा मान रही दुनिया, चीन को मिलेगी बड़ी चुनौती

कौन थीं ये महिलाएं?

माधापार गांव की ये महिलाएं साधारण गृहिणियां थीं, जिनमें वालाबेन, हीरूबेन भूदिया, कनबाई शिवजी हिरानी जैसी वीरांगनाएं शामिल थीं। उनकी उम्र और अनुभव अलग-अलग थे लेकिन देश के लिए उनका जज्बा एक था। 

 


विजय कार्णिक का योगदान

स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक ने न केवल एयरबेस को संभाला, बल्कि गांव वालों को एकजुट करके इस असंभव काम को संभव बनाया। उनकी सूझबूझ और नेतृत्व ने महिलाओं को प्रेरित किया। बाद में इन महिलाओं की मुलाकात तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी हुई, जिन्होंने उनकी तारीफ की। 

 

यह भी पढ़ें: मार खाने के बाद भी नहीं सुधर रहा पाकिस्तान, अब फिर दी गीदड़ भभकी


सम्मान 

वर्ष 2018 में भारत सरकार ने इन 300 महिलाओं के सम्मान में भुज के पास एक युद्ध स्मारक बनाया। 2021 में बॉलीवुड फिल्म 'भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया' में इस कहानी को दिखाया गया, जिसमें अजय देवगन ने विजय कार्णिक का किरदार निभाया। आज भी माधापार की ये वीरांगनाएं और उनकी कहानी हर भारतीय को गर्व से भर देती है। इससे यह समझ आता है कि युद्ध सिर्फ सैनिकों से नहीं जीता जाता। जब देश पर संकट आता है, तो आम लोग भी अपनी हिम्मत और मेहनत से इतिहास रच सकते हैं। भुज की इन महिलाओं ने साबित किया कि देशभक्ति का जज्बा किसी भी मुश्किल को आसान बना सकता है। 

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap