logo

ट्रेंडिंग:

इमरजेंसी के 50 साल, कांग्रेस को इतिहास याद दिला रही BJP

बीजेपी इंदिरा गांधी द्वारा 25 जून 1975 को इमरजेंसी लगाए जाने के विरोध में बुधवार को 'संविधान हत्या दिवस' के रूप में मना रही है।

rahul gandhi and amit shah। Photo Credit: PTI

राहुल गांधी और अमित शाह । Photo Credit: PTI

25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी। बीजेपी हमेशा से इसे लेकर कांग्रेस को घेरती आई है। इस साल बीजेपी इसे 'संविधान हत्या दिवस' के रूप में मना रही है। कांग्रेस समय समय पर पीएम मोदी के तानाशाह होने का आरोप लगाती रहती है उसके काउंटर में बीजेपी हमेशा इमरजेंसी की याद दिलाती है। बीजेपी के मुताबिक यह दिन न केवल संविधान के दुरुपयोग की याद दिलाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सत्ता की भूख लोकतांत्रिक मूल्यों को कैसे कुचल सकती है। आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर, 25 जून 2025 को देशभर में बीजेपी अलग अलग तरीके से कांग्रेस और इंदिरा गांधी पर हमलावर हो रही है।

 

बीजेपी का आरोप है कि आपातकाल के दौरान संवैधानिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया, विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया था, प्रेस पर सेंसरशिप लागू की गई और लोगों की स्वतंत्रताएं छीन ली गईं। इंदिरा गांधी ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी बताया था, लेकिन बीजेपी इसे सत्ता बचाने की साजिश मानती है।

 

यह भी पढ़ेंः 'हमने टेक्निकल इशू दूर कर दिया', 3 विधायकों को निकालने पर बोले अखिलेश

क्या है बीजेपी की मंशा

बीजेपी ने पिछले साल से ही 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला किया था। 2025 में इसके 50 साल पूरे होने पर पार्टी पूरे दमखम से इसे मना रही है। पार्टी का कहना है कि इस दिन को मनाने का उद्देश्य नई पीढ़ी को आपातकाल के काले अध्याय से अवगत कराना है। बीजेपी इसका इस्तेमाल कांग्रेस को राजनीतिक रूप से घेरने के लिए करती है।

बीजेपी नेताओं के हालिया बयान

बीजेपी नेताओं ने आपातकाल की बरसी पर कांग्रेस और इंदिरा गांधी पर तीखी टिप्पणियां की हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, 'आपातकाल कोई मजबूरी या परिस्थिति नहीं थी, बल्कि यह तानाशाही मानसिकता और सत्ता की भूख की उपज था।'  अमित शाह ने कहा कि यह पूछा जा सकता है कि आखिर इसे क्यों मनाया जा रहा है तो मेरा कहना है कि किसी भी अच्छी या बुरी घटना को 50 साल हो जाते हैं तो लोगों में याद उसके बारे में धूमिल पड़ने लगती है। जबकि इमरजेंसी जैसी घटना जिसने कि लोकतंत्र को हिला के रख दिया था भुला दी जाती है तो यह देश के लिए काफी नुकसानदायक है। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग आज संविधा के रक्षक बने हुए हुए हैं वे कभी संविधान के भक्षक थे उनका कहना है कि इमरजेंसी को लोगो के अधिकारों की रक्षा के लिए था लेकिन वास्तव में यह खुद के पावर की रक्षा के लिए था।

 

 

पीएम मोदी ने कहा, 'जब आपातकाल लगाया गया था, तब मैं आरएसएस का युवा प्रचारक था। आपातकाल विरोधी आंदोलन मेरे लिए सीखने का एक अनुभव था। इसने हमारे लोकतांत्रिक ढांचे को बचाए रखने की अहमियत को फिर से पुष्ट किया। साथ ही मुझे राजनीतिक स्पेक्ट्रम के सभी लोगों से बहुत कुछ सीखने को मिला। मुझे खुशी है कि ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन ने उन अनुभवों में से कुछ को एक किताब के रूप में संकलित किया है, जिसकी प्रस्तावना एचडी देवेगौड़ा ने लिखी है, जो खुद आपातकाल विरोधी आंदोलन के एक दिग्गज थे।' 

 

 

वहीं बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा, 'जेपी नड्डा ने कहा कि विपक्षी पार्टी ने अभी तक आपातकाल के लिए माफी नहीं मांगी है। आपातकाल जून 1975 से मार्च 1977 के बीच का 21 महीने का काल था, जिसके दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया था, प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी थी और नागरिक स्वतंत्रता को निलंबित कर दिया था।'

 

विपक्ष का जवाब

 

वहीं कांग्रेस ने आपातकाल के 50 साल पूरा होने के मौके पर बीजेपी के हमले को लेकर पलटवार किया और आरोप लगाया कि पिछले 11 वर्षों से देश में अघोषित आपातकाल है तथा लोकतंत्र पर अलग-अलग दिशाओं से संगठित एवं खतरनाक हमले किए जा रहे हैं। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने दावा किया कि मोदी सरकार में संविधान पर हमले हो रहे है, राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ जांच एजेंसियो का दुरुपयोग किया जा रहा है, संसदीय परंपराओं को तार-तार किया जा रहा है, न्यायपालिका को कमजोर किया जा रहा है और अब निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लग चुके हैं। रमेश ने एक बयान में कहा, '11 साल से अघोषित आपातकाल है। पिछले 11 वर्ष और तीस दिन से भारतीय लोकतंत्र पांच दिशाओं से हो रहे एक संगठित और खतरनाक हमले की चपेट में है।' उन्होंने दावा किया, 'संविधान पर हमले हो रहे हैं। संविधान बदलने के लिए जनादेश की मांग की गई। प्रधानमंत्री ने 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की विरासत को धोखा देने के इरादे से 'चार सौ पार’’ का जनादेश भारत की जनता से मांगा था ताकि संविधान बदल सकें। लेकिन भारत की जनता ने उन्हें यह जनादेश देने से मना कर दिया।'

 

 

वरिष्ठ सपा नेता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि जब आपातकाल लगाया गया और उसके बाद संघर्ष हुआ, तो यह दूसरा स्वतंत्रता संग्राम बन गया। मैं भी एक राजनीतिक कार्यकर्ता हूं और उस संघर्ष में सक्रिय था, मैंने इसे देखा... देश की स्थिति भयावह थी, कोई बोल या लिख नहीं सकता था। प्रेस पर पूरी तरह से सेंसरशिप थी... वर्तमान स्थिति उस पिछली स्थिति से काफी मिलती-जुलती है। आज अघोषित आपातकाल है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है। सरकार के खिलाफ बोलने वाले किसी भी व्यक्ति पर मुकदमा चलाया जाता है, मनगढ़ंत मुकदमे चलाए जाते हैं और उसे गिरफ्तार किया जाता है। आज भी सच्ची राजनीतिक स्वतंत्रता का अभाव है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान स्थापित मूल्यों और भारत की स्वतंत्रता के उद्देश्य की अवहेलना की जाती है।'

क्या है इमरजेंसी की कहानी

आपातकाल की कहानी 1975 में इंदिरा गांधी के राजनीतिक संकट से शुरू होती है। 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने रायबरेली से जीत हासिल की थी, लेकिन उनके प्रतिद्वंद्वी राजनारायण ने इस जीत को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने 12 जून 1975 को फैसला सुनाया कि इंदिरा ने चुनाव में सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग किया, जिसके चलते उनकी संसद सदस्यता रद्द कर दी गई। इस फैसले ने इंदिरा गांधी की सत्ता को खतरे में डाल दिया।

 

इसके साथ ही, देश में आर्थिक अस्थिरता, महंगाई और जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चल रहे 'संपूर्ण क्रांति' आंदोलन ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। इंदिरा गांधी ने इन परिस्थितियों को आधार बनाकर 25 जून 1975 की रात को संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा की। राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने इस घोषणा पर हस्ताक्षर किए, और देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को ठप कर दिया गया।

 

यह भी पढ़ें- कांवड़ कमेटी को वित्तीय सहायता देगी दिल्ली सरकार, मुफ्त मिलेगी बिजली

 

आपातकाल लागू होने के तुरंत बाद, विपक्षी नेताओं जैसे जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, और लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया। प्रेस पर सख्त सेंसरशिप लागू की गई, और समाचार पत्रों को सरकार की मंजूरी के बिना कुछ भी प्रकाशित करने की अनुमति नहीं थी। नागरिकों के मौलिक अधिकार, जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विरोध करने का अधिकार, निलंबित कर दिए गए। करीब 1,10,000 लोगों को बिना मुकदमे के जेल में डाल दिया गया, और जबरन नसबंदी जैसे अमानवीय कदम उठाए गए।

लोगों में था गुस्सा

आपातकाल के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आजादी, और नागरिक अधिकारों का हनन होने के कारण लोगों में काफी गुस्सा था। इसके अलावा इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने जोर-शोर से जबरन नसबंदी अभियान चलाया जिसकी वजह से भी लोगों में काफी गुस्सा था। इस दौर में संविधान में भी कई संशोधन किए गए, जिन्हें बाद में जनता पार्टी की सरकार ने वापस लिया।

 

Related Topic:#Emergency

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap