परिसीमन को लेकर काफी दिन से बवाल हो रहा है। तमिलनाडु के सीएम स्टालिन दावा कर रहे हैं कि अगर जनसंख्या के आधार पर परिसीमन हुआ तो राज्य की लोकसभा सीटें कम हो जाएंगी। केंद्र सरकार इन दावों को खारिज कर रही है। इस बीच बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने आखिरी बार हुए परिसीमन को लेकर दावा किया है कि 1973 में कांग्रेस शासित राज्यों में सीटें बढ़ाई गई थीं। इस दौरान उन्होंने 1973 के परिसीमन कानून की कॉपी भी दिखाई।
बुधवार को संसद में निशिकांत दुबे ने कहा, 'कांग्रेस ने परिसीमन के लिए जनसंख्या को मानक बनाने की वकालत की थी। 1973 में हुए परिसीमन में उत्तर प्रदेश में सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ था। यहां जनसंख्या की बात मत कीजिए। यहां तक कि तमिलनाडु में भी सीटें नहीं बढ़ाई गई थीं। केवल कांग्रेस शासित राज्यों की सीटें बढ़ीं, चाहे वह मध्य प्रदेश हो, महाराष्ट्र हो या फिर राजस्थान।'
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1973 में क्या हुआ था?
हमारे देश में अब तक 4 बार- 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन की प्रक्रिया हुई है। हालांकि, आखिरी बार 1973 में लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ाई गई थी। 2002 में परिसीमन हुआ था लेकिन सीटें नहीं बढ़ी थीं बल्कि उनकी सीमाओं में बदलाव हुआ था।
1952 के लोकसभा चुनाव में 494 लोकसभा सीटें थीं। 1963 में परिसीमन के बाद सीटों की संख्या बढ़कर 520 हो गई थी। 1973 में यह और बढ़कर 545 तक हो गई। उस वक्त हुए परिसीमन के बाद किसी भी राज्य में लोकसभा सीटों की संख्या कम नहीं हुई थी। 545 में से 525 सीटें राज्यों को और 20 सीटें केंद्र शासित प्रदेशों को मिली थीं।
1973 के परिसीमन के बाद 13 राज्य ऐसे थे, जहां लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ाई गई थी। वहीं, 18 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ऐसे थे, जहां सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ था।
सबसे ज्यादा फायदा मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र को हुआ था। यहां 3-3 लोकसभा सीटें बढ़ी थीं। इनके बाद गुजरात, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में 2-2 सीटें बढ़ाई गई थीं। आंध्र प्रदेश, बिहार, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, ओडिशा, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में 1-1 सीट बढ़ी थी। तमिलनाडु में 39 सीटें ही रखी गई थीं। उत्तर प्रदेश में तब 85 सीटें होती थीं, क्योंकि उत्तराखंड अलग राज्य नहीं बना था। साल 2000 में उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद यूपी में 80 सीटें हो गईं।
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जब घट गई थी तमिलनाडु की सीट
1962 के लोकसभा चुनाव तक तमिलनाडु में 41 सीटें होती थीं। तब इसे मद्रास कहा जाता था। हालांकि, 1963 के परिसीमन के बाद दो सीटें कम होकर 39 हो गई थीं। हालांकि, उत्तर प्रदेश की भी 1 सीट कम हो गई थी।
दिसंबर 1972 में जब परिसीमन को लेकर बिल पेश हुआ था, तब संसद में इस पर हंगामा भी हुआ था। तब डीएमके सांसद ईआर कृष्णन ने कहा था, 'केंद्र सरकार बार-बार इस बात पर जोर देती है कि जब तक आबादी को नियंत्रित नहीं किया जाता, तब तक आर्थिक विकास नहीं हो सकता। अगर कोई राज्य इसका पालन करता है और फैमिली प्लानिंग को लागू करता है तो उसे लोकसभा में उचित प्रतिनिधित्व से वंचित कर दिया जाता है। अगर फैमिली प्लानिंग को लागू करने का यही इनाम मिलने वाला है तो कुछ राज्य इसे छोड़ भी सकते हैं।'
संसद में बिल पर जोरदार बहस हुई थी। कुछ सांसदों ने लोकसभा की सीटें बढ़ाकर 570 करने की बात भी कही थी। हालांकि, तत्कालीन इंदिरा सरकार ने इन सभी को खारिज कर दिया था। आखिरकार यह बिल पास हो गया और लोकसभा सीटों की संख्या 545 तय हो गई।