logo

ट्रेंडिंग:

कैसे दुनिया को मिला 'खजुराहो' का कामशास्त्र?

खजुराहो के मंदिरों में कामशास्त्र की कलाएं, प्रतिमाओं के रूप में उकेरी गई हैं। क्या है खजुराहो का रहस्य, आइए जानते हैं।

Khajuraho

खजुराहों में मंदिरों का निर्माण चंदेल राजवंश ने कराया था। यहां के मंदिरों की मूर्ति कला, अद्भुत है। (इमेज क्रेडिट- wikipedia.org)

धरोहरें खो जाती हैं। राजाओं की कृतियां इतिहास के पन्नों में दब जाती हैं। घने जंगल इतिहास को गुम कर देते हैं, जिसमें दब जाती हैं किसी देश की संस्कृति, सभ्यता और अतीत से जुड़ी स्मृतियां। भरोसा नहीं होता तो जेजाकभुक्ति के चंदेलों का इतिहास पढ़ लीजिए। ये वही चंदेल हैं, जिनके बनवाए मंदिर, आज भी भारत के गौरवशाली ऐतिहासिक विरासत और शिल्पकला के प्रत्यक्ष हस्ताक्षर हैं।

चंदेल राजवंश। बुंदेलखंड के इस राजवंश की कहानी पौराणिक और मिथकीय है। मान्यता है कि चंदेल राजवंश, चंद्रमा देवता का वंश है। काशी के गहरवार राजवंश के राजा महाराज राव विद्याधर के राजपुरोहित हेमराज की बेटी हेमवंती, बहुत सुंदर थीं। किवदंति है कि इन्हीं हेमवती पर चंद्रलोक में रहने वाले देवता चंद्रमा मोहित हो गए। दोनों का मिलन हुआ तो चंदेल वंश के आदि पूर्वज चंद्र ब्रह्म पैदा हुए। इन्होंने चंद्रवंश की नींव रखी हैं।

चंदेल वंश का क्या है इतिहास?

बुंदेलखंड में इसी वंश के राजाओं ने 10वीं और 13वीं शताब्दी में शासन किया। इसी राजवंश ने बुंदेलखंड पर शासन किया और अनगिनत मंदिरों का निर्माण कराया। 13वीं शताब्दी तक इस राजवंश को कई चुनौतियां मिलीं। 500 वर्ष बाद उनका साम्राज्य भी खो गया और राजवंश भी। राजवंश की ओर से कराए गए निर्माण कुछ तोड़ गए, कुछ घने जंगलों में हमेशा के लिए खो गए।  800 साल बीत गए। ये इमारतें, ये मंदिर लुप्त रहे।

खजुराहो के मंदिर. 

किसने खोजा खजुराहो?
1938 में ब्रिटिश फौज के इंजीनियर टीएस बर्ट बुंदेलखंड आए। लोगों ने उन्हें बताया कि कुछ मंदिरों के खंडहर पड़े हैं, जिन्हें वे देख सकते हैं। बर्ड उन मंदिरों की तलाश में जुट गए। बुंदेलखंड के बीच जंगलों में जाकर उन्होंने खजुराहो को ढूंढ निकाला। खजुराहो मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है। अब केवल 24 मंदिर बचे हैं, जिन्हें पूर्व, पश्चिम और दक्षिण के मंदिरों में बांटा गया है।

कब विश्व धरोहर घोषित हुआ खजुराहो?

1986 में खजुराहो को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित कर दिया। ये मंदिर अपनी अनोखी शिल्प शैली के लिए प्रसिद्ध हैं। पश्चिमी मंदिरों का समूह बेहद प्रसिद्ध है। ये पत्थर की विशाल इमारते हैं, जिनके स्तंभों की शैली ऐसी है, जिन्हें देखकर आप यकीन नहीं कर पाएंगे। इन मंदिरों के बाहर जो कुछ भी है, उसमें प्राचीन भारत की झलक मिलती है। वेद और पौराणिक कहानियों की कलाकृतियां बनाई गई हैं।

कामकला की मूर्तियां कर देती हैं हैरान
90 प्रतिशत मूर्तियां, भारतीय संस्कृति को बयान करती हैं लेकिन 10 फीसदी जो मूर्ति हैं, वे चौंका देती हैं। आइए पहले जान लेते हैं खजुराहो की सांस्कृतिक विरासत।

मूर्ति पर 316 सवंत 922 ईस्वी का जिक्र मिलता है। यह खजुराहो में मिले अभिलेखों में सबसे पुराना होता है। 

क्या था खजुराहो का पुराना नाम?

खजुराहो, पुराने जमाने में खज्जुरावाहक कहालाता था। यह चंदेल राजवंश की राजधानी थी। इसे वत्स देश भी कहते थे। मध्य कालीन युग में इसे जेजाकभुक्ति के नाम से जाना गया। महोबा में जो अभिलेख मिले हैं, उनमें राजा कीर्तिवर्मन तक का जिक्र मिलता है। जेजाकभुक्ति नाम राजा जेजा के नाम पर पड़ा। यह राजवंश, निर्माण, कला और संस्कृति का पोषक राजवंश था। चंदोलों ने इस इलाके में तालाब, महल और कई भव्य मंदिरों के निर्माण कलाए, जिनका शिल्प देखते ही बनता है। चंदेल राजवंश की ओर से कराए गए निर्माण आज भी कलिंजर, अजयगढ़, जयपुर दुर्ग, दुधाई, चान्चपुर, मदनपुर और देवघड़ में नजर आते हैं। 

कैसे घटने लगा चंदेल राजवंश का दबदबा?

1020 इस्वी में जब विद्याधर की मृत्यु हुई तो चंदेल राजवंश का वैभव घटने लगा। खजुराहो के मंदिरों की उपेक्षा होने लगी। विदेशी यात्री इब्न बतूता जब, अफगानिस्तान के रास्ते 1334 ईसवी में भारत आया तो उस वक्त सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक का शासन चल रहा था। वह उत्तर अफ्रीका के मोरक्को के पास तांजियर का रहने वाला था। उसने खजुराहो के वैभव के बारे में लिखा कि कज्जर्रा खजुराहो में एक मील लंबा विशाल पोखर है, जिसके पास में मंदिर है, मूर्तियां हैं, जिन्हें रूढ़िविरोधियों ने तोड़ दिया है। मंदिर के पास में आज भी गर्भगृह, अंतराल, मंडल और अर्धमंडप बने हैं। खजुराहो के गर्भगृह का शिखर ऊंचे होते हैं, वहां का वास्तुशिल्प, देखकर लोग आज भी मोहित हो जाते हैं। खजुराहो के मंदिरों का निर्माण बलुआ पत्थरों से हुआ है। 

खजुराहो के मंदिर। (इमेज सोर्स- Wikipedia)

क्या है मंदिरों का शिल्प?
चौंसठ योगिनी, ब्रह्मा और ललगुआ महादेव मंदिरों में ग्रेनाइट पत्थर का इस्तेमाल हुआ है। मंदिरों में पन्ना की खदानों से लाए गए बलुआ पत्थर भी नजर आते हैं। खजुराहो के मंदिरों की वास्तुकला में एक समानता नजर आती है। मंदिर के सभी भाग एक-दूसरे से जुड़े हुए होते हैं और बेहइंतहा खूबसूरत लगते हैं। मंदिरों में परिक्रमा के लिए अलग से पथ भी बना है।  मंदिरों पर अलग-अलग देवी-देवताओं की सुंदर मूर्तियां बनी हैं। मंदिरों में मूर्तियों को ही 5 अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है। पहली श्रेणी की मूर्तियां धर्म से संबंधित हैं। द्वितिय श्रेणी में परिवार और अन्य देवताओं की मूर्तियां दिखती हैं। इनके आकार थोड़े उभरे हुए हैं और दीवारों के ही हिस्से लगते हैं।

 

तीसरे चरण में अप्सराओं की मूर्तियां हैं। इनके भाव बेहद मनमोहक हैं। नि:वस्त्र बनाया गया है, इनमें अंतरंगता झलकती है। खजुराहो की ये मूर्तियां कामुक हैं। कामसूत्र के कई आसन, मंदिरों में उकेरे गए हैं, जो चौंकाते हैं। अलग-अलग आसनों में भी मूर्तियां नजर आती हैं। ऐसी मूर्तियां, 10 फीसदी हिस्से में ही हैं लेकिन सबसे ज्यादा आकर्षण इन्हीं मंदिरों का है। चौथी श्रेणी की मूर्तियों में गुरु-शिष्य परंपरा, दीक्षा, गायन-वादन करती कलाकृतियां हैं। ये मुर्तियां जीवंत हैं। पांचवी श्रेणी की मूर्तियों में पशुओं की मूर्तिया हैं। गाय, बाघ, शेर जैसी कलाकृतियां उकेरी गई हैं।

खजुराहो में कौन-कौन से मंदिर हैं प्रसिद्ध?
खजुराहो का चौंसठ योगिनी मंदिर बहुत खास है। इसे सबसे पुराना मंदिर माना जाता है। मंदिर में 67 छोटो-छोटे हिस्से हैं। ये मंदिर अलग-अलग टुकड़ों में बंटा है लेकिन गर्भगृह एक है। मंदिर में योगिनियां अलग-अलग भाव भंगिमाओं में नजर आ रही हैं। मान्यता है कि यह मंदिर 9वीं शताब्दी के आखिरी सालों में बना है। ललगुवा का महादेव मंदिर भी बेहद प्रसिद्ध है। यह मंदिर भी 900 ईस्वी में बना था। मंदिर एक पोखरे के पास में है। मंदिर में ग्रेनाइट और बलुआ पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। मंदिर बहुत भव्य है। ब्रह्मा मंदिर भी बहुत सुंदर है। यह मंदिर भी इसी शैली में बना है। भगवान वाराह का मंदिर भी बहुत चर्चित है। इसके गर्भगृह में वाराह की प्रतिमा है।

मतंगेश्वर मंदिर भी 900 से 925 ईस्वी के मध्य में बना है। यह भगवान शिव का मंदिर है। लक्ष्मण मंदिर, भगवान विष्णु के बैकुंठ रूप को समर्पित है। इस मंदिर को चंदेल राजा यशोवर्मन या लक्ष्मणवर्मन ने बनवाया था।  विश्वनात मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में हुआ है। यह मंदिर पंचायतन शैली में बना है। यह मंदिर चंदेर राजवंश के राजा धंग ने बनवाया था। मंदिर में प्रवेश मंडप, गर्भगृह, अंतराल और प्रदीक्षणापद आज भी मौजूद हैं। इसी के पास नंदी मंदिर भी है। यहीं पार्वती मंदिर भी है। गर्भगृह में यहां मां पार्वती की प्रतिमा स्थापित है और मंदिर के ऊपरी हिस्से में भगवान विष्णु की प्रतिमा अंकित है। यहां सूर्य मंदिर, चित्रगुप्त मंदिर, जगदंबी मंदिर भी है।

कंदरिया महादेव मंदिर
खजुराहो का यह मंदिर सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह 1000 से 1050 ईस्वी में बना है। यह मंदिर पश्चिमी समूह का हिस्सा है। यह भगवान शिव का मंदिर है, जिसका मुख्य द्वार गुफा जैसा दिखता है। इसके चबूतरे बड़े हैं। बलुआ पत्थरों से निर्मित यह मंदिर बहुत सुंदर है। मंदिर की संरचना पंचायतन शैली में ही है। यहीं थोड़ी दूरी पर विध्वस्त शिव मंदिर है, यह मंदिर मां पार्वती का है। मंदिर के पास ही वामन और जवारी मंदिर है।

घंटई मंदिर 10वीं सदी में बना है। यह मंदिर जैन संप्रदाय से संबंधित है। इस पर 8 भुजाओं वाली एक यक्षिणी की प्रतिमा है, जिसे चकेश्वरी कहा गया है। यहीं भगवान पार्श्वनाथ का भी मंदिर है। यह मंदिर 950 से 970 ईस्वी के बीच में बना है। यहीं आदिनाथ मंदिर भी है। इस मंदिर का कुछ ही हिस्सा शेष बचा है।

दुल्हादेव मंदिर भी 1075 से 1100 ईस्वी के आसपास बना है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर खजुराहो की वास्तुकला से अलग है। यह निरंधार ऋृंखला समूह से अलग है। इस मंदिर में भगवान शिव को मकड़ी पर विराजमान दिखाया गया है।

चतुर्भुज मंदिर
ऐसा लगता है कि चंदेल राजवंश, शिव का उपासक थआ। यहां के चतुर्भुज मंदिर में भगवान शिव की चतुर्भुज प्रतिमा है। गर्भगृह में अलग-अलग प्रतिमाएं गढ़ी गई हैं लेकिन इस मंदिर में कामुक मूर्तियां नहीं हैं। गर्भगृह के पास ही भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की प्रतिमा बनी है। 

कौन करता है इन मंदिरों की देखरेख?
विश्व धरोहर होने के बाद अब इन मंदिरों पर दुनियाभर की नजरें हैं। साल 1953 में भारत सरकार ने खजुराहो के मंदिरों को पुरात्तव विभाग को सौंप दिया था। यही विभाग इनकी देखरेख और संरक्षण करता है।  

डिस्क्लेमर: यह आलेख, भारतीय पुरातत्व विभाग की जानकारियों पर आधारित है. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के बुकलेट पर इसका विस्तृत ब्यौरा आप पढ़ सकते हैं. पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap