तिब्बती बौद्ध धर्म के आध्यत्मिक नेता दलाई लामा ने अपनी नई किताब 'वॉयस फॉर द वॉयसलेस' में लिखा है कि उनका उत्तराधिकारी चीन के बाहर पैदा होगा। इससे चीन और तिब्बत के बीच विवाद बढ़ गया है।
6 दशक से भी अधिक समय पहले दलाई लामा चीन से तिब्बत भाग आए थे। 89 वर्षीय दलाई लामा ने कहा था कि आध्यात्मिक नेताओं की परंपरा उनकी मौत के साथ ही समाप्त हो जाएगा। हालांकि, तिब्बती चाहते हैं कि दलाई लामा की मौत के बाद भी संस्था जारी रहे।
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दलाई लामा की किताब में क्या?
दलाई लामा की किताब में साफ-साफ लिखा है कि उनके उत्तराधिकारी का जन्म स्वतंत्र दुनिया में होगा, जिसे वह चीन से बाहर बताते हैं। उन्होंने पहले कहा था कि वह तिब्बत के बाहर पुनर्जन्म ले सकते हैं।
अपनी किताब में दलाई लामा ने लिखा, 'चूंकि पुनर्जन्म का उद्देश्य पूर्ववर्ती के कार्य को आगे बढ़ाना है, इसलिए नए दलाई लामा का जन्म मुक्त विश्व में होगा, ताकि दलाई लामा का पारंपरिक मिशन- यानी सार्वभौमिक करुणा की आवाज बनना, तिब्बती बौद्ध धर्म का आध्यात्मिक नेता और तिब्बती लोगों की आकांक्षाओं को मूर्त रूप देने वाला तिब्बत का प्रतीक बनना - जारी रहे।'
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पारंपरिक रूप से दलाई लामा का चयन कैसे होता है?
तिब्बती बौद्ध परंपरा के अनुसार, दलाई लामा का चयन उनके पुनर्जन्म के माध्यम से किया जाता है। जब वर्तमान दलाई लामा का निधन होता है, तो वरिष्ठ लामाओं की एक समिति संकेतों और दृष्टियों के आधार पर नए दलाई लामा के पुनर्जन्म की पहचान करती है। यह प्रक्रिया तिब्बती धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार होती है।
चीन का दावा और तिब्बतियों की प्रतिक्रिया
चीन सरकार का दावा है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन का अधिकार उसके पास है। चीन का तर्क है कि ऐतिहासिक रूप से तिब्बत चीन का हिस्सा रहा है, इसलिए दलाई लामा के पुनर्जन्म की प्रक्रिया में उसकी भूमिका होनी चाहिए। दूसरी ओर, तिब्बती समुदाय और निर्वासित सरकार इस दावे को खारिज करते हैं। उनका मानना है कि दलाई लामा का पुनर्जन्म और चयन प्रक्रिया पूरी तरह से तिब्बती धार्मिक परंपराओं के अनुसार होनी चाहिए, जिसमें चीन की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए।
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वर्तमान दलाई लामा की स्थिति
वर्तमान दलाई लामा ने हाल ही में अपनी नई पुस्तक 'Voice for the Voiceless' में घोषणा की है कि उनका पुनर्जन्म चीन के बाहर होगा। उन्होंने अपने अनुयायियों से आग्रह किया है कि वह चीन द्वारा चुने गए किसी भी उत्तराधिकारी को स्वीकार न करें।
भारत के लिए महत्व
भारत में तिब्बती शरणार्थियों की एक बड़ी संख्या रहती है और दलाई लामा स्वयं भी 1959 से भारत में निर्वासन में हैं। इसलिए, दलाई लामा के उत्तराधिकारी का मुद्दा भारत के लिए भी महत्वपूर्ण है। भारत ने हमेशा तिब्बती सांस्कृतिक और धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन किया है और दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन में तिब्बती परंपराओं का सम्मान करने की वकालत की है।