दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को बहादुर शाह जफर द्वितीय के परपोते की विधवा सुल्ताना बेगम की लाल किले पर स्वामित्व का दावा करने की याचिका को खारिज कर दिया। दरअसल, याचिका दायर करने में हुई देरी का हवाला देते हुए न्यायालय ने यह याचिका खारिज कर दी।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरू और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले की सुनवाई की और कहा कि अपील ढाई साल देरी से आई है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हालांकि, सुल्तान बेगम ने बताया कि वह अपनी खराब सेहत और बेटी के निधन के कारण अपील दायर नहीं कर सकी थीं लेकिन कोर्ट ने उनकी इस दलील को मानने से इनकार कर दिया।
पूर्वजों से अवैध रूप से छीन लिया था लाल किला?
एडवोकेट विवेक मोरे के माध्यम से दायर याचिका में दावा किया गया है कि 1857 के बाद लाल किला उनके पूर्वजों से अवैध रूप से छीन लिया गया था। दरअसल, याचिकाकर्ता सुल्ताना बेगम दिल्ली में लाल किले की 'कानूनी वारिस' होने का दावा करती है। उनका कहना है कि वह मुगल राजा बहादुर शाह जफर-द्वितीय के पोते, दिवंगत मिर्जा मोहम्मद बेदार बख्त की विधवा हैं। उनके पति मिर्जा मोहम्मद बेदार बख्त की मृत्यु 22 मई, 1980 को हुई थी।
याचिका में की ये मांग
सुल्ताना बेगम ने अपनी याचिका में दावा किया था कि वह दिल्ली स्थित लाल किले की 'कानूनी उत्तराधिकारी' थीं, जिसे 1857 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अवैध रूप से अपने कब्जे में ले लिया था। याचिका में मांग की गई कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह या तो लाल किले को याचिकाकर्ता को सौंप दे या फिर भारत सरकार द्वारा स्मारक पर कथित 'अवैध कब्जे' के लिए 1857 से अब तक उसे पर्याप्त मुआवजा प्रदान करें।