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धार्मिक परेड में शामिल होने से किया था मना, HC  ने कहा बर्खास्तगी सही

सैमुअल कमलेसन ने अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी जिस पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने सेना के फैसले को सही ठहराया।

Delhi High court । Photo Credit: PTI

दिल्ली हाई कोर्ट । Photo Credit: PTI

दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में भारतीय सेना के एक अधिकारी की 2017 में की गई बर्खास्तगी को सही ठहराया है।सैमुअल कमलेसन नाम के इस अधिकारी को रेजिमेंट की साप्ताहिक धार्मिक परेड में भाग न लेने के कारण नौकरी से निकाला गया था। कमलेसन ने अपनी बर्खास्तगी, पेंशन और ग्रेच्युटी न मिलने के खिलाफ याचिका दायर की थी और अपनी नौकरी बहाल करने की मांग की थी। लेकिन 30 मई को जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की खंडपीठ ने इस मामले में सेना के फैसले को बरकरार रखा। अधिकारी ईसाई धर्म से ताल्लुक रखते हैं।

 

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि भारतीय सशस्त्र बलों में सभी धर्मों, जातियों, क्षेत्रों और विश्वासों के लोग शामिल हैं, जिनका एकमात्र उद्देश्य देश को बाहरी खतरों से बचाना है। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि सेना के जवान अपनी वर्दी से एकजुट होते हैं, न कि अपने धर्म, जाति या क्षेत्र से बंटे होते हैं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भले ही कुछ रेजिमेंट्स के नाम ऐतिहासिक रूप से किसी धर्म या क्षेत्र से जुड़े हों, लेकिन इससे सेना की धर्मनिरपेक्षता पर कोई असर नहीं पड़ता।

 

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कमलेसन का मामला

सैमुअल कमलेसन को मार्च 2017 में लेफ्टिनेंट के रूप में सेना में नियुक्त किया गया था। उन्हें 3rd कैवेलरी रेजिमेंट में भेजा गया, जिसमें सिख, जाट और राजपूत जवानों की तीन स्क्वॉड्रन हैं। कमलेसन को स्क्वॉड्रन बी का ट्रूप लीडर बनाया गया, जिसमें सिख जवान थे। कमलेसन ने अपनी याचिका में दावा किया कि उनकी रेजिमेंट में केवल मंदिर और गुरुद्वारा था, लेकिन सभी धर्मों के लिए कोई सर्व धर्म स्थल नहीं था। उन्होंने यह भी कहा कि वहां कोई चर्च नहीं था, जिसके कारण वे धार्मिक परेड में भाग नहीं ले पाए।

 

कोर्ट का नजरिया

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कमलेसन ने अपने धर्म को अपने वरिष्ठ अधिकारी के वैध आदेश से ऊपर रखा, जो अनुशासनहीनता का स्पष्ट उदाहरण है। कोर्ट ने माना कि आम नागरिकों को यह सजा कठोर लग सकती है, लेकिन सेना में अनुशासन का स्तर बहुत अलग और सख्त होता है। कोर्ट ने यह भी बताया कि सेना में कुछ युद्ध के नारे धार्मिक लग सकते हैं, लेकिन उनका उद्देश्य केवल जवानों में एकजुटता और प्रेरणा पैदा करना होता है। साथ ही, सेना अपने जवानों के धार्मिक विश्वासों का भी पूरा सम्मान करती है।

 

सेना की कार्रवाई

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि सेना ने कमलेसन को समझाने के लिए कई काउंसलिंग सत्र आयोजित किए थे। इसके बावजूद, उनकी अनुशासनहीनता रेजिमेंट की परंपराओं और जवानों के बीच भाईचारे को नुकसान पहुंचा रही थी। कोर्ट ने कहा कि कमलेसन का व्यवहार सेना की धर्मनिरपेक्ष परंपराओं के खिलाफ था। बर्खास्तगी का फैसला सावधानीपूर्वक विचार और परिस्थितियों के विश्लेषण के बाद लिया गया था।

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