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शारीरिक संबंध यौन उत्पीड़न नहीं... फिर कब माना जाता है रेप? समझें

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले में फैसला देते हुए कहा कि शारीरिक संबंध का मतलब यौन उत्पीड़न नहीं हो सकता। हाईकोर्ट ने इस मामले में आरोपी को बरी कर दिया। ऐसे में समझते हैं कि किन परिस्थितियों में शारीरिक संबंध को रेप माना जाता है।

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दिल्ली हाईकोर्ट ने POCSO के एक मामले में आरोपी को बरी कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि शारीरिक संबंध का मतलब 'यौन उत्पीड़न' नहीं होता। अदालत ने कहा कि नाबालिग पीड़िता ने 'शारीरिक संबंध' शब्द का इस्तेमाल है, जिससे 'यौन उत्पीड़न' साबित नहीं होता। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए आरोपी की आजीवन कारावास की सजा माफ कर दी।


मामला 2017 का था। पीड़िता की मां ने आरोप लगाया था कि एक व्यक्ति उसकी नाबालिग बेटी को बहला-फुसलाकर कहीं ले गया है। बाद में आरोपी और पीड़िता को फरीदाबाद में पाया गया था। आरोपी के खिलाफ रेप और POCSO के तहत केस दर्ज किया गया था। पिछले साल ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। अब हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया है।

फिर कब माना जाता है दुष्कर्म?

किसी भी तरह के शारीरिक संबंध या सेक्सुअल इंटरकोर्स को रेप कब माना जाएगा? इसका जिक्र भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 63 में किया गया है। 


इसके मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति महिला की इच्छा या सहमति के बगैर उसके मुंह, योनि, मूत्र मार्ग या मलमार्ग में लिंग प्रवेश कराता है या किसी और से ऐसा करवाता है तो उसे दुष्कर्म माना जाएगा। अगर किसी महिला को डरा-धमकाकर संबंध बनाए जाते हैं तो वो भी दुष्कर्म के दायरे में आएगा। 


इसके अलावा, अगर किसी महिला तब संबंध बनाए गए हों, जब वो उसकी मानसिक स्थिति ठीक न हो या उसे कोई नशीला पदार्थ दिया गया हो तो उसे भी दुष्कर्म माना जाएगा। किसी शादीशुदा महिला की सहमति से संबंध बनाने को रेप माना जाता है। अगर महिला की उम्र 18 साल से कम है तो सहमति से बनाए गए संबंध भी रेप के दायरे में ही आएंगे। क्योंकि POCSO कानून के तहत, नाबालिग की सहमति कोई मायने नहीं रखती।

 


बीएनएस में एक नई धारा 69 जोड़ी गई है। इसके तहत शादी, नौकरी या प्रमोशन का झूठा वादा कर महिला के साथ यौन संबंध बनाता है तो उसे 10 साल तक की सजा हो सकती है। साथ ही जुर्माना भी लगाया जाएगा। इसमें पहचान छिपाकर शादी करने पर भी 10 साल की सजा का प्रावधान किया गया है।

कितनी हो सकती है सजा?

बीएनएस की धारा 64 के तहत, रेप का दोषी पाए जाने पर 10 साल की सजा हो सकती है। 16 साल से कम उम्र की लड़की के साथ दुष्कर्म का दोषी पाए जाने पर कम से कम 20 साल की सजा का प्रावधान किया गया है। इसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। आजीवन कारावास की सजा होने पर दोषी की सारी जिंदगी जेल में ही गुजरेगी। 


धारा 65 में ही प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ दुष्कर्म का दोषी पाया जाता है तो उसे 20 साल की जेल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। इसमें भी उम्रकैद की सजा तब तक रहेगी, जब तक दोषी जिंदा रहेगा। ऐसे मामलों में मौत की सजा का प्रावधान भी है।


गैंगरेप के मामलों में दोषी पाए जाने पर 20 साल से लेकर उम्रकैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान है। बीएनएस की धारा 70(2) के तहत, नाबालिग के साथ गैंगरेप का दोषी पाए जाने पर कम से कम उम्रकैद की सजा तो होगी ही, साथ ही मौत की सजा भी सकती है। धारा 66 के तहत, अगर रेप के मामले में महिला की मौत हो जाती है या फिर वो कोमा जैसी स्थिति में पहुंच जाती है तो दोषी को कम से कम 20 साल की सजा होगी। इस सजा को बढ़ाकर आजीवन कारावास या फिर मौत की सजा में भी बदला जा सकता है।

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