logo

ट्रेंडिंग:

डबल इंजन नहीं, 6 इंजन से होगा दिल्ली का विकास? समझिए प्रशासनिक पेचीदगी

दिल्ली में BJP की जीत के बाद ‘डबल इंजन की सरकार’ चर्चा में है। असल में अगर प्रशासनिक ढांचे की बात की जाए तो दिल्ली में दो ही नहीं कई ‘इंजनों’ की जरूरत पड़ने वाली है।

delhi administrative issues

दिल्ली के लिए काम करने वाली एजेंसियां, Photo Credit: Khabargaon

दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की जीत के साथ यहां भी 'डबल इंजन' की सरकार बनने जा रही है। BJP की ओर से यह बहुप्रचारित शब्दावली उस स्थिति को दर्शाती है जब केंद्र और राज्य दोनों में ही बीजेपी की सरकार हो। कई राज्यों में ऐसी स्थिति है भी लेकिन दिल्ली में अब तक ऐसी स्थिति बन नहीं पाई है। उम्मीद जताई जा रहा है कि दिल्ली में डबल इंजन वाली सरकार बनने के बाद टकराव की स्थिति कम होगी। रोचक बात यह है कि पूर्व में दिल्ली के प्रशासनिक ढांचे को लेकर कई तरह के सवाल उठते रहे हैं। खुद बीजेपी भी इसमें सुधार की मांग कर चुकी है। इसकी वजह यह है कि आज भी दिल्ली में कई अलग-अलग संस्थाएं और व्यवस्थाएं हैं। सबके अपने काम हैं और सबके अलग अधिकार क्षेत्र हैं। यही वजह है कि कई बार काम अटकते भी हैं और खराब परिस्थितियों में यह भी देखने को मिलता है कि अलग-अलग विभाग या एजेंसियां जिम्मेदारी दूसरों पर डालने लगती हैं। इसके पीछे की वजह समझने की कोशिश करें तो पता चलता है कि दिल्ली में दो नहीं बल्कि 6 'इंजन' हैं जिनके एकसाथ और तारतम्य के साथ चलने पर ही दिल्ली में विकास की धारा बहाई जा सकती है।

 

दिल्ली में व्यवस्थाओं के आपसी टकराव के मामले का एक उदाहरण पिछले साल ही चर्चा में आया था। अगस्त 2024 में एक महिला और उसके बेटे की मौत नाले में डूबने से हो गई थी। इस घटना को लेकर दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) और दिल्ली नगर निगम (MCD) ने एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल दी। एमसीडी ने कहा कि खुला नाला डीडीए की जिम्मेदारी है, वहीं डीडीए ने इसके रखरखाव की जिम्मेदारी एमसीडी पर डाल दी। काफी खींचतान के बाद एमसीडी ने इसकी जांच कराने की बात कही।

 

दिल्ली में पिछले कई साल के दौरान साफ-सफाई, सड़क/गली निर्माण, ट्रांसफर पोस्टिंग आदि मामलों को लेकर खूब विवाद होते रहे हैं। इसकी वजह यह भी थी कि 2014 से केंद्र में बीजेपी की सरकार आई, 2015 से दिल्ली में AAP की सरकार आई और एमसीडी में 2022 तक बीजेपी थी। वहीं, अन्य कई विभाग सीधे केंद्र सरकार के अधीन आते हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि लगभग हर मामले पर AAP और बीजेपी में टकराव होता रहा। मोहल्ला क्लीनिक खोलने के लिए जमीन का मामला हो, जलभराव और बाढ़ का मामला हो या फिर यमुना की सफाई का मुद्दा, इन सब पर जिम्मेदारी टालने वाले कई वाकये हुए हैं। ऐसे में यह समझना बेहद जरूरी है कि आखिर दिल्ली में प्रशासन इतना उलझाऊ क्यों है?

 

यह भी पढ़ें- सत्येंद्र जैन पर केस चलाने के लिए राष्ट्रपति के पास गई मोदी सरकार

कैसे उलझती है व्यवस्था?

 

दिल्ली में व्यवस्था में पेच फंसने का पहला मामला जमीन से जुड़ा आता है। इसकी वजह है कि कुछ जमीन डीडीए की है, कुछ एमसीडी की है, कुछ कैंटोनमेंट बोर्ड की है, कुछ दिल्ली सरकार की है, कुछ DSIDC की है, कुछ एमसीडी की है और कुछ अन्य एजेंसियों या विभागों के पास है। अब अगर किसी एक विभाग को नाली या सड़क बनानी हो तो इन सभी से अनुमति या सहमति लेने के बाद ही काम शुरू किया जा सकता है।

 

सफाई और पानी की सप्लाई की बात करें तो एमसीडी, दिल्ली जल बोर्ड, एनडीएमसी और कैंटोनबोर्ड की जिम्मेदारी बनती है। इसी तरह सड़क के मामले में एमसीडी, डीडीए, एनडीएमसी, पीडब्ल्यूडी, सीपीडब्ल्यूडी और दिल्ली कैंटोनमेंट बोर्ड की जिम्मेदारी आती है। कमोबेश ऐसी ही समस्याएं दिल्ली के ज्यादातर विभागों के सामने आती हैं। इसकी वजह यह है कि दिल्ली में कई एजेंसियां हैं और इनमें से ज्यादातर के काम एक जैसे भी हैं। कामों का स्पष्ट बंटवारा न हो पाने की वजह से टकराव हमेशा रहा है। यही वजह है कि कई बार इस तरह की मांग भी उठी है कि इसमें से ज्यादातर एजेंसियों और संस्थाओं को भंग करके दिल्ली के प्रशासनिक ढांचे को नए सिरे से बनाया जाए और उसे एकीकृत किया जाए।

कैसे होती है समस्या?

 

अगर इन 6 के अधिकारों को देखें तो समझ आता है कि कई जगह पर ओवरलैपिंग है। उदाहरण के लिए दिल्ली में निर्माण कार्य की अनुमति एमसीडी की ओर से मिलती है और जमीन ज्यादातर मामलों में डीडीए की होती है। कहीं कच्ची बस्ती बसने लगती है तो उसे रेगुलर करने का अधिकार डीडीए का होता है लेकिन वहां सुविधाएं देने का काम दिल्ली सरकार करती है। वहां पानी पहुंचाने का काम दिल्ली जल बोर्ड का होता है।

 

इसी तरह बर्थ और डेथ सर्टिफिकेट के मामले में दिल्ली सरकार और एमसीडी में टकराव होता है। टैक्स कलेक्शन की बात करें तो दिल्ली सरकार एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स और जीएसटी का कलेक्शन करती है। वहीं, एमसीडी बॉर्डर पर टैक्स वसूलती है, प्रॉपर्टी टैक्स और सर्विस टैक्स वसूलने का काम भी उसी का है। अस्पताल, स्कूल, सड़क निर्माण और नालियों का मामला भी बेहद उलझाऊ है।

नाले-नालियों से समझें दिल्ली की समस्या

 

नालियों के मामले से इसे समझें तो समझ आता है कि समस्या कितनी बड़ी है। दिल्ली सरकार का सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग, DSIIDC, डीडीए, एमसीडी, पीडब्ल्यूडी मिलकर दिल्ली के नाले और नालियों का नियंत्रण करते हैं। इसको ऐसे समझिए कि दिल्ली के 55 पर्सेंट नाले दिल्ली पीडब्ल्यूडी, 14 पर्सेंट एमसीडी, 11.4 पर्सेंट सिंचाई विभाग, 9 पर्सेंट NDMC, 6.7 पर्सेंट डीडीए, 2.6 पर्सेंट DSIIDC, 1 पर्सेंट दिल्ली कैंट और कुछ नाले एनटीपीसी और उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के अंतर्गत आते हैं। इतने विभाग होने की वजह से दिल्ली हाई कोर्ट ने भी फरवरी 2024 में सुझाव दिया था कि कोई एक ही एजेंसी या संस्थान दिल्ली के नालों का प्रबंधन करे।

 

यह भी पढ़ें- प्रभारी, जनरल सेक्रेटरी और अध्यक्ष, कैसे काम करती है कांग्रेस पार्टी?

 

इसी से जुड़ी एक समस्या और आई जब एनजीटी के आदेश पर दिल्ली के एलजी की अध्यक्षता में यमुना के मामले पर हाई लेवल कमेटी बनाई गई। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला दिया जिससे इस कमेटी का काम भी रुक गया। दिल्ली सरकार का कहना था कि यह कमेटी एलजी की अध्यक्षता में नहीं होनी चाहिए। एलजी ने आरोप भी लगाए कि आम आदमी पार्टी की वजह से यह सब हुआ और दिल्ली में यमुना सफाई का काम रुक गया। हालांकि, दिसंबर 2024 में दिल्ली सरकार के सिंचाई विभाग ने एनजीटी को बताया कि उसने सभी 22 बड़े नालों का प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया है। यानी अब दिल्ली के सभी बड़े नालों की सफाई की जिम्मेदारी सिंचाई विभाग की है।


MCD vs DDA

कई जगहों पर समस्याएं होने की स्थिति में एमसीडी और डीडीए के बीच यह देखने को मिलता है कि किसी दुर्घटना या गड़बड़ी की स्थिति में ये दोनों एजेंसियां एक-दूसरे पर दोषारोपण करने लगती हैं। यही वजह है कि नवंबर 2024 में दिल्ली हाई कोर्ट ने इन दोनों ही एजेंसियों को निर्देश दिए कि वे अपने-अपने क्षेत्र की स्पष्ट मार्किंग कर लें। 

सड़क का मामला

 

दिल्ली में सड़क का निर्माण और प्रबंधन भी अलग-अलग विभागों के अधीन है। कुछ सड़कें दिल्ली सरकार का लोक निर्माण विभाग बनाता है। इसके अलावा, दिल्ली में सीपीडब्ल्यूडी और एमसीडी भी सड़कें बनाते हैं। 


दिल्ली की मुख्य समस्याएं

 

दिल्ली में पीने के साफ पानी की समस्या, टूटी सड़कें, चोक हुई नालियां और गंदगी ऐसे मुद्दे हैं जिनसे हर कोई दो-चार होता है। अब पीने के पानी की सप्लाई का काम दिल्ली जल बोर्ड का है लेकिन NDMC और दिल्ली कैंटोनमेंट बोर्ड के इलाकों में यही काम NDMC और कैंट बोर्ड करता है। ये दोनों थोक में पीने का पानी दिल्ली जल बोर्ड से ही लेते हैं।

 

दिल्ली में लगभग 20 हजार किलोमीटर की सड़कें हैं। इसमें कम चौड़ाई वाली सड़कें एमसीडी के पास हैं। 60 फीट से कम चौड़ी सभी सड़कें एमसीडी के अंतर्गत आती हैं। वहीं, इससे चौड़ी सड़कें दिल्ली पीडब्ल्यूडी के जिम्मे हैं। हालांकि, हिस्सेदारी के हिसाब से देखें तो सबसे ज्यादा तीन चौथाई सड़कें एमसीडी के पास हैं। बाकी की सड़कें पीडब्ल्यूडी, NHAI, DSIIDC और अन्य विभागों के पास हैं।

 

साफ-सफाई का जिम्मा एमसीडी का है लेकिन दिल्ली का सीवर सिस्टम दिल्ली जल बोर्ड के अंतर्गत आता है। दूषित पानी को साफ करने का काम भी दिल्ली जल बोर्ड के पास है। हालांकि, लोगों के घरों और गलियों से गंदा पानी ले जाने वाली नालियां एमसीडी के अंतर्गत आती हैं और बड़े नाले दिल्ली के सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग के अंतर्गत आते हैं। 

दिल्ली की ये मुख्य समस्याएं और इनके लिए जिम्मेदार संस्थाओं का यह मकड़जाल दर्शाता है कि दिल्ली में काम कितना मुश्किल हो जाता है। इन विभागों के बीच स्पष्ट बंटवारा न होने, कोई एक निर्णायक व्यवस्थापक न होने के चलते आम जनता को समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। 

शिक्षा और स्वास्थ्य

 

किसी अन्य राज्य में अगर आप जाएं तो शिक्षा और स्वास्थ्य राज्य सरकार के अधीन आता है। हालांकि, दिल्ली में दिल्ली सरकार के स्कूलों के अलावा एमसीडी के पास भी स्कूल हैं। इसी तरह दिल्ली सरकार के पास मोहल्ला क्लीनिक, डिस्पेंसरी, छोटे और बड़े अस्पताल और बड़े अस्पताल हैं। दूसरी तरफ, एमसीडी के पास भी अपने अस्पताल और क्लीनिक हैं। 

दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) के पास दिल्ली में मौजूद लगभग सात सौ झुग्गी-बस्तियों के प्रबंधन का काम है। इसके अलावा, रैन बसेरों का प्रबंधन, सामुदायिक भवन, भूमि, आवास और कई अन्य काम DUSIB के पास भी हैं। इसी तरह औद्योगिक क्षेत्रों का कामकाज DSIIDC के पास होता है।

 

कुल मिलाकर अगर दिल्ली के प्रशासन को समझा जाए तो मूलभूत सुविधाओं से लेकर बड़ी-बड़ी योजनाओं तक में एक नहीं, कई विभाग शामिल होते हैं। ज्यादातर कामों के लिए एक से ज्यादा विभागों की सहमति जरूरी होती है। ऐसे में अलग विभाग में अलग सरकार होने की स्थिति में अड़चनें भी आती हैं। मौजूदा स्थिति के हिसाब से उम्मीद यही की जा रही है कि अब सत्ता पर काबिज हो रही बीजेपी सभी 'इंजनों' के बीच सामंजस्य बना सकेगी और दिल्ली में विकास कार्य कम से कम प्रशासनिक पेचीदगी की वजह से नहीं रुकेंगे।

 

यह भी पढ़ें- कैसी है दिल्ली की आर्थिक सेहत? BJP के वादों पर कितना होगा खर्च


दिल्ली सरकार

 

दिल्ली के पास अपनी एक चुनी हुई सरकार होती है। हालांकि, यह एक केंद्र शासित प्रदेश है तो 70 सीटों वाली विधानसभा भले ही अपना मुख्यमंत्री चुनती है, कई मामलों में अंतिम फैसला दिल्ली के उप-राज्यपाल का ही होता है। मई 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले से दिल्ली की चुनी हुई सरकार को ज्यादा अधिकार दिए थे। एक हफ्ते बाद ही केंद्र सरकार एक अध्यादेश लाई और एक रोचक बदलाव कर दिया। एक नई व्यवस्था बनाई गई जिसके तहत मुख्यमंत्री, दिल्ली के चीफ सेक्रेटरी और प्रमुख गृह सचिव मिलकर फैसला लेंगे और ये सुझाव एलजी को भेजे जाएंगे। इसमें बहुमत के हिसाब से फैसला होगा। इसके बावजूद एलजी चाहें तो वह फाइलों को लौटा सकते हैं।

 

 

इसी अध्यादेश के बाद दिल्ली के सीएम के बजाय दिल्ली के उपराज्यपाल ज्यादा हावी हो गए। दिल्ली की कानून व्यवस्था सीधे तौर पर एलजी के पास है। दिल्ली महिला आयोग, दिल्ली विद्युत नियाम आयोग जैसे अन्य प्राधिकरणों, बोर्ड और आयोग के गठन और उनमें नियुक्ति का पूरा अधिकार भी अब दिल्ली के उपराज्यपाल के पास ही है। दिल्ली पुलिस, जमीन और लोक व्यवस्था का पूरा अधिकारी दिल्ली के एलजी के पास ही है। दिल्ली की चुनी हुई सरकार इन तीनों को छोड़कर बाकी के मामलों में कानून बना सकती है, नीतिगत फैसले ले सकती है लेकिन ऐसे मामलों में उपराज्यपाल की सहमति जरूरी है। 

दिल्ली नगर निगम

 

दिल्ली नगर निगम राजधानी दिल्ली के सिविक मामले संभालने वाली संस्था है। इसका गठन चुनाव के जरिए होता है। मौजूदा समय में दिल्ली नगर निगम में कुल 250 वॉर्ड हैं। इन्हें कुल 12 वॉर्ड में बांटा गया है। नगर निगम का कार्यकाल पांच साल का होता है लेकिन मेयर हर साल चुने जाते हैं। मेयर के अलावा एमसीडी कमिश्नर की भूमिका भी बेहद अहम होती है। एमसीडी का मुख्य काम दिल्ली में साफ-सफाई, नालियों का प्रबंधन, पार्कों का प्रबंधन, कूड़े का प्रबंधन, बाजारों का नियंत्रण और प्रॉपर्टी टैक्स कलेक्शन आदि है।

 

लोगों के घर से जुड़ी मूलभूत सुविधाएं जैसे कि कूड़ा उठवाना, नालियां ठीक रखना, गलियों का निर्माण करना आदि एमसीडी के पास ही है। एमसीडी के पास खुद के अस्पताल, स्कूल और सामुदायिक भवन भी हैं। इन सबके अलावा भी एमसीडी बहुत सारे काम करती है, जो आम लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं। दिल्ली नगर निगम वैसे तो अलग संस्था ही है लेकिन इसका बजट और अन्य नियंत्रण दिल्ली सरकार के अधीन आता है।

 

यह भी पढ़ें- एडवांस्ड एंटी ड्रोन सिस्टम की तलाश में सेना, जरूरत क्यों पड़ी?

दिल्ली विकास प्राधिकरण

 

साल 1957 में बनाए गए दिल्ली विकास प्राधिकरण का उद्देश्य दिल्ली के लोगों को आवासीय स्थल देना, दिल्ली का संतुलित विकास करना और सुरक्षित वातावरण देना है। दिल्ली के मास्टर प्लान बनाना, उन्हें लागू करवाना, दिल्ली में ग्रीन सिटी बनाना, यमुना फ्लड प्लेन का नियंत्रण और कई ऐसे काम दिल्ली विकास प्राधिकरण के पास भी हैं। दिल्ली विकास प्राधिकरण को देखा जाए तो वह एक तरह से केंद्र सरकार के अधीन चलता है। 

 

 

दरअसल, डीडीए के चेयरपर्सन दिल्ली के उपराज्यपाल ही होते हैं। एक वाइस चेयरपर्सन होता है जो कि एक आईएस अधिकारी होता है। यानी डीडीए में पूरी तरह से प्रशासनिक व्यक्ति ही होते हैं और इसमें चुने हुए प्रतिनिधि नहीं शामिल होते। डीडीए के अंतर्गत वित्त, इंजीनियरिंग, कार्मिक विभाग, कानून विभाग, जमीन विभाग, लैंड डिस्पोजल, हाउसिंग, प्लानिंग जैसे तमाम विभाग हैं।

NDMC

 

आमतौर पर किसी शहर में स्थानीय निकाय सिर्फ एक होता है। हालांकि, राजधानी दिल्ली में एक के बजाय तीन निकाय हैं। दिल्ली नगर निगम के अलावा, दूसरा एनडीएमसी और तीसरा कैंटोनमेंट बोर्ड है। NDMC के पास दिल्ली के कुल क्षेत्रफल का सिर्फ 3 पर्सेंट इलाका ही आता है। NDMC के क्षेत्र में मुख्य रूप से लुटियंस दिल्ली का इलाका आता है। राष्ट्रपति भवन, संसद, सुप्रीम कोर्ट, नॉर्थ ब्लॉक-साउथ ब्लॉक, सेंट्र विस्टा और दूतावासों वाला इलाका NDMC क्षेत्र में आता है। NDMC ऐक्ट 1994 के तहत काम करने वाली इस परिषद का गठन भी अलग तरीके से होता है।

 

यह भी पढ़ें- कुंभ-रेलवे स्टेशन..भगदड़ के बाद वहां पड़े सामानों का क्या होता है?

 

इस परिषद का एक चेयरपर्सन होता है। दिल्ली के मुख्यमंत्री की सलाह से केंद्र सरकार एक IAS अधिकारी को NDMC का चेयरपर्सन नियुक्त करती है जो जॉइंट सेक्रेटरी या उससे ऊपर की रैंक का अधिकारी होता है। दो विधायक (नई दिल्ली और दिल्ली कैंट) इसके सदस्य होते हैं। पांच सदस्य केंद्र सरकार द्वारा नामित किए जाते हैं। चार अन्य सदस्य मुख्यमंत्री की सलाह से नामित किए जाते हैं जिसमें अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल होते हैं।

 

 

इन सबके अलावा नई दिल्ली लोकसभा का सांसद भी इस परिषद का सदस्य होता है। अनुसूचित जाति के दो सदस्य भी इसके लिए नामित किए जाते हैं। इसके अलावा, एक वाइस चेयरपर्सन भी नामित किया जाता है। NDMC क्षेत्र में बिजली, पानी, स्वास्थ्य और अन्य सेवाओं की जिम्मेदारी NDMC की ही है। एनडीएमसी के पास अपने दो अस्पताल, दर्जनों स्कूल, स्टेडियम, पार्क, जिम और बिजली विभाग हैं।


दिल्ली कैंटोनमेंट बोर्ड

 

जैसे दिल्ली में एमसीडी और एनडीएमसी हैं, वैसे ही एक तीसरी संस्था दिल्ली कैंटोनमेंट बोर्ड है। इसके अंतर्गत वे इलाके आते हैं जिनमें भारतीय सेनाओं से जुड़े प्रतिष्ठान मौजूद हैं। उदाहरण के लिए- पालम एयर फोर्स स्टेशन, आर्मी रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल, बेस हॉस्पिटल, आर्मी गोल्फ कोर्, सिविल एयरपोर्ट का कुछ हिस्सा आदि। इस क्षेत्र में आने वाली सड़कों पर लाइटिंग, साफ-सफाई, सुरक्षा, नालियां, सीवरेज,  प्लानिंग आदि जैसे काम दिल्ली कैंटोनबोर्ड के अंतर्गत आते हैं।

 

 

दिल्ली कैंटोनमेंट बोर्ड का एक अध्यक्ष होता है जो सेना का ही कोई अधिकारी होता है। अध्यक्ष के बाद दूसरे नंबर पर एक सीईओ होता है। सीईओ सिविल सेवा का अधिकारी होता है जो रक्षा मंत्रालय के तहत काम कर रहा होता है। दिल्ली कैंटोनमेंट बोर्ड के पास भी कई विभाग हैं जो कमोबेश वही काम करते हैं जो दिल्ली सरकार या अन्य निकाय करते हैं।

 

यह भी पढ़ें- दिल्ली विधानसभा में हार के बाद AAP को फिर झटका, 3 पार्षद BJP में शामिल

केंद्र सरकार

 

इन सबके अलावा केंद्र सरकार तो अहम भूमिका में है ही। डीडीए सीधे तौर पर एलजी के अंतर्गत आता है और एलजी की नियुक्ति केंद्र सरकार की ओर से ही होती है। कैंटोनमेंट बोर्ड रक्षा मंत्रालय के तहत आता है। एनडीएमसी में भी प्रशासनिक अधिकारी ही हावी रहते हैं और ये अधिकारी केंद्र सरकार के होते हैं। दिल्ली सरकार भी केंद्र सरकार की सहमति के बगैर ज्यादातर काम नहीं कर सकती है। ऐसे में दिल्ली के मामले में देखा जाए तो पिरामिड में सबसे ऊपर केंद्र सरकार ही है।

 

 

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap