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दिल्ली: निजी स्कूलों में फीस कम कराना मुश्किल? कानूनी दांव-पेच समझिए

दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों में फीस बढ़ोतरी को लेकर दिल्ली सरकार और मुख्य विपक्षी दल के बीच तकरार मची है। कानून इस पर क्या कहता है, समझिए विस्तार से।

Delhi School Hike

AI Generated Image. (Photo Credit: freepik)

दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों की फीस बढ़ने को लेकर आम आदमी पार्टी और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी में जुबानी जंग चल रही है। दिल्ली के शिक्षामंत्री आशीष सूद ने आरोप लगाया है कि पूर्ववर्ती AAP सरकार के कार्यकाल के दौरान कई स्कूलों ने बिना शिक्षा निदेशालय के आदेश के ही फीस में मनमाने ढंग से बढ़ोतरी की थी। अब उन्होंने कहा है कि 1600 से ज्यादा स्कूलों का ऑडिट कराएंगे। दिल्ली सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री सौरभ भरद्वाज ने आरोप लगाया है कि 'एक्शन कमेटी अनएडेड रिकॉग्नाइज्ड प्राइवेट स्कूल' के अध्यक्ष भरत गुप्ता के इशारे पर मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने प्राइवेट स्कूलों में फीस महंगी कराई है। 

सौरभ भरद्वाज ने कहा है कि भरत अरोड़ा शिक्षा माफिया हैं, बीजेपी दिल्ली प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य हैं और शिक्षक प्रकोष्ठ के मुखिया हैं। आम आदमी पार्टी का कहना है कि जब-जब तत्कालीन आम आदमी पार्टी सरकार स्कूलों के फीस बढ़ाने पर शिकंजा कसती थी, सर्कुलर के खिलाफ एक्शन लेती थी, तब-तब भरत अरोड़ा की कमेटी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में स्कूलों की तरफ से लड़ने लगती थी। आम आदमी पार्टी का कहना है कि बीजेपी, दिल्ली के सरकारी स्कूलों को कमजोर करना चाहती है।  

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दिल्ली के शिक्षा मंत्री क्या कह रहे हैं?

दिल्ली सरकार में शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'दिल्ली में 1,677 प्राइवेट स्कूलों में से 335 स्कूल सरकारी जमीन पर चल रहे हैं जो दिल्ली स्कूल एजुकेशन एक्ट 1973 के तहत आते हैं। इन स्कूलों में फीस बढ़ाने के लिए सरकार से अनुमति लेना जरूरी है। कुछ स्कूलों ने बिना मंजूरी के फीस में 30 से 38 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है।'



दिल्ली में फीस नियंत्रण के कानून की हकीकत क्या है?
सुप्रीम कोर्ट के वकील अशोक अग्रवाल ने कहा, 'दिल्ली में कोई ऐसा कानून नहीं है कि जो स्कूलों को मनमाने ढंग से फीस बढ़ाने से रोकता हो। जब तक ठोस कानून नहीं बनेगा, सिर्फ अदालतों के मौखिक रूप से कह देने से काम नहीं बनेगा। अदालतें कानून नहीं बनाती हैं, कानून विधायिका का काम है।'

अशोक अग्रवाल ने कहा, 'अगर स्कूल में फीस के रेग्युलेशन पर स्पष्ट कानून हों तो स्कूल मनमाने ढंग से अपनी फीस न बढ़ा पाएं। दिल्ली एजुकेशन एक्ट में कहीं नहीं लिखा है कि स्कूलों की फीस स्कूल नहीं बढ़ा सकते। शायद यही वजह है कि स्कूलों की फीस इतनी बढ़ती जा रही है, कि आम आदमी को परेशान होना पड़ रहा है। जब मामला अदालतों में जाता है तो कानून न होने की वजह से प्राइवेट स्कूल केस जीत जाते हैं।'

'शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं किया जा सकता है'
एडवोकेट अशोक अग्रवाल ने कहा, 'देश की अलग-अलग हाई कोर्ट, कई फैसले में कह चुकी हैं कि शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं किया किया जा सकता है। स्कूल उद्योग नहीं हैं। शिक्षा का हक सबको है, सरकार को बढ़ती फीस पर नजर रखनी चाहिए। मैं 1997 से स्कूलों में मनमाने ढंग से फीस बढ़ाने के खिलाफ जंग लड़ रहा हूं। मनमानी फीस पर लगाम लगानी जरूरी है।



अभिभावकों को क्या करना चाहिए?
एडवोकेट अशोक अग्रवाल ने कहा, 'अभिभावकों को भी प्रदर्शन करना चाहिए। अगर लोग मांग नहीं करेंगे तो यह मुद्दा नहीं बन पाया जाएगा। जो समर्थ वर्ग के हैं, वे स्कूलों में बढ़ती महंगाई को लेकर कुछ बोलने से परहेज करते हैं लेकिन अगर दबाव बनाएंगे तो सरकार पर दबाव बढ़ेगा, स्कूलों पर भी दबाव बनेगा।'

दिल्ली में स्कूलों की फीस बढ़ोतरी पर अदालतों ने क्या कहा है?
दिल्ली अभिभावक संघ बनाम दिल्ली सरकार
एडवोकेट अशोक अग्रवाल ने कहा, 'साल 1990 के दशक में दिल्ली के स्कूलों में फीस मनमाने ढंग से बढ़ाई गई। कोर्ट ने जस्टिस संतोष दुग्गल की अगुवाई में एक समिति गठित करने का निर्देश दिया। समिति ने सिफारिश की कि निजी स्कूलों को अपनी वित्तीय स्थिति का ऑडिट कराना होगा और फीस बढ़ोतरी के लिए शिक्षा निदेशालय से मंजूरी लेनी होगी। कमेटी ने यह भी कहा कि स्कूलों को मुनाफाखोरी से बचना चाहिए और शिक्षा को व्यावसायिक नहीं बनाना चाहिए। '

साल 2017 में 226 स्कूलों ने फीस बढ़ाई थी। दिल्ली सरकार इसके खिलाफ कोर्ट चली गई थी। स्कूलों ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के नाम पर बिना मंजूरी फीस बढ़ाई थी। कोर्ट ने स्कूलों को निर्देश दिया कि अभिभावकों से वसूली गई अतिरिक्त फीस वापस की जाए। 575 स्कूलों को भी बढ़ी हुई फीस लौटाने का निर्देश दिया गया। 

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साल 2020 में जब कोविड की वजह से लॉकडाउन लका तो स्कूलों ने पूरी फीस वसूली। स्कूल बंद थे, पढ़ाई ऑनलाइन हो रही थी। अभिभावक हाई कोर्ट गए, कोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने कहा कि केवल ट्युशन फीस स्कूल लें। ट्रांसपोर्ट फीस न ली जाए।

साल 2024 में दिल्ली पब्लिक स्कूल में के खिलाफ याचिका दायर हुई। स्कूल ने फीस बढ़ा दी थी। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि 50 फीसदी अपने वेतन में स्कूल कटौती करें। कोर्ट ने शिक्षा निदेशालय से भी इस प्रकरण में जवाब मांगा है।

अभी क्यों स्कूलों की फीस पर हंगामा हो रहा है?
दिल्ली के शिक्षामंत्री आशीष सूद ने कहा है कि 1677 स्कूलों का ऑडिट कराया जाएगा। कई जगहों पर अभिभावक प्रदर्शन कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही है।  

दिल्ली सरकार ने फीस की महंगाई पर क्या कहा है?
दिल्ली के शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने कहा, 'दिल्ली में कुल 1677 प्राइवेट स्कूल हैं, जिनमें से 355 स्कूल सरकारी भूमि पर स्थित हैं। आरोप लगाया जा रहा है कि दिल्ली में स्कूलों की फीस बढ़ाई जा रही है। हम जांच कराएंगे कि आखिर कौन-कौन रिश्वत लेता था।'

आशीष सूद ने कहा, '2004 में सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया था कि दिल्ली के किसी भी स्कूल को बिना शिक्षा निदेशालय की मंजूरी के फीस बढ़ाने का अधिकार नहीं है। हमने इस आदेश का पालन किया, लेकिन 2024 में हाई कोर्ट ने इसे पलटते हुए यह निर्णय दिया कि अब स्कूलों को फीस बढ़ाने के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।'



सरकारी जमीनों पर बने प्राइवेट स्कूलों के लिए नियम क्या हैं?
दिल्ली की मौजूदा सरकार का कहना है कि दिल्ली में सरकारी जमीन पर बने स्कूलों की फीस को लेकर सख्त नियम लागू हैं। दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम, 1973 के तहत, सरकारी स्कूलों में पढ़ाई मुफ्त है। यह राइट टू एजुकेशन एक्ट 2009 के नियमों के हिसाब से है। 

दिल्ली के शिक्षामंत्री आशीष सूद का कहना है कि प्राइवेट स्कूलों को धारा 17 के अनुसार फीस बढ़ाने से पहले शिक्षा निदेशालय की मंजूरी लेनी होती है। दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) से रियायती दर पर जमीन लेने वाले निजी स्कूलों पर फीस वृद्धि की सख्त निगरानी है। नियमों का उल्लंघन करने पर जुर्माना या मान्यता रद्द हो सकती है। उनका कहना है कि AAP सरकार  ने इन नियमों को ताक पर रखा था। 

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दिल्ली के किस स्कूल में कितनी फीस बढ़ी?
दिल्ली के शिक्षामंत्री आशीष सूद ने कहा है कि डीपीएस, सृजन स्कूल और एल्कॉन स्कूल की फीस बढ़ाई गई है। उन्होंने इसका विवरण भी दिया है-

दिल्ली पब्लिक स्कूल, द्वारका 
साल 2020 से लेकर 2025 के बीच में 5 साल में 20, 13, 9, 8 और 7 फीसदी फीस बढ़ाई गई है।
सृजन स्कूल
सृजन स्कूल ने 2024-25 में 36 फीसदी फीस बढ़ाई है। 
एल्कॉन स्कूल
एल्कॉन इंटरनेशन स्कूल की फीस 2022-23 में 15 और 2024-25 में 13 फीसदी इजाफा हुआ। 
 
दिल्ली स्कूल एजुकेशन एक्ट, 1973 में क्या है?
एडवोकेट अशोक अग्रवाल ने कहा, 'दिल्ली स्कूल एजुकेशन एक्ट, 1973 दिल्ली में स्कूल शिक्षा के बेहतर संगठन और विकास के लिए बनाया गया था। इसका मकसद स्कूलों की स्थापना, संचालन, और प्रशासन से जुड़ा है। यह एक्ट सरकारी, सहायता प्राप्त और गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों पर लागू होता है। 

अधनियम का चैप्टर 6 'एडमिशन टू स्कूल एंड फीस' है, जिसमें स्कूलों की फीस, दूसरे चार्ज, स्कूल फंड और एफिलिएशन संबंधी प्रावधानों का जिक्र है। 

एडवोकेट अशोक अग्रवाल ने खबरगांव से बातचीत में कहा, 'दिल्ली स्कूल एजुकेशन एक्ट, 1973 की धारा 16 से 19 स्कूलों के संचालन के संबंध में है। धारा 16 एडमिशन में निष्पक्षता की बात करती है, जिससे कोई बच्चा बिना वजह एडमिशन से वंचित न किया जाए।'

उन्होंने कहा, 'धारा 17 फीस के संबंध में है, जिसमें सहायता प्राप्त और निजी स्कूल बिना निदेशक की मंजूरी फीस नहीं बढ़ा सकते। धारा 18 स्कूल फंड के संबंध में है, जिसमें फीस, सहायता और डोनेशन एडमिट होता है, इसका इस्तेमाल सिर्फ शिक्षा के लिए किया जा सकता है। स्कूल का ऑडिट जरूरी होगा। धारा 19 स्कूल संपत्ति का प्रबंधन तय करती है, ताकि इसका उपयोग सिर्फ शैक्षिक उद्देश्यों के लिए हो। ये नियम शिक्षा के व्यवसायीकरण को रोकते हैं।'

एक्ट कमजोर क्यों पड़ा?
अशोक अग्रवाल के मुताबिक दिल्ली में स्कूलों की फीस के संबंध में शिक्षा निदेशालय की भूमिका दिल्ली हाई कोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले के बाद कमजोर हो गई। यह फैसला 29 अप्रैल 2024 को दिल्ली हाई कोर्ट ने सुनाया था। 'एक्शन कमेटी ऑफ अनएडेड रिकॉग्नाइज्ड प्राइवेट स्कूल्स' ने शिक्षा निदेशालय के 27 मार्च 2024 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें निजी अनएडेड स्कूलों को शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए फीस बढ़ाने से पहले DoE से पूर्व अनुमति लेने का निर्देश दिया गया था। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को फीस बढ़ाने के लिए शिक्षा निदेशालय से पूर्व मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है। बशर्ते वे कैपिटेशन फीस वसूल कर मुनाफाखोरी या शिक्षा के व्यावसायीकरण में शामिल न हों। 

दिल्ली में स्कूलों की फीस बेलगाम, कमी कहां है?
एडवोकेट अशोक अग्रवाल ने कहा, 'उत्तर प्रदेश के पास यूपी स्वामित्व पोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क विनियमन) अधिनियम 2018 है। तमिलनाडु के पास स्कूल फीस रेगुलेशन एक्ट 2009 है लेकिन दिल्ली के पास ऐसा कोई कानून नहीं है। दिल्ली की नई सरकार भी स्कूलों की बढ़ती फीस पर तभी लगाम लगा सकती है, जब फीस बढ़ोतरी को लेकर स्पष्ट कानून हों, सलाह की शक्ल में आदेश न आएं।'

एडवोकेट अशोक अग्रवाल ने कहा, 'सरकार अगर कोई सर्कुलर या आदेश जारी भी करे तो प्राइवेट स्कूल इसके खिलाफ कोर्ट का रुख कर सकते हैं। अदालत में स्पष्ट कानून न होने की वजह से इन्हीं के पक्ष में फैसले आते हैं। दिल्ली को फीस के संबंध में साफ कानून चाहिए, यह अदालत की तरफ न आए, यह विधानसभा में पारित हो, कानून की शक्ल में आए, तब दिल्ली के लोगों का भला होगा।'



कितने महंगे हैं दिल्ली के प्राइवेट स्कूल, एक नजर (10वीं-12वीं कक्षा के)

दिल्ली के एजुकेशन एक्टिविस्ट दिनेश कश्यप ने कुछ आंकड़े बताए हैं कि दिल्ली में अभी स्कूल फीस कितनी है। आंकड़े बता रहे हैं कि दिल्ली में बच्चों की पढ़ाई पर होने वाला औसत खर्च 5 से 6 हजार प्रतिमाह से कहीं ज्यादा है।

  • द वेलहम बॉयज़ स्कूल, फीस- 60 से 70 हजार प्रति वर्ष
  • द ब्रिटिश स्कूल, फीस- 50 से 60 हजार प्रति वर्ष
  • संस्कृति स्कूल, फीस- 2 से 3 लाख प्रति वर्ष
  • दिल्ली पब्लिक स्कूल (DPS), आरके पुरम, फीस- 1 से 2 लाख प्रति वर्ष
  • एल्कॉन इंटरनेशनल स्कूल, फीस- 1 लाख से 2 लाख के बीच

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