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कैसे खत्म होगा दिल्ली का प्रदूषण? एक तिहाई पैसे ही खर्च कर पाई सरकार

दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्र हर साल हवा के प्रदूषण से जूझते हैं। इसके बावजूद प्रदूषण कम करने के लिए मिले पूरे पैसे ही नहीं खर्च किए जा रहे हैं।

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प्रतीकात्मक तस्वीर, Photo Credit: PTI

दिल्ली में हवा का प्रदूषण कई सालों से चर्चा का विषय है। सर्दी के मौसम में छा जाने वाली धुंध दिल्ली को गैस चेंबर बना देती है। तमाम कोशिशों के बावजूद हर साल यह स्थिति बदतर होती जा रही है। इस सबके बावजूद हैरान करने वाली बात यह है कि दिल्ली को राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत जितने पैसे मिले, उसमें से एक तिहाई पैसे ही खर्च किए गए। यह हाल सिर्फ दिल्ली का ही नहीं है। दिल्ली-एनसीआर में आने वाले नोएडा और फरीदाबाद को भी जितने पैसे दिए गए उसमें से मामूली राशि ही खर्च की जा सकी है। हर साल जब दिल्ली में हवा का प्रदूषण बढ़ता है तो इसका असर नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद और फरीदाबाद जैसे जिलों में भी देखने को मिलता है।

 

पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों से पता चला है कि दिल्ली को NCAP के तहत 42.69 करोड़ रुपये जारी किए गए थे लेकिन उसने केवल 13.94 करोड़ रुपये यानी 32.65 प्रतिशत राशि ही खर्च की है। कुल 14 शहरों और शहरी क्षेत्रों ने कार्यक्रम के तहत या तो सीधे पर्यावरण मंत्रालय से या 15वें वित्त आयोग के जरिए मिले पैसे का 50 प्रतिशत से कम खर्च किया है। 

 

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नोएडा में कितना खर्च हुआ?

 

उत्तर प्रदेश का नोएडा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) का एक और प्रमुख प्रदूषित क्षेत्र है। नोएडा ने वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए दिए गए 30.89 करोड़ रुपये में से केवल 3.44 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। एनसीआर में ही स्थित फरीदाबाद (हरियाणा) ने आवंटित राशि 107.14 करोड़ रुपये में से 28.60 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। आंध्र प्रदेश में विशाखापत्तनम ने 129.25 करोड़ रुपये में से 39.42 करोड़ रुपये का इस्तेमाल इस मद में किया। इसी तरह पंजाब के जालंधर ने दिए गए 45.44 करोड़ रुपये में से 17.65 करोड़ रुपये खर्च किए जबकि कर्नाटक में गुलबर्गा ने 23.48 करोड़ रुपये में से 8.98 करोड़ रुपये का इस्तेमाल किया।

 

कम धनराशि का उपयोग करने वाले अन्य शहरों में पठानकोट (37.1 प्रतिशत), उज्जैन (37.7 प्रतिशत), कर्नाटक का दावणगेरे (43.6 प्रतिशत), असम का नगांव (48.5 प्रतिशत), विजयवाड़ा (41.09 प्रतिशत), जमशेदपुर (44.24 प्रतिशत) और वाराणसी (48.85 प्रतिशत) शामिल हैं। NCAP के तहत 130 शहरों को आवंटित किए गए कुल 12,636 करोड़ रुपये में से 27 मई तक केवल 8,981 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं, जो कुल राशि का लगभग 71 प्रतिशत है।

 

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NCAP की शुरुआत 2019 में की गई थी और यह स्वच्छ वायु का लक्ष्य निर्धारित करने की भारत की पहली राष्ट्रीय योजना है। इसका उद्देश्य आधार वर्ष के रूप में 2019-20 का उपयोग करते हुए, 2026 तक 130 उच्च प्रदूषित शहरों में PM10 प्रदूषण को 40 प्रतिशत तक कम करना है। NCAP के तहत आने वाले शहरों में से 82 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से प्रत्यक्ष धन प्राप्त होता है जबकि 48 शहरों और दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरी क्षेत्रों को 15वें वित्त आयोग के माध्यम से धन प्राप्त होता है।

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