प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने जमकर लताड़ लगाई है। गुरुवार को दो अलग-अलग केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ईडी के काम करने के तरीके पर सवाल उठाए। सुप्रीम कोर्ट ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्ट (PMLA) के तहत दोष साबित होने की दर को लेकर भी ईडी को लताड़ लगाई और यह तक कह दिया कि उसे कानून के तहत काम करना चाहिए किसी 'धूर्त' की तरह नहीं।
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की दो अलग-अलग बेंच ने PMLA की संवैधानिकता और इसे लागू करने से जुड़े मामलों में सुनवाई की। दोनों ही बेंच ने ईडी के काम करने के तौर-तरीकों को लेकर सवाल पूछे। साथ ही, ईडी के केस की जांच लंबे समय तक चलने और उन केस में दोषी पाए जाने की दर को लेकर भी सवाल पूछे।
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पहले केस में कन्विक्शन रेट पर उठे सवाल
पहले केस की सुनवाई जस्टिस बी आर गवई की अगुवाई वाली बेंच ने की। यह केस भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड (BPSL) के दिवालिया होने से जुड़ा था। इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने 2 मई को अपना फैसला सुनाया था और JSW स्टील के प्रस्ताव को खारिज करते हुए BPSL की संपत्तियां बेचने का आदेश दिया था। इसी केस की सुनवाई के दौरान इस केस में ईडी की जांच के तरीकों पर सवाल उठे। इस बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस सतीश शर्मा और जस्टिस के विनोद चंद्रन भी शामिल थे।
वहीं, ईडी की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए थे। इसी दौरान चीफ जस्टिस बी आर गवई ने पूछा, 'कन्विक्शन रेट क्या है?' इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी स्वीकार किया कि कन्विकेशन रेट काफी कम है। हालांकि, उन्होंने इसके लिए सिस्टम की खामियों और प्रक्रियाओं के कम प्रभावी होने को दोषी बताया।
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इस पर जस्टिस गवई ने कहा, 'भले ही लोग दोषी करार न दिए जाएं लेकिन आप तो लोगों को बिना ट्रायल के लिए लंबे समय तक जेल में रखने में सफल रहे हैं।' इसके बाद तुषार मेहता ने उन केस का जिक्र किया जिनमें खूब पैसे बरामद किए और उन्हें गिनने के लिए मशीनें लगानी पड़ीं। इस पर चीफ जस्टिस गवई ने कहा, 'हम नैरेटिव के आधार पर फैसले नहीं करते हैं। मैं न्यूज चैनल नहीं देखता हूं। मैं सुबह 10-15 मिनट के लिए अखबारों की हेडलाइन देख लेता हूं।'
दूसरे केस में लगी लताड़
दूसरे केस की सुनवाई जस्टिस सूर्य कांत, उज्जल भुइयां और एन कोटिश्वर सिंह ने की। यह केस विजय मदनलाल चौधरी केस में आए फैसले पर की गई रिव्यू पिटीशन का था। इसी केस में बेंच ने कहा, 'आप (ईडी) किसी धूर्त की तरह काम नहीं कर सकते हैं, आपको कानून की सीमा में रहना होगा।'
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जस्टिस उज्जल भुइयां ने आगे कहा, 'कानून लागू करवाने वाली संस्थाओं और कानून का उल्लंघन करने वाली संस्थाओं में अंतर है। एक केस में मैंने देखा कि जो एक मंत्री ने संसद में कहा था, वह सच साबित हुआ। 5000 केस के बाद सिर्फ 10 मामलों में सजा हुई है। यही वजह है कि हम यह कह रहे हैं कि आप अपनी जांच सुधारिए। हम लोगों की स्वतंत्रता की बात कर रहे हैं। हम ईडी की छवि को लेकर भी चिंतित हैं। अगर पांच-छह साल की न्यायिक हिरासत के बाद लोग बरी हो जा रहे हैं तो इसकी कीमत कौन चुकाएगा?'
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट पहले भी ईडी के काम करने के तरीकों पर सवाल उठा चुका है। इसी साल 21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य केस में कहा था कि ईडी सारी हदें पार कर रहा है।