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ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से हो रही हवाई दुर्घटनाएं? क्या कहती है रिसर्च

इस आर्टकिल में खबरगांव आपको बता रहा है कि क्या ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से हवाई दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं? इस बारे में रिसर्च क्या कहती है?

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प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated

ग्लोबल वॉर्मिंग या क्लाइमेट चेंज एक ऐसा मुद्दा है जो दुनिया में हर किसी को हर तरह से प्रभावित कर रही है। यह खासतौर पर फॉसिल फ्यूल को जलाने, पेड़ों की कटाई और इंडस्ट्रियल प्रोसेस से उत्पन्न ग्रीनहाउस गैसों (कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड आदि) के उत्सर्जन के कारण हो रहा है। इसके प्रभाव पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं पर पड़ रहे हैं। हाल के वर्षों में, शोधकर्ताओं ने यह जानने की कोशिश की है कि क्या ग्लोबल वॉर्मिंग हवाई यात्रा की सुरक्षा, विशेष रूप से हवाई जहाज दुर्घटनाओं की संभावना को प्रभावित कर सकता है। ICAO ने अपनी 2022 की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी कि जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसमी घटनाएं एविएशन इंडस्ट्री के लिए एक बड़ा जोखिम पैदा कर रही हैं। इसमें बाढ़, तूफान और टर्बुलेंस शामिल हैं, जो उड़ान संचालन को बाधित कर सकते हैं और दुर्घटना की संभावना को बढ़ा सकते हैं।

 

ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण मौसम के पैटर्न में व्यापक बदलाव देखे जा रहे हैं। इनमें चरम मौसमी घटनाएं जैसे तूफान, चक्रवात, भारी वर्षा, तेज हवाएं और गर्म लहरें शामिल हैं। ये बदलाव हवाई यात्रा को कई तरह से प्रभावित कर सकते हैं, क्योंकि एविएशन सिस्टम मौसम दशा पर काफी कुछ निर्भर करता है। खासकर हवाई जहाज की लैंडिंग और टेकऑफ के समय तो इसका काफी प्रभाव होता है। इसलिए ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण तेजी से बदलती मौसमी परिस्थितियां और वायुमंडलीय अस्थिरता हवाई जहाजों की सुरक्षा को खतरे में डाल सकती हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग सीधे तौर पर तो इस पर कोई असर नहीं डालता है, लेकिन यह हवाई दुर्घटनाओं की संभावना को बढ़ा सकता है। 

 

इस लेख में खबरगांव इसी बात पर विचार करेगा कि क्या ग्लोबल वॉर्मिंग से विमान दुर्घटना पर फर्क पड़ता है या नहीं।

 

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टर्बुलेंस बढ़ सकता है

सिडनी की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नॉलजी के प्रोफेसर लान्स एम लेसली एंड मिलटन स्पीयर ने एक रिसर्च में पाया कि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण वायुमंडल में गर्मी का स्तर बढ़ रहा है, नतीजतन तूफान, चक्रवात और तेज हवाओं का चलना बढ़ा है, क्योंकि रिसर्च के मुताबिक एक डिग्री सेंटीग्रेट तापमान बढ़ने पर वायमंडल में 7% ज्यादा नमी सोखने की क्षमता बढ़ जाती है। 

 

इसके अलावा, 'क्लियर-एयर टर्बुलेंस' (CAT) की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। क्लियर एयर टर्बुलेंस ऊंचाई पर और तूफान या बिजली इत्यादि की वजह से नहीं होता है, बल्कि तेज हवाओं के कारण होता है। शोध बताते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण जेट स्ट्रीम (वायुमंडल में तेज हवाओं की धाराएं) में बदलाव हो रहा है, जिससे न सिर्फ टर्बुलेंस की संख्या बढ़ रही है बल्कि उसकी तीव्रता भी बढ़ रही है। यह दुर्घटना का कारण बन सकता है। उदाहरण के लिए, यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के एक अध्ययन में पाया गया कि उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र में आने वाले समय अगर 2 डिग्री तापमान बढ़ता है तो क्लियर-एयर टर्बुलेंस में 15% की वृद्धि हो सकती है जो कि विमान दुर्घटना में बढ़ा सकती है।

गर्मी बढ़ने का असर

ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण जब वातावरण का तापमान बढ़ता है तो वायुमण्डल की हवा कम घनी हो जाती है, जिसके कारण विमानों को टेकऑफ के लिए अधिक लंबे रनवे और अधिक इंजन शक्ति की आवश्यकता होती है।

 

यह विशेष रूप से छोटे एयरपोर्ट या ऊंचाई पर स्थित एयरपोर्ट (जैसे ल्हासा या ला पाज़) इत्यादि के लिए एक समस्या हो सकती है। यह छोटे एयरपोर्ट और उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में एक बड़ी चुनौती है। 

 

साल 2017 के  कोलंबिया विश्वविद्यालय की स्टडी में अनुमान लगाया गया कि गर्म मौसम के कारण विमानों की वहन क्षमता में कमी आएगी, जिससे उड़ान की लागत बढ़ेगी और सुरक्षा को लेकर जोखिम बढ़ेगा।

 

इसी स्टडी में अनुमान लगाया गया कि गर्म मौसम के कारण टेकऑफ के दौरान विमानों को ऊंचाई पर ले जाने के लिए अपेक्षित थ्रस्ट या धक्का कम मिल पाता है, जिससे न सिर्फ ईंधन की खपत बढ़ती है बल्कि फ्लाइट की सुरक्षा के लिए भी जोखिम बढ़ता है। यदि पायलट या ग्राउंड स्टाफ इस स्थिति का सही आकलन नहीं कर पाते, तो दुर्घटना की संभावना बढ़ सकती है।

पक्षियों का टकराना

यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एक अध्ययन (2021) में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन के कारण पक्षियों के प्रवास पैटर्न में बदलाव हो रहा है। कई पक्षी प्रजातियां पहले से अलग समय पर या अलग क्षेत्रों में प्रवास कर रहे हैं।

 

यह विमानों के लिए बर्ड स्ट्राइक के खतरे को बढ़ा सकता है, खासकर टेकऑफ और लैंडिंग के दौरान। अमेरिकी फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (FAA) के अनुसार, बर्ड स्ट्राइक से हर साल विमानों को लाखों डॉलर का नुकसान होता है, और कुछ मामलों में यह गंभीर दुर्घटनाओं का कारण बन सकता है। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण पक्षियों के व्यवहार में बदलाव इस जोखिम को और बढ़ा सकता है।

 

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नेविगेशन में परेशानी

ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण वायुमंडल में ओजोन की मात्रा और अन्य रासायनिक संरचनाओं में बदलाव हो रहा है, जो विमानों के नेविगेशन और कम्युनिकेशन सिस्टम को प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा, बढ़ते तापमान और नमी के कारण वायुमंडल में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक डिस्टर्बेंस की संभावना बढ़ सकती है, जिससे रडार और जीपीएस सिस्टम की सटीकता प्रभावित हो सकती है। यह पायलटों के लिए सही दिशा-निर्देश प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न कर सकता है, जिससे दुर्घटना का खतरा बढ़ता है।

एयरपोर्ट पर खतरा

ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण अप्रत्यक्ष तौर पर एयरपोर्ट के लिए भी खतरा है। ग्लेशियरों के पिघलने और समुद्र के स्तर में वृद्धि तटीय एयरपोर्ट को खतरे में डाल रही है। नासा और राष्ट्रीय समुद्री और वायुमंडलीय प्रशासन (NOAA) ने समुद्र के स्तर में वृद्धि और तटीय एयरपोर्ट पर इसके प्रभाव का अध्ययन किया।

 

उनके निष्कर्ष बताते हैं कि अगले कुछ दशकों में समुद्र के स्तर में वृद्धि तटीय एयरपोर्ट के लिए एक बड़ा खतरा पैदा करेगी, जिससे रनवे और अन्य बुनियादी ढांचे को नुकसान हो सकता है। यह टेकऑफ और लैंडिंग के दौरान दुर्घटनाओं की संभावना को बढ़ा सकता है।

 

दुनिया के कई प्रमुख एयरपोर्ट, जैसे न्यूयॉर्क का जॉन एफ कैनेडी एयरपोर्ट, मियामी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट और भारत में मुंबई का छत्रपति शिवाजी महाराज अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट, समुद्र तट के करीब स्थित हैं।

 

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समुद्र के स्तर में वृद्धि और तूफानी लहरों के कारण इन एयरपोर्ट पर बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है, जिससे रनवे और अन्य बुनियादी ढांचे को नुकसान हो सकता है जिससे यह टेकऑफ और लैंडिंग के दौरान दुर्घटनाओं का कारण बन सकता है।

 

कुल मिलाकर यह नहीं कहा जा सकता है कि इसकी वजह से दुर्घटना हो रही है, लेकिन रिसर्च से पता चलता है कि जैसे जैसे ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ रहा है वैसे-वैसे हवाई दुर्घटनाएं बढ़ सकती हैं।

 

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