महाकुंभ: 7 हजार करोड़ का निवेश, 2 लाख करोड़ का फायदा, समझिए इकोनॉमी
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• PRAYAGRAJ (ALLAHABAD) 13 Jan 2025, (अपडेटेड 13 Jan 2025, 5:18 PM IST)
महाकुंभ की शुरुआत के साथ ही इसके धार्मिक पहलू पर खूब बात हो रहा है। क्या आप जानते हैं कि इसका एक आर्थिक पहलू भी है। इसके चलते सरकार को खूब फायदा भी होने वाला है।

महाकुंभ में पहुंचे श्रद्धालु, Photo Credit: PTI
आस्था, विश्वास और परंपरा का संगम. मठों, तीर्थयात्रियों और सैलानियों का आश्रय. गंगा, यमुना और सरस्वती के इस संगम में जब लाखों श्रध्दालु एक साथ डुबकी लगाते हैं। तब बनता है, आध्यात्म का महाकुंभ। आध्यात्म के इस मेले का एक दूसरा पहलू भी है। मोक्ष की डुबकी लगाने पहुंचे लाखों श्रद्धालु, यहां अर्थव्यवस्था के विकास की भी एक डुबकी लगा जाते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार इस महाकुंभ के आयोजन के लिए करीब 7 हजार करोड़ रुपए खर्च कर रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दावा है कि इस महाकुंभ से 2 लाख करोड़ रुपये का रेवेन्यू जनरेट होगा, लेकिन कैसे? कैसे सरकार कुंभ से कमाई करती है? कैसे 7 हजार करोड़ का इन्वेस्टमेंट, 2 लाख करोड़ का रिटर्न देने वाला है।
चाहे बात अब के सरकार की हो, या अंग्रेजों की या मुगलों की। सभी ने आस्था के इस सबसे बड़े जुटान से खूब कमाई की है। इतिहासकारों को कुंभ पर टैक्स वसूलने का सबसे पुराना वाक्या मुगलकाल से मिलता है। इतिहासकार डॉ धनंजय चोपड़ा अपनी किताब, 'भारत में कुंभ' में लिखते हैं कि 16वीं सदी में जब अकबर ने मुगल सल्तन की कमान संभाली। तब कुंभ मेले के आयोजन पर पहली बार टैक्स लगाया गया। साथ ही तीर्थ के लिए जाने वाले हिंदू तीर्थयात्रियों से भी टैक्स वसूला जाने लगा। जिसे जज़िया कर कहा जाता था लेकिन बाद में हिंदुओं की मांग पर अकबर ने जज़िया कर खत्म कर दिया और इसी के साथ कुंभ में लगने वाला टैक्स भी खत्म हो गया।
भले ही अकबर ने ये टैक्स खत्म किया लेकिन उन्होंने ही इसे लागू किया था और कुंभ के जरिए कमाई की थी। मुगलों के बाद यही काम अंग्रेजों ने किया। उन्होंने कुंभ से टैक्स वसूल कर कमाई करना शुरू किया। इतिहासकार एस. के. दुबे की किताब, 'कुंभ सिटी प्रयाग' के मुताबिक, साल 1822 में अंग्रेजों ने कुंभ आने वाले हर तीर्थ यात्री पर सवा रुपये का लगान वसूलना शुरू कर दिया। इसे पिलग्रिमेज टैक्स कहा गया। ये वह दौर था जब 1 रुपये में पूरे महीने के राशन का इंतजाम हो जाता था। ऐसे में कुंभ के लिए सवा रुपये का टैक्स बहुत ज्यादा था लेकिन इसके बावजूद अंग्रेज सरकार फायदे में रही।
क्या है इतिहास?
इतिहासकार डॉ धनंजय चोपड़ा के मुताबिक, 1822 के महाकुंभ में अंग्रेजों ने 22 हजार 2 सौ 28 रुपए खर्च किए। आज के हिसाब से 3 करोड़ 65 लाख रुपए। जबकि टैक्स के जरिए उन्होंने कुंभ से 49 हजार 8 सौ 40 रुपए की कमाई कर ली। आज के हिसाब से 8 करोड़ 26 लाख रुपए। यानी 3 करोड़ 65 लाख के इन्वेस्टमेंट पर दोगुने से ज्यादा, 8 करोड़ 26 लाख का रिटर्न। 1840 में अंग्रेज गर्वनर जनरल लॉर्ड ऑकलैंड ने तीर्थ यात्रियों से वसूले जाने वाले पिलग्रिमिज टैक्स को खत्म कर दिया लेकिन फिर भी मेले में दुकान लगाने वाले कारोबारियों से टैक्स वसूलना जारी रहा। यानी आने वाले सालों में भी अंग्रेजों ने कुंभ से कमाई जारी रखी।
ये तो हो गई इतिहास की बात। अब जानते हैं हाल के सालों में कुंभ पर सरकार ने कितने रुपए खर्च किए और कितना रिवेन्यू इससे वापस जनरेट कर फायदा कमाया। 2013 में तब के इलाहाबाद में महाकुंभ लगा। तत्कालीन सपा सरकार ने महाकुंभ पर 1300 करोड़ रुपये खर्च किए। भारतीय उद्योग परिसंघ, CII ने अनुमान जताया कि 2013 के कुंभ से कुल मिलाकर 1 लाख करोड़ रुपये का रिवेन्यू जनरेट हुआ। यानी 1300 करोड़ के इन्वेस्टमेंट पर 1 लाख करोड़ का रिटर्न।
2019 में इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज हो चुका था। मौजूदा योगी सरकार ने उस अर्द्ध कुंभ में 4200 करोड़ रुपए खर्च किए। CII ने अनुमान जताया कि इस अर्द्ध कुंभ से उत्तर प्रदेश सरकार को करीब 1 लाख 20 हजार करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ। मलतब, 4200 करोड़ के इन्वेस्टमेंट से 1 लाख 20 हजार करोड़ का रिटर्न।
अब, 2025 में हो रहे इस महाकुंभ में योगी सरकार करीब 7 हजार करोड़ रुपए खर्च करने वाली है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अनुमान जताया है कि इस कुंभ से 2 लाख करोड़ रुपए का रिवेन्यू जनरेट होगा लेकिन कैसे?
इसे दो हिस्सों में समझते हैं। खर्च और मुनाफा। पहले बात खर्च की।
इस साल कुंभ में 40 से 45 करोड़ लोगों के आने का अनुमान है। तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए, सुरक्षा के लिए, कुंभ के इन्फ्रास्ट्र्क्चर के लिए केन्द्र और राज्य सरकार, कुल मिलाकर 6 हजार 9 सौ 90 करोड़ खर्च करने वाली है। जो अब तक किसी धार्मिक आयोजन में हुए खर्च का सबसे बड़ा आंकड़ा है।कुंभ क्षेत्र को उत्तर प्रदेश का एक अलग जिला घोषित किया गया है। यूपी में 75 जिले हैं, महाकुंभनगर 76वां जिला बना है। इस जिले को कुल 25 सेक्टर में बांटा गया है। हर सेक्टर का अपना अलग वॉटर सप्लाई, ड्रेनेज सिस्टम और वेस्ट मैनेजमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर होगा। पैसे मुख्य तौर पर तीन चीजों पर खर्च किए जा रहे हैं।
पहला है क्लीनलीनेस
सेनेटाइजेशन और ग्रे वॉटर ट्रीटमेंट पर ही सरकार 1600 करोड़ रुपए खर्च कर रही है। इन पैसों से 1 लाख 45 हजार बाथरूम तैयार किए गए हैं। इनकी सफाई के लिए 10 हजार 2 सौ सफाई कर्मचारी मौजूद है। 300 सक्शन ट्रक्स मंगाए गए हैं। 25 हजार डस्टबिन रखे गए हैं। खाने पकाने, कपड़े धोने और नहाने से निकलने वाले ग्रे वॉटर के ट्रीटमेंट के लिए प्लांट बनाए गए हैं।
दूसरा है सिक्योरिटी
कुंभ की डिजिटल सिक्योरिटी पर मोटी रकम खर्च हुई है। 2 हजार 7 सौ सिक्योरिटी कैमरे लगाए गए हैं। कमांड सेंटर से इन सभी कैमरों पर नजर रखी जाएगी। 325 AI सक्षम कैमरे भी मौजूद हैं। सरकारी गाड़ियों की GPS ट्रैकिंग की जानी है। एंटी ड्रोन टेक्नीक पर खर्च किया गया है। ताकी बिना परमिशन उड़ने वाले ड्रोन को गिराया जा सके। महाकुंभनगर की सिक्योरिटी के लिए कुल मिला कर 50 हजार सुरक्षा कर्मी तैनात रहेंगे।
तीसरा है इंफ्रास्ट्रक्चर
सबसे ज्यादा खर्च कुंभ के इंफ्रास्ट्रक्टर पर हुआ है। 1 लाख से ज्यादा तंबुओं वाली टेंट सिटी बनाई गई है। 1 हजार 2 सौ 50 किलोमीटर लंबी वॉटर पाइप लाइन, 4 सौ 88 किलोमीटर लंबी सड़क, 30 टेंपरेरी पुल, 7 हजार बसें, सैकड़ों नए घाट, 67 हजार LED स्ट्रीट लाइट पर करोड़ों रुपए खर्च हुए हैं। डिजिटलाइजेशन के लिए AI चैटबॉट, कुंभ मेला ऐप, डिजिटल खोया पाया सेंटर जैसे कई सुविधाएं पर पैसे खर्च हुए हैं। इनके अलावा एडवरटाइज़मेंट और सूचनाओं के लिए, पूरे कुंभ क्षेत्र में हजारों LED स्क्रीन मौजूद हैं। कुंभ की मैपिंग के लिए गूगल के साथ टाइअप किया गया है। ताकी गूगल मैप के जरिए आप कुंभ सिटी के अंदर नैविगेट कर सकेंगे।
रेलवे ने ही सिर्फ 4 हजार 9 करोड़ का कुंभ के लिए अलग बजट तैयार कर रखा है। जिसमें 3 हजार नईं और 10 हजार पुरानी ट्रेनें, कुल मिलाकर 13 हजार ट्रेंन्स चलाई जाएंगी। एक सिक्स लेन ब्रिज गंगा के ऊपर और एक फोर लेन रेलवे ओवरब्रिज अलग से बनाए गए हैं। रेलवे स्टेशन्स का पूरा काया पलट कर दिया गया है। अब ये तो हो गई खर्च की बात। सरकार ने कुंभ के बजट का पैसा अलग-अलग मद में बांट दिया है। बिजली विभाग, लाइट्स और बिजली का काम देख रहा है। परिवहन विभाग रोड ट्रांसपोर्ट का। पुलिस विभाग सिक्योरिटी का। ऐसे अलग-अलग मद में पैसे डाले गए हैं।
कैसे और कितनी होगी कमाई?
यहां तक हमनें कुंभ पर होने वाले खर्च को समझा। अब जानते हैं कुंभ से होने वाली कमाई के बारे में। जानते हैं आखिरकार कुंभ से कैसे 2 लाख करोड़ रुपए का रेवेन्यू जनरेट करने की प्लानिंग है। CII के अनुमान के मुताबिक, कुंभ 2025 में सरकार सिर्फ टैक्स, रेंट और सर्विस चार्ज से 25 हजार करोड़ का रिवेन्यू जनरेट करेगी। 2 से 3 लाख करोड़ रुपए टूरिज्म, लोकल सेल और सर्विसेस से जनरेट होगा। 3 हजार करोड़ रुपए सरकार मार्केटिंग और एडवाटाइजमेंट से कमाने वाली है।
इन सारी आमदनी को आसान भाषा में खुरच-खुरच कर समझते हैं। सरकार के पास डायरेक्ट और इनडायरेक्ट मिलाकर 5 सोर्स ऑफ रेवेन्यू है।
1. पहला है टैक्स। आम भाषा में GST। करोड़ों लोग कुंभ आएंगे। होटल में रूकेंगे। खाना खाएंगे। सामान खरीदेंगे। ट्रेन-फ्लाइट-बस पर टिकट लेंगे। इन सभी ट्रांजेक्शन पर GST लगेगा। जिससे सरकार सैकड़ों करोड़ रुपए डायरेक्ट इनकम जनरेट करेगी।
2. दूसरा है रेंटल और लैंड लीज़ से। कुंभ क्षेत्र के अंदर लगने वाली चाय की टपरी से लेकर फाइन डाइन रेस्टोरेंट तक। हर दुकान की जमीन सरकार ने लीज़ पर दी है। इससे सरकार को सबसे ज्यादा मुनाफा हो रहा है।
इसको ऐसे समझिए। कुंभ के अंदर एक कचौड़ी के दुकान की लीज़ 92 लाख रुपए में गई है। कई दुकानें 35 से 40 लाख रुपए में गई हैं। बड़ी कंपनियां जो डोम और सर्व सुविधा युक्त टेंट बना रही हैं, उनकी लीज़ भी करोड़ों में हैं।
इसके अलावा सरकार खुद के बनाए टेंट्स किराए पर देकर पैसे कमाने वाली है। अखाड़ों के लिए जो टेंट्स बनाए गए हैं। उससे अच्छा खासा रेवेन्यू जनरेट होने वाला है।
3. तीसरा है सर्विस चार्ज। कुंभ क्षेत्र के अंदर हर सर्विस के लिए सरकार पैसे चार्ज कर रही है। होटल, रेस्टोरेंट्स, दुकानों की साफ-सफाई, सेनिटाइजेशन, कूड़ा उठाने के लिए सरकार फीस वसूल रही है। सामानों के ट्रांसपोर्टेशन के लिए भी सरकार को अच्छी खासी फीस चुकानी होगी। कुंभ आने वाले करोड़ों लोगों के साथ लाखों गाड़ियां भी आएंगी। जिनसे सरकार पाकिंग चार्ज वसूलेगी।
4. चौथा है लाइसेंसिंग और परमिट फीस। कुंभ के अंदर खाद्य और पेय पदार्थ बेचने के लिए सरकार से लाइसेंस और परमिट लेना पड़ता है। इसके लिए आपको सीधे तौर पर फीस चुकानी होगी। इससे भी सरकार डायरेक्ट रिवेन्यू जनरेट कर रही है। चाय की दुकान के लिए अलग फीस चुकाना होगा, समोसा दुकान के लिए अलग और फाइन डाइन रेस्टोरेंट के लिए अलग फीस।
5. पांचवां है टूरिज्म रिवेन्यू। कुंभ के अंदर कई ऐसी जगहें हैं, जहां जाने के लिए फीस या टिकट देनी होती है। इससे भी सरकार डायरेक्ट रिवेन्यू जनरेट करती है।
विदेशियों से खूब मिलेगा पैसा
इनके अलावा फॉरेन से आने वाले लाखों टूरिस्ट से 2.2 बिलियन डॉलर का रिवेन्यू जनरेट होने का अनुमान है। जिससे भारत की फॉरेन करेंसी में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी। प्रयागराज के लोकल व्यापारी कुंभ के 49 दिनों में इतनी कमाई करेंगे, जितना वे 6 महीने में करते हैं। करीब 45 हजार फैमली को डायरेक्ट और इनडायरेक्ट जॉब या बेनिफिट मिलेगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि कुंभ का पॉजिटिव इम्पैक्ट राज्य के दूसरे धार्मिक जगहों पर भी होगा। दूर से आने वाले यात्री प्रयागराज के साथ ही, अयोध्या, वाराणसी, मथुरा जैसी जगहों पर भी घूमने जाएंगे। जिससे वहां के व्यापारियों को भी लाभ होने वाला है।
कुल मिलाकर सरकार का लक्ष्य कुंभ 2025 से 2 लाख करोड़ के रिवेन्यू जनरेट करने का है। CII के डेटा के मुताबिक महाकुंभ 2013 से सरकार को 1 लाख करोड़ का रिवेन्यू प्राप्त हुआ था। 2019 के अर्द्ध कुंभ से सरकार ने 1।2 लाख करोड़ का रिवेन्यू जनरेट किया। अब सरकार 2 लाख करोड़ का रिवेन्यू जनरेट करने की दिशा में है। आस्था और परंपरा का ये विशाल संगम, देश की अर्थव्यवस्था को भी बढ़ाने में मदद करेगा।
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