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'कोर्ट के अलावा कोई नहीं देख सकता', इलेक्शन के वीडियो पर EC का फैसला

चुनाव आयोग ने इलेक्शन के दौरान रिकॉर्ड किए गए वीडियो के नियमों में बदलाव करते हुए कहा कि इन्हें सिर्फ कोर्ट में चुनाव से जुड़ी याचिका की सुनवाई के दौरान पेश किया जाएगा।

Representational Image । Photo Credit: PTI

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: PTI

भारत के चुनाव आयोग ने मतदान के दौरान रिकॉर्ड किए गए वीडियो फुटेज के नियमों में बदलाव किया है। नए नियम के अनुसार, ये फुटेज केवल उस हाई कोर्ट को दिखाए जा सकते हैं, जो चुनाव से जुड़े किसी मामले की सुनवाई कर रहा हो। आयोग का कहना है कि इन फुटेज को सार्वजनिक करने से मतदाताओं की गोपनीयता भंग हो सकती है और उनकी सुरक्षा को खतरा हो सकता है।

 

सीसीटीवी, वेबकास्ट या वीडियोग्राफी के जरिए रिकॉर्ड किए गए फुटेज को साझा करने से कोई भी व्यक्ति या समूह मतदाताओं की पहचान आसानी से कर सकता है। इससे मतदाता दबाव, भेदभाव या असामाजिक तत्वों द्वारा डराने-धमकाने का शिकार हो सकते हैं।

 

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राज्यों को दिया निर्देश

18 जून के एक सर्कुलर में, आयोग ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि यह नया नियम 30 मई, 2025 के बाद होने वाले चुनावों पर लागू होगा। सर्कुलर में कहा गया है कि ये वीडियो केवल हाई कोर्ट के आदेश पर, चुनाव से जुड़ी याचिका की सुनवाई के दौरान, मूल रूप में पेश किए जाएंगे। इनका इस्तेमाल किसी अन्य व्यक्ति या प्राधिकरण के सामने नहीं किया जाएगा।

 

यह बदलाव 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस, की उस मांग के बाद आया है, जिसमें मतदान केंद्रों के शाम 5 बजे के बाद के सीसीटीवी फुटेज को सार्वजनिक करने की मांग की गई थी।

 

पिछले साल दिसंबर में, सरकार ने चुनाव नियमों में बदलाव कर सीसीटीवी, वेबकास्ट और उम्मीदवारों के वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों को सार्वजनिक निरीक्षण से रोक दिया था। चुनाव आयोग की सिफारिश पर, केंद्रीय कानून मंत्रालय ने 1961 के चुनाव आचरण नियम की धारा 93 में संशोधन किया, ताकि सार्वजनिक निरीक्षण के लिए उपलब्ध दस्तावेजों को सीमित किया जा सके।

45 दिनों तक ही दी जा सकेगी चुनौती

आयोग ने यह भी निर्देश दिया है कि अगर चुनाव परिणाम घोषित होने के 45 दिनों तक कोई कानूनी चुनौती नहीं दी जाती, तो ऐसे वीडियो फुटेज को नष्ट कर दिया जाएगा। एक अधिकारी ने बताया कि 45 दिनों के बाद इन फुटेज को रखने से गलत सूचना और दुर्भावनापूर्ण कहानियां फैलाने का खतरा हो सकता है। लेकिन अगर 45 दिनों के भीतर कोई चुनाव याचिका दायर होती है, तो वीडियो नष्ट नहीं किए जाएंगे और संबंधित कोर्ट को उपलब्ध कराए जाएंगे।

 

अधिकारी ने कहा कि वीडियो देना, फॉर्म 17ए (वोटर रजिस्टर) तक ऐक्सेस देने जैसा है, जिसमें मतदाताओं की जानकारी होती है, जैसे कि वे मतदान केंद्र में किस क्रम में आए और उनका मतदाता सूची में सीरियल नंबर क्या था। मतदान की गोपनीयता का उल्लंघन करना 1951 के जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 128 के तहत दंडनीय है, जिसमें तीन महीने तक की जेल, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

 

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गोपनीयता से समझौता नहीं

एक अन्य अधिकारी ने कहा कि मतदाताओं के हितों और उनकी गोपनीयता की रक्षा करना आयोग की प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि कुछ राजनीतिक दल या समूह दबाव डाल सकते हैं, लेकिन मतदाताओं की गोपनीयता और सुरक्षा से समझौता नहीं किया जाएगा।

 

इस कदम पर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने चुनाव आयोग पर 'सबूत मिटाने' का आरोप लगाया। उन्होंने एक्स पर लिखा, ' 

राहुल गांधी ने किया पोस्ट

वोटर लिस्ट? मशीन-रीडेबल फॉर्मेट नहीं देंगे। सीसीटीवी फुटेज? कानून बदलकर छिपा लिया। चुनाव की तस्वीरें और वीडियो? अब 45 दिनों में डिलीट कर देंगे, न कि 1 साल में। जवाब देने वाला ही सबूत मिटा रहा है।'

 

 

इससे पहले, गुजरात के विसावदर विधानसभा उपचुनाव (19 जून) के दौरान एक मतदान केंद्र में ईवीएम के पास दो लोगों के खड़े होने का कथित वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया था, जिसके बाद आयोग ने इसकी जांच शुरू की।

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