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कैलाशनाथ का रहस्यमयी मंदिर, जिसके बनने की कहानी हैरान कर देगी

कैलाश मंदिर का निर्माण कैसे हुआ था, पर्वतों को काटकर किसने मंदिर बनाया? तांबों के प्लेटों पर किसने शिलालेख लिखे? कौन हैं राष्ट्रकूट वंश के प्रथम राजा कृष्ण, जिन्होंने एलोरा में ऐसा मंदिर बनवा दिया?

Kailashnath Temple

एलोरा का कैलाशनाथ मंदिर किसी आश्चर्य से कम नहीं है। (फोटो क्रेडिट- www.brunopoppe.com.br)

दक्कन की पहाड़ियों को काटकर एक ऐसे मंदिर का निर्माण छठवीं से 10वीं शताब्दी के बीच हुआ, वैसा आधुनिक भारत में कोई चाहकर भी नहीं कर पाता। दुनिया के पास कितनी भी अत्याधुनिक मशीनरी क्यों न आ गई हो लेकिन राष्ट्रकूटों के बनवाए इस मंदिर की बराबरी, दूर-दूर तक कोई भी नहीं कर सकता। पूरी दुनिया में यह अपनी मनोलिथिक शिल्प में बनी इकलौती संरचना है। ये एलोरा का कैलाश मंदिर है। राष्ट्रकूटों का साम्राज्य इतना विस्तृत था कि उनका राज्य कर्नाटक से लेकर उत्तर प्रदेश के कन्नौज तक फैला हुआ था। 

राष्ट्रकूटों की वास्तुकला अद्वितीय है, जिसकी कोई बराबरी नहीं कर सकता। छत्रपति संभाजीनगर के पास कैलाशनाथ मंदिर, उनकी स्थापत्य कला का सबसे बड़ा उदाहरण है। यह पूरा मंदिर, बेसाल्ट चट्टानों को काटकर तैयार किया गया है। किसी जमाने में यहां कोई बड़ा ज्वालामुखी विस्फोट हुआ होगा, जिसके बाद इस इलाके का भूगोल बदला होगा। ये चट्टानें लावा से ही बनी हैं, जिनमें आयरन और मैग्नीशियम जैसे तत्वों की बहुलता है। 

न मशीनें, न सुविधाएं, कैसे काटी गई होगी चट्टान?

कैलाशनाथ मंदिर की कलाकृति अद्भुत है। यह 300 फीट लंबा और 175 फीट चौड़ा है। इसकी ऊंचाई 100 फीट है। यह कलाकृति अपने आपमें अद्भुत है क्योंकि ऐसी संरचना कहीं और नजर नहीं आती, जब इतनी मजबूत चट्टानों को इतने सलीके से तराशकर बनाया गया हो। ऐसे वक्त में जब न तो संसाधन थे, न सुविधाएं थीं। आधुनिक भारत में कई मंदिर और भवनों का निर्माण हुआ लेकिन वस्तुकला के लिहाज से हर निर्माण इस स्थापत्य कला के सामने फीका नजर आया। 

क्या है मंदिर की विशेषता?

मंदिर के गर्भगृह से जुड़े कई कक्ष हैं, जो इस मंदिर को और सुंदर बनाते हैं। मुख्य सभा कक्ष 70 फुट लंबा और 62 फुट चौड़ा है।  चट्टान को काटकर पुल बनाया गया है, जो गोपुरम को मंदिर के आंतरिक भाग से जोड़ता है। मंदिर का शिखर धरती से 96 फीट ऊंचा है। प्रवेश द्वार के दोनों ओर 70-70 फुट के विशाल स्तंभ हैं। मंदिर के पहले स्तर पर हाथियों की विशाल प्रतिमाएं हैं। यह संकेत दिया गया है कि इन्हीं हाथियों की पीठ पर मंदिर खड़ा है। हाथियों की आकृतियां इतनी सजीव हैं कि दूर से भ्रम ही हो जाए कि कहीं ये सच तो नहीं है। मंदिर के निचले हिस्से को काटकर एक सुंदर गलियारा बनाया गया है, जिसमें एक अंतराल पर द्वार जैसी कलाकृतियां बनाई गई हैं।

एलोरा का कैलाशनाथ मंदिर. (फोटो क्रेटिड- wikipedia.org)

भित्ति चित्रों की कारीगरी बहुत मनमोहक है। बीच में सीढ़ियां बनाई गई हैं, जिससे गलियारे के ऊपरे हिस्से पर लोग चढ़ सकें। गलियारों में लोगों के बैठने और सोने भर की जगहें हैं। ऐसा लगता है कि जैसे चट्टान को काटकर इन पर रखा गया है लेकिन यह एक ही चट्टान का हिस्सा है, जिसे काटकर कैलाशनाथ मंदिर बनाया गया है। मंदिर परिसर के चारो ओर गलियारे हैं। इनमें सुंदर कलाकृतियां बनाई गई हैं। अलग-अलग देवताओं की प्रतिमाएं उकेरी गई हैं। शिल्पकारों की यह कल्पना हैरान कर देती है। 

ऐसी वास्तुलकला भारत में कहीं नहीं 

यह मंदिर वास्तुकला का असाधरण प्रदर्शन है। मुख्य सभा कक्ष के अंदर के स्तंभों पर भी कलाकृतियां उकेरी गई हैं। पत्थरों की नक्काशी ऐसी की गई है कि जैसे किसी सीमेंट से की जाती है। इतने विशाल खंभे हैं, जिन्हें देखकर आपको यकीन नहीं होगा। गर्भगृह में भगवान शिव का विशाल शिवलिंग है। राष्ट्रकूट राजाओं द्वारा बनवाया गया यह मंदिर, अलौकिक है। देश के ही दूसरी हिस्सों में जहां मंदिर बनाने के लिए अलग-अलग जगहों से चट्टान लाए जाते हैं लेकिन यहां का किस्सा ही अलग था।

कैलाशनाथ मंदिर. (फोटो क्रेडिट- whc.unesco.org/en/documents/1)09377)

विशाल पहाड़ी को काटकर बना दिया मंदिर, असंभव सा निर्माण
विशाल पहाड़ी को काटकर मंदिर बनाया गया था, मंदिर वैसे ही बना, जैसे चट्टान अलग से लाकर बनाए जाते। आज अगर ऐसा मंदिर बनाना हो तो शायद से असंभव हो। कैलाश मंदिर में छोटी-छोटी मूर्तियां उकेरी गई हैं, जिनमें देवताओं की अलग-अलग भावभंगिमाएं हैं। भगवान शिव के इस मंदिर में रामायण-महाभारत की कहानियां हैं, भित्तिचित्रों के अवशेष हैं, देवी-देवताओं की छोटी-छोटी प्रतिमाएं हैं, वैदिक संस्कृतियों की झलक है। ये निर्माण असंभव जैसे लगते हैं। 

किस राजा ने बनवाया था ये मंदिर?

राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण भगवान शिव के भक्त थे। मंदिर में भगवान शिव की मूर्तियां बनाई गई हैं। उनके गणों के चित्र बनाए गए हैं। भित्ति चित्रों पर यज्ञोपवीत पहने कई देवता हैं। मंदिर के उत्तरी हिस्से में भगवान विष्णु की मूर्तियां बनाई गई हैं। संभवत: यह तब बना है, जब शैव और वैष्णव संप्रदाय के बीच का भेद शांत हो गया था और लोग सनातन धर्म के मतैक्य को समझ गए थे। 

यह मंदिर कैसे बना, यह आज भी किसी रहस्य से कम नहीं है। सवाल कई हैं कि पर्वत को ऊपर से काटते हुए नीचे के क्रम में बना है या नीचे से ऊपर के क्रम में इसका निर्माण हुआ है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पहाड़ की खुदाई से नक्काशी तक के सफर में कम से कम 100 साल लगे होंगे। 

शताब्दी लगी लेकिन मंदिर में है एक-रूपता
कई राजाओं ने इस पर काम किया होगा। सवाल तो ये भी हैं कि क्या इस मंदिर का नक्शा किसी एक ही राजा ने बनाया होगा, जिसके अनुयायियों ने इस मंदिर को उसी हिसाब से तैयार किया होगा। मंदिर की एकरूपता देखें तो यह सच के काफी करीब लगता है। मंदिर एकल ढांचा है, जिसे एक योजना के साथ ही तैयार किया जा सकता था। 

कैलाशनाथ मंदिर (इमेज क्रेडिट- whc.unesco.org/en/list/243/gallery/)

कैसे तराशा गया मंदिर?
यह किसी एक पीढ़ी का काम नहीं है, कई पीढ़ियां इस काम में लगी होंगी। दूसरी पीढ़ी तक इसे सही समायोजन के साथ बताया गया। यह सच था कि एक विशाल चट्टान को देखकर उन्होंने पूरी संरचना पहले ही तैयार कर ली होगी। कुछ विद्वानों का मत है कि उन्होंने पत्थर की चोटी से निर्माण शुरू किया था और नीचे तह तक आखिरी में आए थे। अगर ये सच है तो पहले मंदिर का ऊपरी हिस्सा बना, ठोस गुंबद तैयार किए गए और नक्शे के हिसाब से नीचे के हिस्सों को आकार दिया गया। 

क्या देवताओं ने बनाया था मंदिर या एलियन?
कैलाशनाथ मंदिर करीब डेढ़ से दो लाख टन चट्टानों को काटकर बनाया गया है। जिन चट्टानों को काटकर निकाल दिया गया, उनका मलबा कहीं दूर दूर तक नजर नहीं आता। वे चट्टानें अब कहा हैं, यह किसी रहस्य से कम नहीं है। हद तो ये है कि प्राचीन भारत के लोगों के इस महान काम को कुछ लोग मानते हैं कि ये दैवीय कला है। उनका कहना है कि इसे देवताओं ने बनाया होगा। सामान्य मानव इसे तो नहीं बना सकते। भारत पत्थरों को काटकर सजीव महल-मंदिर बनाने में कितना दक्ष है, इसकी बानगी खजुराहो से लेकर पम्पी तक दिख जाएगा। 

यूनेस्को ने घोषित किया है विश्व धरोहर
प्रचीन भारत के इन कलाकारों ने जो कर दिखाया, आधुनिक युग के कलाकार उसे अब नहीं कर पाएंगे। प्राचीन कलाकारों की न तो कला विधियां सुरक्षित रहीं, न ही अब पहले जैसे शिल्पकार बचे हैं। पत्थरों को काटकर ऐसा चमत्कार, मानव इतिहास में शायद ही कहीं और हुआ है, जैसा प्रयोग कैलाशनाथ मंदिर में हुआ। यूनेस्को ने इस मंदिर को साल 1983 में विश्व धरोहर घोषित किया था। इस मंदिर को देखने लाखों लोग हर साल आते हैं। 

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