एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक को भारत में सैटेलाइट बेस्ड इंडटरनेट सर्विस शुरू करने का लाइसेंस मिल गया है। दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इसकी जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि सुचारू रूप से सर्विस शुरू करने के लिए स्पेक्ट्रम अलॉटमेंट का फ्रेमवर्क भी तैयार हो गया है।
घोषणा भारत में पहली सेलुलर कॉल की 30वीं सालगिरह के मौके पर की गई। भारत में 1995 में पहली सेलुलर कॉल हुई थी।
सिंधिया ने बताया, 'स्टारलिंक को भारत में सैटेलाइट इंटरनेट शुरू करने के लिए यूनिफाइड लाइसेंस मिल गया है। स्पेक्ट्रम एलॉकेशन और गेटवे एस्टैब्लिशमेंट के लिए फ्रेमवर्क तैयार है, जिससे सुचारू रूप से सर्विस शुरू हो सकेगी।'
स्टारलिंक के साथ-साथ भारती ग्रुप की Eutelsat OneWeb और जियो की SES भी भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस देने के लिए स्पेक्ट्रम एलॉकेशन का इंतजार कर रही हैं।
यह भी पढ़ें-- भारत आएगी मस्क की Starlink? जानें सैटेलाइट से कैसे चलेगा इंटरनेट
कब तक लॉन्च होगी स्टारलिंक की सर्विस?
इसे लेकर अभी कोई तारीख तय नहीं हुई है। हालांकि, ऐसा माना जा रहा है कि 2026 से स्टारलिंक की सर्विस भारत में शुरू हो सकती है।
एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक 2022 से ही भारत में अपनी सर्विस शुरू करने की मंजूरी मांग रही थी। हालांकि, बात अब जाकर बनी है। कुछ महीनों पहले ही स्टारलिंक ने जियो और एयरटेल के साथ समझौता किया था। अपनी सर्विस शुरू करने के लिए स्टारलिंक इन्हीं के नेटवर्क का इस्तेमाल करेगी।
ऐसा बताया जा रहा है कि स्टारलिंक भारत में सिर्फ 20 लाख यूजर्स को ही अपनी सर्विस दे सकता है। स्टारलिंक से 200 Mbps तक की स्पीड से इंटरनेट चलेगा।
यह भी पढ़ें-- 1900 करोड़ की डील और ईरानी तेल; ट्रंप ने 6 भारतीय कंपनियों को किया बैन
इससे फायदा क्या होगा?
इससे सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि दूरदराज के इलाकों तक भी इंटरनेट पहुंचाया जा सकेगा। अभी हम जो इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं, उसके लिए टेलीकॉम कंपनियां अंडरग्राउंड केबल या मोबाइल टॉवरों का इस्तेमाल करती हैं। यह शहरों और अच्छे इलाकों में तो काम करता है लेकिन पहाड़ी और दूरदराज के इलाकों में केबल से इंटरनेट पहुंचाना न सिर्फ मुश्किल है, बल्कि काफी महंगा है।
इसके उलट, स्टारलिंक केबल की बजाय पृथ्वी की निचली कक्षा में मौजूद हजारों सैटेलाइट का इस्तेमाल करता है और कोने-कोने तक इंटरनेट पहुंचाता है।
हाई स्पीड के लिए लो अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट का इस्तेमाल करती है। यानी, ऐसे सैटेलाइट जो पृथ्वी से 160 से 1,000 किलोमीटर की ऊंचाई पर होते हैं। हालांकि, स्टारलिंक की सैटेलाइट 550 किलोमीटर की ऊंचाई पर हैं। यह सैटेलाइट पृथ्वी से बहुत ज्यादा दूर नहीं होतीं, इसलिए इंटरनेट की स्पीड औसत से 4 गुना होती है।
स्टारलिंक के पास ऑर्बिट में 6,419 सैटेलाइट हैं। यह सैटेलाइट काफी बड़े होते हैं। इनमें एक 3 मीटर का फ्लैट पैनल और बिजली के लिए 8 मीटर का सोलर पैनल लगा होता है। यह सैटेलाइट सिग्नल को जमीन पर मौजूद रिसीवर्स तक पहुंचाता है और उसे इंटरनेट डेटा में तब्दील कर देता है। पृथ्वी की निचली कक्षा में मौजूद यह सैटेलाइट मात्र 20 से 30 मिलीसेकंड में ही सिग्नल को इंटरनेट में बदल देता है।
यह भी पढ़ें-- 2 कंपनियां, 600 आउटलेट; भारत में कितना बड़ा है McDonald's का बिजनेस?
स्टारलिंक से कैसे चला सकते हैं इंटरनेट?
स्टारलिंक की इंटरनेट सर्विस का इस्तेमाल करने के लिए एक स्पेशल किट खरीदनी होती है। इसमें एक सैटेलाइट डिश, एक वाई-फाई राउटर और जरूरी केबल होती हैं। सैटेलाइट डिश छोटी और पोर्टेबल होती है। इसे घर की छत या किसी खुली जगह पर सेट किया जाता है। सेट होने के बाद यह डिश सैटेलाइट से सिग्नल लेती है और वाई-फाई राउटर के जरिए इंटरनेट देती है।
स्टारलिंक में यूजर्स को 25 Mbps से 220 Mbps तक की स्पीड मिलती है। यह यूजर के प्लान पर निर्भर करती है। चूंकि मस्क की कंपनी पृथ्वी की निचली कक्षा में मौजूद सैटेलाइट से इंटरनेट देती है, इसलिए इसमें स्पीड बाकी सैटेलाइट इंटरनेट प्रोवाइडर्स की तुलना में काफी तेज मिलती है।