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उर्दू में लिखवाकर हिंदी में भाषण पढ़ते थे मनमोहन सिंह, खास है वजह

डॉक्टर मनमोहन सिंह की पढ़ाई-लिखाई की शुरुआत उर्दू मीडियम में हुई थी इसीलिए वह उर्दू अच्छी तरह लिखा-पढ़ना जानते थे।

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दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह। Source- PTI

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह का गुरुवार को रात 9 बजकर 51 मिनट पर दिल्ली के एम्स में निधन हो गया। वह 92 साल के थे। देश-विदेश के बड़े-बड़े नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है। उन्होंने साल 1991 में वित्र मंत्री के रूप में देश की आर्थिक नीतियों में बड़ा परिवर्तन किया था। ऐसे में उनके जीवन से जुड़ी बातों और उनके द्वारा किए गए कामों को पूरे देश में याद किया जा रहा है।

पूर्व प्रधानमंत्री बहुत ही इत्मीनान और सादगी से बोलते थे। वह अक्सर अंग्रेजी में बोलते और प्रेस से मुखातिब होते थे क्योंकि अंग्रेजी में पारंगत थे। इसके अलावा उन्हें उर्दू लिपि में लिखना और बोलना बखूबी आती थी। साथ ही उन्हें उर्दू शायदी का भी शौक था। कई बार उन्होंने संसद में शायरी पढ़ी थी। हालांकि, उर्दू लिखने और बोलने के पीछे एक खास वजह थी, जिसके बारे में हम आगे जानेंगे। 

उर्दू लिपि में लिखा करते थे मनमोहन

मनमोहन सिंह अपने हिंदी भाषणों को उर्दू लिपि में लिखा करते थे। उर्दू के अलावा वह पंजाबी भाषा की गुरुमुखी लिपी और अंग्रेजी में भी लिखा करते थे। उन्होंने अंग्रेजी में कई किताबें भी लिखी हैं। डॉक्टर सिंह का नाम देश-दुनिया में अर्थशास्त्र के बड़े विद्वानों में शामिल था।

मनमोहन सिंह को उर्दू आती है- सुषमा स्वराज 

एक बार संसद में बीजेपी की दिग्गज नेता और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने तत्कालीन यूपीए सरकार पर हमला बोलते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से उनके उर्दू बोलने और लिखने की बात की तस्दीक की थी। स्वराज ने डॉक्टर सिंह से सवाल पूछले हुए कहा, 'आप बहुत अच्छी तरह से उर्दू जबान अच्छे से समझते हैं... और उर्दू शेरों में बहुत बड़ी ताकत होती है अपनी बात को कहने और सहजता से कहने की।'

पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से कहा, आज एक शेर पूछकर आपसे एक सवाल पूछना चाहती हूं... 

"तू इधर-उधर की ना बात कर, ये बता कि काफिला क्यों लूटा। 

हमें रहबरी से गिला नहीं, तेरी रहबरी का ख्याल है।"

इसपर सुषमा स्वराज के सवाल का जवाब देते हुए मनमोहन सिंह ने भी एक उर्दू शायरी पढ़ी थी। उन्होंने शेर के माध्यम से स्वराज को जवाब देते हुए कहा...

"माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूं मैं,

तू मेरा शौक़ तो देख, मेरा इंतज़ार तो देख।"

1932 में पाकिस्तान में जन्म

 

बता दें कि मनमोहन सिंह का जन्म साल 1932 में पाकिस्तान (अविभाजित) में हुआ था। ऐसे में उनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई पाकिस्तान के पंजाब में हुई थी। उनकी पढ़ाई-लिखाई की शुरुआत उर्दू मीडियम में हुई थी इसीलिए वह उर्दू अच्छी तरह लिखा-पढ़ना जानते थे। मनमोहन सिंह उर्दू लिपी के अलावा पंजाबी भाषा की गुरुमुखी लिपी में भी लिखते और बोलते थे।

बेहद गंभीर और शांतचित्त स्वभाव 

मनमोहन सिंह 10 साल देश के प्रधानमंत्री रहे, इसके बावजूद वह मृदुभाषी शख्सियत थे और हमेशा बेहद गंभीर और शांतचित्त नजर आते थे। मनमोहन सिंह को सार्वजनिक जीवन में कभी गुस्से में नहीं देखा गया।

मनमोहन सिंह की प्रारंभिक शिक्षा

मनमोहन सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पंजाब यूनिवर्सिटी से की थी। यहां से उन्होंने साल 1952 में अर्थशास्त्र में स्नातक और 1954 में मास्टर डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री और फिर ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के नफील्ड कॉलेज से 1962 में डॉ. फिल की डिग्री भी प्राप्त की।

दिग्गजों अर्थशास्त्रियों में नाम शुमार  

मनमोहन सिंह का नाम अर्थशास्त्र के दिग्गजों में गिना जाता था। 1991 में जब भारत की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट से गुजर रही थी, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने उन्हें वित्त मंत्री बनाया। यह वह समय था जब भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नया दिशा देने के लिए बड़े बदलावों की जरूरत थी। ऐसे समय में मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण, निजीकरण, और वैश्वीकरण की नीति को लागू किया। उनके योगदान की वजह से उन्हें मौजूदा भारतीय अर्थव्यवस्था का आर्किटेक्ट माना जाता है।

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