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288 तरह के केस में नहीं होगी जेल, क्या बदलाव करने जा रही है सरकार?

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने सोमवार को जन विश्वास (संशोधन) बिल पेश किया था। इसका मकसद बहुत से कानून की धाराओं को बदलना है, ताकि कई सारे मामलों को अपराध के दायरे से बाहर किया जा सके।

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केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल। (Photo Credit: PTI)

केंद्र की मोदी सरकार दशकों पुराने कानूनों को बदलने जा रही है। इसके लिए सरकार ने हाल ही में जन विश्वास (संशोधन) बिल पेश किया है। इसके तहत, केंद्र के 16 कानूनों के सैकड़ों प्रावधानों में बदलाव किया जा रहा है। इस बिल को फिलहाल सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा गया है। कमेटी की रिपोर्ट शीतकालीन सत्र से पहले आ जाएगी और इसके बाद इस बिल को फिर से संसद में पेश किया जाएगा। बिल पास होने के बाद बहुत सारे मामले अपराध के दायरे से बाहर हो जाएंगे। इसके साथ ही ऐसे कई अपराध थे, जिनमें बड़ी सजा होती थी, उनकी जगह अब जुर्माने का प्रावधान कर दिया जाएगा।

 

मगर ऐसा क्यों हो रहा है? ऐसा इसलिए ताकि आम लोगों की जिंदगी आसान हो सके और कारोबार करना भी आसान हो जाए। अभी बहुत से कानून ऐसे हैं, जिनमें छोटे-मोटे अपराधों के लिए बड़ी सजा है।

क्या करने जा रही है सरकार?

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने जन विश्वास (संशोधन) बिल सोमवार को लोकसभा में पेश किया था। इसके बाद इस बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया गया।

 

सरकार ने दो साल पहले अगस्त 2023 में जन विश्वास कानून पास किया था। इसके तहत 19 मंत्रालयों के 42 कानूनों के 118 प्रावधानों को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था।

 

अब सरकार इसी कानून में संशोधन करने जा रही है। संशोधित बिल में 10 मंत्रालयों के 16 कानूनों के 355 प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव रखा गया है। इनमें से 288 प्रावधानों को 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' के लिए संशोधित अपराध के दायरे से बाहर किया जाएगा। वहीं, 67 प्रावधानों को 'ईज ऑफ लिविंग' के लिए संशोधन करने का प्रस्ताव है।

 

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इससे क्या बदल जाएगा?

इस बिल से बहुत कुछ बदल जाएगा। सरकार का कहना है कि 76 मामलों पहली बार गलती करने पर जेल या जुर्माने की बजाय वॉर्निंग दी जाएगी। अगर कोई व्यक्ति पहली बार गलती करता है तो उसे चेतावनी दी जाएगी। बार-बार गलती होती है तो जुर्माना लगाया जाएगा।

 

जिन कानूनों में संशोधन होगा, उनमें मोटर व्हीकल ऐक्ट 1988, RBI ऐक्ट 1934, सेंट्रल सिल्क बोर्ड ऐक्ट 1948, रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन ऐक्ट 1950, टी ऐक्ट 1953, एप्रेंटीसेस ऐक्ट 1961, कॉइर इंडस्ट्री ऐक्ट 1953, दिल्ली म्यूनिसिपिल कॉर्पोरेशन ऐक्ट 1957, नई दिल्ली म्यूनिसिपिल काउंसिल ऐक्ट 1994, इलेक्ट्रिसिटी ऐक्ट 2003, ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक ऐक्ट 1940 और टेक्सटाइल कमेटी ऐक्ट 1963 शामिल है।

 

छोटे अपराधों को अपराध की दायरे से बाहर करने के अलावा बिल में जिंदगी को आसान बनाने के लिए मोटर व्हीकल ऐक्ट के 20 प्रावधानों और NDMC ऐक्ट के 47 प्रावधानों में संशोधन करने का प्रस्ताव है। इन कानूनों की धाराओं को या तो पूरी तरह हटा दिया जाएगा या उनको संशोधित किया जाएगा, ताकि छोटे-मोटे अपराधों को अपराध के दायरे से बाहर किया जा सके।

 

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कैसे होगा फायदा? ऐसे समझिए

उदाहरण, अभी ड्रग्स एंड कॉस्मैटिक ऐक्ट के तहत आयुर्वेदिक या यूनानी दवाओं को बनाने और बेचने पर 6 महीने की कैद और 10 हजार रुपये के जुर्माने की सजा का प्रावधान है। प्रस्तावित बिल में जेल की सजा को हटाकर सिर्फ 30 हजार के जुर्माने का प्रावधान है।

 

इसी तरह, इलेक्ट्रिसिटी ऐक्ट की धारा 146 के तहत आदेशों या निर्देशों का पालन न करने पर मौजूदा समय में 3 महीने की कैद और 1 लाख तक के जुर्माने का प्रावधान है। इसकी जगह 10 हजार रुपये के जुर्माने का प्रस्ताव दिया गया है, जिसे 10 लाख तक बढ़ाया जा सकता है।

 

मोटर व्हीकल ऐक्ट के कई प्रावधानों में संशोधन करने का प्रस्ताव है। अब तक अगर कोई व्यक्ति बेवजह हॉर्न बजाता है या किसी प्रतिबंधित जगह पर हॉर्न बजाता है तो पहली बार दोषी पाए जाने पर 1 हजार और दूसरी बार 2 हजार रुपये का जुर्माना देना पड़ता है। अब अगर कोई पहली बार ऐसा करते हुए पाया जाता है उसे वॉर्निंग का नोटिस दिया जाएगा। अगर इसके बाद दोबारा पकड़ा जाता है तो 2 हजार का जुर्माना लगाया जाएगा।

 

तना ही नहीं, दिल्ली म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन ऐक्ट के कुछ प्रावधानों में भी बदलाव किया जाएगा। इसके बाद अगर दिल्ली में पालतू कुत्ते को बिना पट्टा बांधे घूमाते हैं तो पहली बार पकड़े जाने पर वॉर्निंग दी जाएगी लेकिन इसके बाद पकड़े जाने पर जुर्माने की रकम को 50 रुपये से बढ़ाकर 1,000 रुपये कर दिया गया है।

 

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इसका फायदा क्या होगा?

इससे न सिर्फ आम लोगों की जिंदगी आसान होगी, बल्कि कारोबारियों के लिए कारोबार करना भी आसान हो जाएगा। बिल में यह भी प्रावधान है कि जुर्माने और सजा में हर तीन साल में 10% की बढ़ोतरी होगी, जिससे बार-बार कानून को संशोधित करने की जरूरत नहीं होगी। इतना ही नहीं, बहुत सारे मामलों को अपराध के दायरे से बाहर करने से अदालतों पर भी बोझ कम होगा।

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