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आखिर कैसे होता है दलाई लामा का चुनाव? पूरी कहानी समझिए

मौजूदा दलाई लामा का 90वां जन्मदिन आ रहा है और उनके उत्तराधिकारी को लेकर खूब चर्चाएं हो रही हैं। आइए विस्तार से समझते हैं कि दलाई लामा कैसे चुने जाते हैं।

dalai lama

दलाई लामा, Photo Credit: PTI

6 जुलाई 1935, तिब्बत का एक गांव ताक्त्सेर। पहाड़ों के बीच बसा यह छोटा-सा गाँव, आज इतिहास के पन्नों में दर्ज है क्योंकि यहीं एक गरीब किसान के परिवार में जन्मा एक बच्चा, दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक नेताओं में से एक बना था। नाम था ल्हामो थोंडुप, जो आगे चल कर 14th दलाई लामा बना। बौद्ध परंपरा के अनुसार जब किसी दलाई लामा की मृत्यु होती है तो वह किसी नवजात शिशु के रूप में फिर से जन्म लेते हैं और उनके पुनर्जन्म की तलाश में भिक्षुओं का एक समूह गांव-गांव भटकता है। ऐसे ही ये भिक्षु ल्हामो थोंडुप तक पहुंचे थे और उन्होंने पाया कि यह बच्चा कोई आम बच्चा नहीं है बल्कि दलाई लामा का पुनर्जन्म है। इसके बाद इनका नाम पड़ा तेनज़िन ग्यात्सो।

 

तेनज़िन ग्यात्सो यानी 14th दलाई लामा इस साल 90 साल के हो जाएंगे और इसी के साथ सभी की नजरें इस बात पर टिकी है कि अब अगला दलाई लामा कौन होगा? ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि इस साल वह अपने जन्मदिन के जश्न के साथ-साथ, तिब्बती लोगों के मुखिया के रूप में 88 सालों के बाद, अपने उत्तराधिकार के बारे में भी बात कर सकते हैं। हालांकि, वह अपने अनुयायियों को भरोसा दिलाते हैं कि वह कई और साल तक जीवित रहेंगे। यही कोई 113 साल की उम्र तक लेकिन जहां पहले दलाई लामा के उत्तराधिकारी की खोज दलाई लामा की मृत्यु के बाद होती थी। वहीं मौजूदा दलाई लामा पहले ही कह चुके थे कि वह अपने जीते जी उत्तराधिकारी का ऐलान कर सकते हैं। माना यह जा रहा है कि शायद वह कुछ ऐसे संकेत दे सकते हैं जिससे उत्तराधिकारी को चुनने में सहूलियत हो। साथ ही इस परंपरा को आसान बनाया जा सके।

 

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अब यह पूरी प्रक्रिया अंतरराष्ट्रीय राजनीति की चर्चाओं में भी आ गई है। जहां एक तरफ चीन का दावा है कि वह अगला दलाई लामा चुनेगा, वहीं अलग रह रहा तिब्बती समुदाय इस दावे को ख़ारिज कर चुका है। खुद दलाई लामा ने चीन को जवाब दिया कि अगर मेरा उनका जन्म चीन के कब्ज़े वाले तिब्बत में होता है और उसे चीनी सरकार चुनती है तो वह नकली दलाई लामा होगा और दुनिया को उसे अस्वीकार कर देना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा है कि वह खुद पुनर्जन्म को रोक सकते हैं क्योंकि उत्तराधिकारी चीन के बाहर, स्वतंत्र दुनिया से होना चाहिए। इस बात को उन्होंने मार्च में पब्लिश हुई अपनी किताब ‘Voice for the Voiceless’ में भी साफ़ किया था कि उनका उत्तराधिकारी 'आजाद देश' में और चीन के बाहर जन्म लेगा। दलाई लामा तिब्बतियों के लिए ना सिर्फ एक धर्मगुरु हैं बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान का भी प्रतीक हैं लेकिन चीन की नज़र में दलाई लामा कुछ और ही हैं। चीन दलाई लामा को एक ऐसा इंसान मानता है जो तिब्बत को चीन से अलग करना चाहता है।

 
दलाई लामा भारत कैसे पहुंचे?

 

साल था 1950,चीन में माओ का लाल झंडा लहरा चुका था और कम्युनिस्ट सत्ता ने एक नारा दिया। एक चीन एक झंडा,यानी चीन का हर हिस्सा, जो कभी उसके अधीन रहा था, उसे फिर से झंडे के नीचे लाना। चीन की नजर में तिब्बत उस नक्शे का सबसे बड़ा टुकड़ा था और सबसे ऊंचा भी। चीन को लगता था कि अगर तिब्बत आज़ाद रहा तो अमेरिका जैसे देश वहां घुस सकते हैं। भारत के साथ सीमा कमजोर हो जाएगी और सबसे बड़ी बात यह कि जब तक दलाई लामा जैसा आध्यात्मिक नेता लोगों के दिलों में बैठा रहेगा, तो तिब्बत कभी भी झुकेगा नहीं। इसी सोच के साथ चीन ने तिब्बत पर हमला कर दिया। उस समय दलाई लामा की उम्र सिर्फ 15 साल थी। तिब्बती सैनिकों की संख्या कम थी, संसाधन भी सीमित थे यानी उनकी हार निश्चित थी। मजबूरी में, किशोर दलाई लामा को तिब्बत की बागडोर संभालनी पड़ी। 

 

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1959- ल्हासा की सड़कों पर हज़ारों तिब्बती नागरिक मारे गए। मठों को बमों से उड़ाया गया और भिक्षुओं को हथकड़ियों में जकड़कर जेलों में फेंक दिया गया। इसी बीच, रात के अंधेरे में 14वें दलाई लामा वेश बदलकर पहाड़ों के रास्ते चुपचाप निकल पड़े। अपनी जान बचाकर वह भारत पहुंचे और भारत ने भी बिना देर किए अपने दरवाज़े खोल दिए। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में उन्हें और उनके साथ आए हज़ारों तिब्बतियों को एक सुरक्षित ठिकाना मिला। यहीं से शुरू हुई तिब्बत सरकार इन एग्ज़ाइल, जिसे आज दुनिया सेंट्रल तिब्बतन एडमिनिस्ट्रेशन (CTA) के नाम से जानती है। CTA  तिब्बती संस्कृति, धर्म और पहचान को ज़िंदा रखे हुए है लेकिन चीन को तिब्बत पर अब भी पूरा हक चाहिए और वह CTA और दलाई लामा दोनों को ही अपनी सत्ता के लिए खतरा मानता है।

 

इसलिए चीन कहता है कि अगला दलाई लामा हम चुनेंगे जबकि दलाई लामा ने चीन को साफ जवाब दिया कि अगर मेरा अगला जन्म चीन के कब्ज़े वाले तिब्बत में होता है और उसे चीनी सरकार चुनती है तो वह नकली दलाई लामा होगा और दुनिया को उसे अस्वीकार कर देना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा है कि वे खुद पुनर्जन्म को रोक सकते हैं क्योंकि उत्तराधिकारी चीन के बाहर, स्वतंत्र दुनिया से होना चाहिए। इस बात को उन्होंने मार्च में पब्लिश हुई अपनी किताब ‘Voice for the Voiceless’ में भी साफ़ किया था।

उत्तराधिकारी कैसे चुना जाता है?

 

तिब्बती बौद्ध धर्म में दलाई लामा को चुना नहीं ढूंढा जाता है। ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के बाद दलाई लामा एक नए शरीर में वापस से जन्म लेते हैं, इसलिए उनके निधन के बाद ख़ास भिक्षुओं का एक समूह ऐसे बच्चे की खोज करते हैं जो दलाई लामा का अगला अवतार हो लेकिन यह खोज यूं ही नहीं होती बल्कि इन भिक्षुओं को भी कुछ धार्मिक संकेत का गहराई से अध्ययन करना होता है। जैसे इस समूह के वरिष्ठ भिक्षुओं के सपने में आई छवियों पर ध्यान देना। यह देखा जाता है कि मृत्यु के समय दलाई लामा का शव किस दिशा की तरफ था। यहां तक कि दाह संस्कार के दौरान चिता से उठा धुआं किस डायरेक्शन में जा रहा है। उसे भी एक संकेत के तौर पर लिया जाता है ताकि पता चल सके कि दलाई लामा का अगला जन्म किस दिशा या इलाके में हुआ है। तिब्बत की राजधानी ल्हासा से 90 मील दूर ल्हामो लात्सो नाम की झील है, भिक्षु यहां भी ध्यान करते हैं क्योंकि मान्यता है कि अगले दलाई लामा के बारे में यहां भी कुछ संकेत मिलते हैं।

 

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इसके बाद भिक्षुओं का एक समूह हिमालय, तिब्बत और आस-पास के इलाकों का दौरा करके ऐसे बच्चों के बारे में पता करते हैं, जिनका जन्म दलाई लामा की मृत्यु के बाद हुआ था। इन सभी बच्चों में सही बच्चे की पहचान करने के लिए कुछ चीजों का ध्यान रखा जाता है, जैसे उस बच्चे में कुछ असाधारण शक्ति दिखे, वह बुद्धिमान हो और उसे अपने पहले के जीवन कि कुछ बाते याद हो। ऐसे जब कुछ बच्चों को शॉर्टलिस्ट कर लिया जाता है तो उसके बाद इन बच्चों का टेस्ट होता है यानी इन बच्चों को कुछ सामान और चीजें दिखाई जाती हैं। इनमें से कुछ पिछले दलाई लामा की ख़ास और प्रिय होती है तो कुछ दूसरी, जो बच्चा सही चीजें, ख़ास व्यक्ति या ख़ास जगह को पहचान लेता है उसे दलाई लामा का पुनर्जन्म माना जाता है।
 
कुछ ज्योतिषीय लेखे-जोखे के बाद जब सब कुछ सही मेल कहा जाता है तो उस बच्चे को अगला दलाई लामा घोषित कर दिया जाता है और बच्चे को मठ में ले जा कर बौद्ध शिक्षा और अध्यात्मिक ट्रेनिंग दी जाती है। सालों की साधना के बाद ही वह बच्चा दलाई लामा के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभा पाने के लिए योग्य बन पाता है।

चीन दलाई लामा क्यों चुनना चाहते हैं?

 

चीन सरकार का कहना है कि अगले दलाई लामा को चुनने का अधिकार सिर्फ उसी के पास है। इसके लिए वह किंग राजवंश की परम्परा 'गोल्डन अर्न' का हवाला भी देता है। गोल्डन अर्न एक तरह का लॉटरी सिस्टम होता है जो 1793 में लागू किया गया थी और जिसके तहत पुनर्जन्म को मंजूरी दी जाती थी। यानी चीनी कानूनों के मुताबिक, सभी तिब्बती धार्मिक गुरुओं के पुनर्जन्म पर सरकारी मंजूरी जरूरी है। अगला दलाई लामा चीनी सीमा के अंदर पैदा होना जरूरी है और अगर किसी दूसरे उत्तराधिकारी को मान्यता दी जाती है तो उसे चीनी नियमों का उल्लंघन माना जाएगा लेकिन सवाल है कि आखिर चीन ऐसा करना क्यों चाहता है? तो जवाब है कि अगर चीन खुद अपना दलाई लामा चुनता है, तो वह ऐसा करके तिब्बतन रिलीजियस सिस्टम को अपने राजनीतिक तंत्र के अधीन ला सकता है। इससे तिब्बत में धर्म को एक तरह से सरकारी धर्म में बदला जा सकेगा। इसके अलावा तिब्बत, चीन के लिए एक बेहद संवेदनशील इलाका है। खासकर भारत की सीमा से लगा होने के कारण। चीन को डर है कि अगर दलाई लामा उसकी मर्जी के बिना बनता है तो वह अलगाववाद को बढ़ावा दे सकता है। साथ ही अगर चीन अगला दलाई लामा खुद चुनता है और दुनिया के कुछ देश उसे मान्यता दे देते हैं तो वह यह दिखा सकता है कि उसने तिब्बत में धार्मिक स्थिरता ला दी है। यह उसकी सॉफ्ट पावर यानी सांस्कृतिक प्रभाव को बढ़ा सकता है।
 
इसके लिए चीन ने कई बार कुछ ऐसे कारनामे भी किए जो नागवार साबित होते हैं। जैसे तिब्बती बौद्ध धर्म में दलाई लामा के बाद सबसे ऊंचा धार्मिक पद होता है पंचेन लामा का। इस परंपरा के तहत, जब दलाई लामा नहीं रहते तो पंचेन लामा उनके पुनर्जन्म की पहचान करने में मदद करते हैं। यह पद न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से, बल्कि राजनीतिक रूप से भी बहुत जरूरी हो जाता है। 14 मई 1995 को दलाई लामा ने छह साल के एक तिब्बती बच्चे गेडुन चोएक्यी निमा को 11वें पंचेन लामा के तौर पर मान्यता दी लेकिन यह चीन को मंज़ूर नहीं था। सिर्फ तीन दिन बाद, 17 मई को, वह बच्चा और उसके माता-पिता अचानक लापता हो गए। चीन ने न सिर्फ इस बच्चे को गायब किया, बल्कि ग्यानचेन नोरबू नाम के अपनी पसंद के लड़के को पंचेन लामा घोषित कर दिया। हालांकि, तिब्बती लोगों ने उसे कभी पंचेन के रूप में स्वीकार नहीं किया। तब से लेकर आज तक, गेडुन चोएक्यी निमा की कोई भी फोटो या वीडियो सामने नहीं आई। जब भी चीन से उस लड़के के बारे में पूछा पूछा गया तो चीन ने सिर्फ इतना कहा कि वह एक आम जिंदगी जी रहा है और नहीं चाहता कि उसे परेशान किया जाए। 

भारत की भूमिका 

 

दलाई लामा के अलावा, भारत में एक लाख से ज्यादा तिब्बती बौद्ध रहते हैं, जिन्हें यहां पढ़ने और काम करने के साथ-साथ दलाई लामा को अपनी आवाज विश्व मिडिया तक पहुंचाने की भी आजादी है। इसका असर यह हुआ कि दुनिया कि बड़ी शक्तियां दलाई लामा के साथ आ पाई। संयुक्त राज्य अमेरिका, जो वैश्विक प्रभाव को लेकर चीन का प्रतिद्वंद्वी है, कई बार यह कह चुका है कि वह तिब्बतियों के मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने के लिए तिब्बत के लोगों के साथ खड़ा है। इसके अलावा अमेरिकी सांसदों ने पहले ही कह दिया है कि वह दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन में चीन को हस्तक्षेप नहीं करने देंगे। 2024 में, बाइडन ने एक कानून पर सिग्नेचर किए, जिसमें बीजिंग से कहा गया कि वह तिब्बत के लिए ज्यादा से ज्यादा स्वायत्तता की मांग पर बातचीत करे और उसका समाधान निकाले। अमेरिका ही नहीं बल्कि कई पश्चिमी देशों में दलाई लामा प्रभाव मुमकिन हो पाया यही वजह है कि उन्हें 1989 में नोबेल के शांति पुरस्कार से नवाजा गया था। उन पर और तिब्बती बौद्ध धर्म के लोगों को उनके अधिकार दिलाने पर एक सेवन इयर्स इन तिब्बत नाम की फिल्म भी बनी जिससे दलाई लामा कि पॉपुलैरिटी और बढ़ गई।

 

बहरहाल, हालिया खबर की बात करें तो 6 जुलाई को दलाई लामा के जन्मदिन में हिस्सा लेने के लिए दुनिया भर से 300 से ज़्यादा लोग धर्मशाला पहुंचने वाले हैं क्योंकि यहां से उत्तराधिकारी को लेकर कोई बड़ा संकेत मिल सकता हैं। एक ऐसा संकेत, जो न सिर्फ तिब्बती समुदाय के भविष्य को दिशा देगा, बल्कि चीन के मनमाने ढंग पर भी वार होगा। 

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