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शरीर पर कैसा असर डालती है भूख हड़ताल, कितने दिन बाद जान का खतरा? समझिए

किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की भूख हड़ताल अब चिंता का सबब बन गई है। समझिए कि भूख हड़ताल कब और किस स्थिति में जानलेवा हो सकती है।

jagjit singh dallewal

किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल, Photo: PTI

किसी भी जीव को जिंदा रहने के लिए भोजन की जरूरत होती है। छोटे-मोटे कीड़े-मकोड़ों, पेड़-पौधों से लेकर जानवरों और इंसानों को हर दिन कुछ न कुछ खाने या पीने की जरूरत पड़ती ही है। ये जंतु अपने-अपने फूड साइकल, पसंद और उपलब्धता के हिसाब से भोजन करते हैं। कुछ लोग धार्मिक वजहों से उपवास रखते हैं, कुछ नाराज हो जाने पर भूखे रहते हैं तो कुछ समाजसेवी लोग संस्थाओं या सरकारों से अपनी बात मनमाने के लिए भूख हड़ताल करते हैं। भूख हड़ताल भी कई बार एक-दो दिन की होती है तो कई बार अनिश्चितकालीन भी होती है। अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल को ही आमरण अनशन कहा जाता है। कुछ मामलों में लोग पानी पीते हैं तो कुछ केस ऐसे भी होते हैं जब लोग पानी भी नहीं पीते हैं। भारत में तमाम स्वतंत्रता सेनानी ऐसे हुए जिन्होंने अंग्रेजों के सामने ऐसे तरीके अपनाए और ये तरीके आज भी इस्तेमाल में लाए जाते हैं। इन दिनों भूख हड़ताल कर रहे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल भी इसी सत्याग्रह के रास्ते पर चल रहे हैं।

 

किसानों की मांगों को लेकर खनौरी बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे जगजीत सिंह डल्लेवाल 26 नवंबर से ही भूख हड़ताल पर हैं। उनकी हड़ताल एक महीने से ज्यादा समय से जारी है और अब उनकी तबीयत भी खराब होती जा रही है। उनकी हड़ताल तुड़वाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंच गया है। प्रशासन ने कई बार उनसे अपील भी की है कि लेकिन वह हड़ताल खत्म करने को तैयार नहीं है। एक महीने से बिना कुछ खाए जगजीत सिंह डल्लेवाल हर दिन कमजोर तो हो रहे हैं लेकिन उनके हौसले बुलंद हैं और वह अब भी अपनी मांग पर अड़े हैं। हालांकि, इंसान के शरीर की एक निश्चित जरूरत है और एक सीमा से अधिक समय तक बिना भोजन-पानी के उसका जिंदा रहना संभव नहीं है। 

 

आइए समझते हैं कि आखिर कोई इंसान कितने समय तक भूखा-प्यासा रह सकता है और इतने समय तक कुछ न खाने पर क्या-क्या हो सकता है...


भूख हड़ताल करने पर क्या हो सकता है?

 

भूख हड़ताल शुरू करने के 3 से 7 दिन में ज्यादा समस्या नहीं होती। दूसरे-तीसरे दिन से भूख खूब लगती है लेकिन इससे समस्या नहीं होती। हालांकि, यह तभी होता है जब आप पानी पी रहे हों। 3-4 दिन बाद भी खाना न खाने पर थकान, कमजोरी और सुस्ती के लक्षण नजर आने लगते हैं और शरीर कमजोर होने लगता है।

 

पहले हफ्ते के बाद सर्दी लगने लगती है और पेट में दर्द शुरू हो जाता है। दूसरे हफ्ते से मानसिक सुस्ती आने लगती है और चिड़चिड़ापन भी आ जाता है। चौथे-पांचवें हफ्ते में नसों को नुकसान होने लगता है जिसके चलते धुंधला दिखने लगता है और किसी चीज को निगलने या उल्टी करने में भी समस्या होने लगती है।

 

अगर 40 दिन के बाद भी भूख हड़ताल जारी रहती है तो दिमाग सुस्त होने की वजह से इंसान भूलने लगता है, सुनने और देखने में समस्या आने लगती है और अचानक खून भी बह सकता है। अगर भूख हड़ताल करने वाले शख्स की उम्र 55 साल से ज्यादा हो तो 40 दिन तक भूख हड़ताल करने की स्थिति में उसे कार्डिएक अरेस्ट हो सकता है और उसकी मौत भी हो सकती है।

 

इसके अलावा ज्यादा दिन तक भूख हड़ताल करने पर किडनी, लीवर या ऐसे अन्य संवेदनशील अंग काम करना बंद सकते हैं। इस तरह ये कार्डिएक फंक्शन यानी हृदय पर असर डाल सकते हैं और अगर सही समय पर संभाला न जा सके तो मौत भी हो सकती है।

टाइमलाइन से समझिए

 

2-3 दिन बाद- रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है, फैट कम होने लगता है

1 हफ्ते बाद- पानी न पीने पर मौत का खतरा होता है

2 हफ्ते बाद- सुस्ती, कमजोरी, खड़े होने में दिक्कत, हार्ट रेट कम हो जाता है

3 हफ्ते बाद- बीमार शख्स की मौत होने का खतरा, न्यूरो संबंधी समस्याएं हो सकती हैं

4 हफ्ते बाद- पानी पीने में समस्या, सुनने और देखने में दिक्कत, अंगों के फेल होने का खतरा

6-8 हफ्ते बाद- अंगों के फेल होने के चलते मौत का खतरा


जगजीत सिंह डल्लेवाल की सेहत कैसी है?

 

ये सारी चीजें तब और भी बुरा असर डालती हैं जब भूख हड़ताल करने वाला शख्स पानी भी न पी रहा हो। जगजीत सिंह डल्लेवाल ने शुरुआत में अन्न ही छोड़ा था लेकिन बाद में उन्होंने पानी भी छोड़ दिया। पानी पीने से उन्हें उल्टियां हो रही थीं। ऐसे में उन्होंने पानी पीना बंद कर दिया है। इसी के चलते उनकी तबीयत और तेजी से बिगड़ रही है। उनका ब्लड प्रेशन काफी लो हो चुका है। इम्युनिटी भी कमजोर हो गई है लेकिन उन्होंने किसी भी तरह का डॉक्टरी इलाज लेने से इनकार कर दिया है।

 

उधर सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार की आलोचना की है कि वह डल्लेवाल को अस्पताल नहीं भेज रही है। इस बारे में डल्लेवाल ने एक मैसेज जारी करके कहा था, 'हमें जानकारी मिली है कि बड़ी संख्या में फोर्स यहां आ रही है। मैं आपसे अपील करता हूं कि यह लड़ाई आपकी है। मैंने कई बार कहा है कि हमारा काम लड़ाई लड़ना है, जीतना आपका काम है।'


भूख हड़ताल से हुई थी श्रीरामुलु की मौत

 

भारत में भूख हड़ताल करना और इसके जरिए अपनी मांगों को मनवाना हमेशा से सबसे लोकप्रिय तरीकों में से एक रहा है। ऐसे ही एक नेता हुए थे स्वतंत्रता सेनानी पोट्टी श्रीरामुलु। भाषा के आधार पर आंध्र प्रदेश राज्य की मांग के लिए आमरण अनशन पर बैठे श्रीरामुलु का यह अनशन उनकी मौत तक जारी रहा। जीते जी तो वह अलग आंध्र प्रदेश राज्य नहीं देख सके लेकिन उनकी मौत के बाद भाषा के आधार पर न सिर्फ आंध्र प्रदेश बल्कि कई राज्यों का गठन हुआ।

 

महात्मा गांधी के अनुयायी रहे श्रीरामुलु ने 1946 में मंदिर में दलितों के प्रवेश के लिए 10 दिन का अनशन किया। इसके बाद वह अपनी मांगों के लिए इसी तरह के अनशन के लिए मशहूर हो गए। बार-बार सरकार वादा करती लेकिन आंध्र प्रदेश का गठन नहीं हो रहा था। इसी मांग को लेकर श्रीरामुलु ने 19 अक्तूबर 1952 को आमरण अनशन शुरू किया। केंद्र में पंडित जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई वाली सरकार थी लेकिन सरकार को शायद श्रीरामुलु की परवाह नहीं थी। जब मामला बिगड़ने लगा तो पंडित नेहरू ने 12 दिसंबर को यह मांग स्वीकार करने की बात कही। हालांकि, औपचारिक ऐलान में देरी की वजह से श्रीरामुलु का अनशन जारी रहा और 15 दिसंबर को उनकी मौत हो गई। उनका यह अनशन 58 दिन तक चला था। आखिरकार 19 दिसंबर 1952 को ऐलान किया गया कि आंध्र प्रदेश अलग राज्य बनेगा।

इरोम शर्मिला का ऐतिहासिक अनशन

 

मणिपुर की इरोम शर्मिला ने आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर ऐक्ट (AFSPA) के खिलाफ साल 2000 में अनशन शुरू किया था। यह अनशन 16 साल जारी रहा और 9 अगस्त 2026 को इरोम शर्मिला ने अपना अनशन खत्म कर दिया। इन 16 सालों में अदालत के आदेश के चलते इरोम शर्मिला की नाक में एक पाइप डाली गई थी जिसके जरिए उन्हें लिक्विड न्यूट्रिशन दिया जाता रहा और इसी के सहारे वह जिंदा रहीं।

 

2016 में अनशन खत्म करने बाद इमरो शर्मिला राजनीति में उतरीं लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्हें सिर्फ 90 वोट ही मिले। आगे चलकर उन्होंने राजनीति से भी किनारा कर लिया।

 

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