• NEW DELHI 19 Dec 2024, (अपडेटेड 20 Dec 2024, 11:27 AM IST)
बौद्ध धर्म की शुरुआत भारत से हुई थी। अफगानिस्तान और विभाजन के बाद पाकिस्तान में भी बौद्धों की अच्छी-खासी आबादी रही। अब दोनों देशों में धार्मिक उत्पीड़नों की वजह से पलायन भी हुआ। बौद्ध भारत में भी अल्पसंख्यक हैं। सरकार बौद्धों के संरक्षण के लिए क्या कर रही है, आइए समझते हैं।
सरकार बौद्ध प्रतीकों के संरक्षण पर जोर दे रही है। (तस्वीर- पर्यटन मंत्रालय)
पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न की बात नई नहीं है। बांग्लादेश में 5 अगस्त में शेख हसीना की अगुवाई वाली सरकार के हटने के बाद जब से मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार बनी है, आए दिन उत्पीड़न की खबरें सामने आ रही हैं। वहां के अल्पसंख्यक समुदायों के लोग सोशल मीडिया पर न्याय की गुहार लगा रहे हैं।
पाकिस्तान से भी धार्मिक आधार पर पलायन की खबरें सामने आती हैं। बांग्लादेश ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स (BBS) ने 'पॉपुलेशन एंड हाउसिंग सेंसस 2022' की रिपोर्ट में बताया है कि वहां साल 1974 में बौद्ध आबादी 4,38,917 थी। दशकों बाद भी वहां बौद्ध आबादी सिर्फ 10,01,974 है। वहां की सरकार ने भी माना है कि अल्पसंख्यकों पर हमले हुए हैं और उनके धर्म स्थलों को निशाना बनाया गया।
भारत में 1 करोड़ के आसपास बौद्ध आबादी है। सरकार के मुताबिक 84 लाख बौद्ध और 45 लाख जैन भारत में रहते हैं। सिख आबादी 2 करोड़ है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक नेशनल डेटाबेस एंड रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी (NADRA) पाकिस्तान के आंकड़े बताते हैं कि बौद्धों की आबादी 1884 के आसपास हैं, वे सिंध और पंजाब जैसे प्रांतों तक सिमटे हैं। इसमें भी बड़ी संख्या में लोग 2017 के बाद पलायन को मजबूर हुए हैं। पड़ोसी देशों में उत्पीड़न के बाद भारत में बौद्धों की स्थिति पर सरकार क्या कदम उठाती है, आइए समझते हैं।
बौद्ध संस्कृति की दशा और दिशा देने के संबंध में संसद में चंद्र प्रकाश जोशी और हरेंद्र सिंह ने अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू से सवाल किया गया। उन्होंने जवाब में कहा कि सरकार देशभर में जैन और बौद्ध धर्म और जैन धर्म के सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा देने की दिशा में क्या पहल कर रही है
केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री किरेन रिजिजू ने इस बारे में विस्तार से बात की है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और लद्दाख में प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम (PMJVK) के तहत बौद्ध विकास योजना की शुरुआत की है। इस परियोजना के तहत करीब 225 करोड़ रुपये की अनुमानित लागएगी। इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में करीब 38 परियोजनाओं की आधारशिला रखी गई है।
खास क्या होगा? यह परियोजना बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए है। उनकी पारंपरिक धार्मिक शिक्षाओं का संरक्षण के लिए काम किया जा रहा है। केंद्रीय बौद्ध अध्ययन संस्थान (CIBS) लेहर, लद्दाख के स्कूल, भवन, पारंपरिक इमारतों और दुकानों के निर्माण पर 80 करोड़ रुपये खर्च किए गए जाएंगे।
लेहल और करगिल के लिए ट्रेनिंग और एग्जाम सेंटर पर 14.50 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। दिल्ली विश्वविद्यालय में बौद्ध शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए 30 करोड़ रुपयों का लक्ष्य रखा गया है। इस प्रोजेक्ट के तहत रिसर्च, भाषा संरक्षण और कौशल विकास पर जोर दिया जाएगा। केंद्र सरकार ने स्वदेश दर्शन योजना के बौद्ध सर्किट के तहत 361 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी दी है। पर्यटन मंत्रालय राज्य सरकार और केंद्र शासित प्रदेशों को आर्थिक मदद भी देगी।
बौद्ध धर्मों के प्रतीक स्थलों का नियमित रखरखाव करता है पुरातत्व विभाग। (तस्वीर- पर्यटन मंत्रालय)
पालि भाषा के लिए क्या काम होगा? पालि भाषा पर सरकार ने शास्त्रीय भाषा घोषित किया है। बौद्ध समुदाय और भारत की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने पर सरकार का जोर है। बौद्ध कालीन भारत को समझने के लिए पालि भाषा को समझना जरूरी है। पालि भाषा जीवित भी रहेगी। पालि का समृद्ध इतिहास भी है।
राजस्थान सरकार ने बौद्ध धर्म से जुड़े धार्मिक स्थलों के विकास के लिए 100 करोड़ रुपये दिए हैं। पर्याटन मंत्रालय ने विटार नगर स्तूप, बैराट और दूसरे बौद्ध विरासतों को संरक्षण देने के लिए स्वदेश दर्शन योजना के तहत भी फंड जारी रता है। बौद्ध-तिब्बत कला और संस्कृति पर शोध के लिए हर साल 2 लाख रुपये आवंटित किए जाते हैं। सरकार बौद्ध भिक्षुओं और संन्यासिनी छात्राओं को स्कॉलरशिप के लिए भी 5 लाख रुपये देते है।
कहां-कहां बौद्ध संस्थान कर रहे हैं काम? - केंद्रीय बौद्ध अध्ययन संस्थान, लेह - नव नव नालंदा महाविहार, बिहार - केंद्रीय उच्च तिब्बती अध्ययन संस्थान (CHIHCS), अरुणाचल प्रदेश - केंद्रीय हिमालयी सांस्कृति अध्ययन संस्थान (CIHCS), अरुणाचल प्रदेश
बौद्ध धर्म के लिए और क्या करती है सरकार? राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग सर्व धर्म संवाद आयोजित करता है। दिसंबर 2021 से जैन और बौद्ध समुदायों की 38 से ज्यादा बैठकें हुई हैं। जैन और बौद्ध समुदायों सहित अल्पसंख्यक समुदायों के प्रतिनिधियों के साथ अल्पसंख्यक आयोग की बैठक भी होती है। सरकार बौद्ध सर्किट पर भी जोर दे रही है।