ड्रोन युद्ध में भारत कहां, कैसी है तैयारी; हमले पर बचाव कैसे होगा?
पाकिस्तान के साथ चार दिनों के संघर्ष ने साबित कर दिया है कि अगली लड़ाई में ड्रोन की भूमिका बेहद अहम होगी। फाइटर प्लेन से अधिक युद्ध में ड्रोन का चलन बढ़ रहा है।

डीआरडीओ का तापस ड्रोन। Photo Credit: DRDO
दुनिया में पहली बार दो परमाणु संपन्न देशों के बीच ड्रोन संघर्ष देखने को मिला। रूस और यूक्रेन युद्ध में भी ड्रोन ने अहम भूमिका निभाई। मगर मौजूदा समय में यूक्रेन परमाणु संपन्न देश नहीं है। पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ चीन और तुर्किये के ड्रोनों का इस्तेमाल किया तो वहीं भारत ने इजरायली और स्वदेशी ड्रोन पर भरोसा जताया। पाकिस्तान के शहरों के ऊपर भारतीय ड्रोन मंडराते दिखे तो वहीं लाहौर में एयर डिफेंस सिस्टम को भारतीय ड्रोन ने ही तबाह किया था। पाकिस्तान के पास भारत के इन ड्रोनों का कोई जवाब नहीं था। भारत-पाकिस्तान के बीच हुआ संघर्ष दक्षिण एशिया का पहला ड्रोन युद्ध था। ऐसे में आइए जानते हैं कि ड्रोन युद्ध को लेकर भारत की क्या तैयारी है, भारत के पास कौन-कौन से ड्रोन हैं। अगर ड्रोन हमला हुआ तो भारत कैसे अपना बचाव करेगा?
चार दिन के संघर्ष में पाकिस्तान ने भारत के एयर डिफेंस सिस्टम को परखने के उद्देश्य से भारी मात्रा में चीन और तुर्किये निर्मित ड्रोनों को भेजा। मगर जवाब में भारत ने पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों और एयर डिफेंस सिस्टम पर सटीक हमलों को अंजाम दिया। यह पहली बार था जब भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ ड्रोन का इस्तेमाल किया।
ड्रोन हमलों से कैसे बचेगा भारत?
पाकिस्तान ने चार दिन के संघर्ष में 600 से अधिक ड्रोन से भारत पर हमला करने की कोशिश की। सिर्फ 8 मई की रात को ही एक साथ लगभग 400 ड्रोन भेजे। अधिकांश ड्रोन तुर्किये में बने बाइकर यिहा कामिकेज और आसिसगार्ड सोंगर थे। खास बात यह है कि भारत के एकीकृत एयर डिफेंस और आकाशतीर सिस्टम ने सभी ड्रोनों को हवा में मार गिराया। इससे न केवल पाकिस्तान बल्कि तुर्किये को भी दुनिया में मुंह की खानी पड़ी। भारत का एयर डिफेंस सिस्टम काफी जटिल है। इसमें विदेशी और स्वदेशी तकनीक से बने कई सिस्टम को एक साथ जोड़ा गया है। इस वजह से पाकिस्तान के ड्रोन और मिसाइलों को इसे भेद पाना बेहद मुश्किल है।
भारत के एकीकृत एयर डिफेंस के अंग
- S -400 मिसाइल सिस्टम
- बराक -8 सिस्टम
- एल-70
- जेडयू-23 मिमी ट्विन-बैरल गन
- आकाश सिस्टम
- पिकोरा सिस्टम
भार्गवास्त्र
आने वाले समय में किसी भी देश को सबसे अधिक खतरा ड्रोन से होगा। इसको ध्यान में रखकर ही भारत एंटी-ड्रोन सिस्टम बनाने में जुट गया है। हाल ही में डीआरडीओ ने भार्गवास्त्र का सफल परीक्षण किया। यह सिस्टम 6 किमी दूर से ही ड्रोन को पहचान लेता है और एक साथ 65 ड्रोन को हवा में तबाह करने की क्षमता रखता है।
भारत का लेजर हथियार
कुछ दिनों पहले ही भारत ने एक शक्तिशाली लेजर हथियार दुनिया को दिखाया। यह लेजर के माध्यम से ड्रोन, छोटी मिसाइल और हेलीकॉप्टर को नष्ट करता है। इस तकनीक को भी डीआरडीओ ने विकसित किया है। यह सिस्टम 30 किलोवाट की लेजर बीम से दुश्मन के हथियार पर हमला करता है।
भारत के बेड़े में कई ड्रोन
भारत इजरायल की कंपनियों के साथ मिलकर ड्रोन का उत्पादन करता है। अगर स्वदेशी ड्रोन कंपनियों की बात करें तो सोलर इंडस्ट्रीज और जेडमोशन ने नागस्त्र नाम से लोइटरिंग म्यूनिशन विकसित किया है। दूसरी तरफ रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) रुस्तम, निशांत और लक्ष्य-1 ड्रोन को विकसित किया है। इनका इस्तेमाल निगरानी और टोह लेने में किया जाता है। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक भारतीय सेना के पास 2000-2500 ड्रोन हैं। हालांकि यह आधिकारिक आंकड़ा नहीं है।
इजरायल के ये ड्रोन भी
भारत हेरॉन और आईएआई सर्चर ड्रोन का इस्तेमाल टोह लेने में करता है। वहीं हारोप और हार्पी जैसे घातक ड्रोन भी उसके बेड़े में हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर भारत ने स्काई स्ट्राइकर ड्रोन का इस्तेमाल किया था। अब इस ड्रोन का उत्पादन बेंगुलुरु में हो रहा है। इजरायल की कंपनी एल्बिट सिस्टम्स के साथ मिलकर अल्फा डिजाइन नाम की भारतीय कंपनी स्काई स्ट्राइकर का उत्पादन करती है।
अमेरिका से ड्रोन खरीद रहा भारत
भारत अमेरिका से प्रीडेटर ड्रोन भी खरीद रहा है। साल 2024 में एक समझौता भी हो चुका है। इसके तहत अमेरिका की जनरल एटॉमिक्स से 31 MQ-9B प्रीडेटर ड्रोन को 32 हजार करोड़ रुपये में खरीदा जाएगा। चार साल के भीतर डिलीवरी होने की उम्मीद है।
भारत के पास कौन-कौन से ड्रोन?
- अभ्यास: डीआरडीओ इस ड्रोन को अभ्यास व ट्रेनिंग उद्देश्य से विकसित कर रहा है। इसका इस्तेमाल निगरानी में भी किया जा सकता है। इसमें रडार, सेंसर और कैमरे लगे हैं। दूर से ही इस ड्रोन को नियंत्रित किया जा सकता है।
- घातक: डीआरडीओ घातक के नाम से एक अनमैन्ड कॉम्बैड एयर व्हिकल (UCAV) यानी लड़ाकू ड्रोन विकसित करने में जुटा है। यह ड्रोन स्टील्थ तकनीक पर आधारित होगा। दुश्मन के रडार को इसे पकड़ना बेहद मुश्किल होगा। घातक से मिसाइल और बम को दागा जा सकेगा।
- आर्चर यूएवी: डीआरडीओ आर्चर यूएवी नाम से एक और ड्रोन बनाने में जुटा है। यह ड्रोन खुद ही टेक-ऑफ और लैंडिंग करने में सक्षम है। इसका इस्तेमाल खुफिया निगरानी और हमले में किया जाएगा।
- हर्मीस 900 ड्रोन: अडानी डिफेंस एंड एयरोस्पेस और इजरायल की एल्बिट सिस्टम्स मिलकर हैदराबाद में इस ड्रोन का उत्पादन करते हैं। भारत ने अब तक 20 ड्रोन इजरायल को भेजे भी हैं। यह ड्रोन खतरे को भांपने और हमला करने में सक्षम है।
- रुस्तम ड्रोन: डीआरडीओ मध्यम ऊंचाई तक उड़ान भरने वाला रुस्तम ड्रोन को तैयार कर रहा है। इसका इस्तेमाल तीनों सेनाओं में होगा। निगरानी के साथ-साथ हमला करने की ताकत इस ड्रोन में है। भारत के पास तापस, नेत्र, निशांत, लक्ष्य और इंपीरियल ईगल जैसे ड्रोन भी हैं।
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