logo

ट्रेंडिंग:

भारत से कितना तेल खरीदता है अमेरिका, ट्रंप रोक क्यों नहीं लगा रहे?

अमेरिका भारत से बड़ी मात्रा में तेल और पेट्रोलियम पदार्थ खरीदता है। टैरिफ लगाने के बाद भी अमेरिका ने भारत से आयात बंद नहीं किया है। इसकी वजह यह है कि अगर अचानक भारत से आयात बंद किया तो अमेरिका में तेल की कीमतें आसमान छूने लगेंगी।

India-US trade.

प्रतीकात्मक फोटो (AI Generated Image)

रूसी तेल पर भारत और अमेरिका के बीच तनातनी है। अमेरिका ने सबसे पहले भारत पर 25 फीसदी टैरिफ लगाया। बाद में रूस से तेल और हथियार खरीदने के नाम पर 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ की घोषणा की। अब भारत पर कुल 50 फीसदी टैरिफ लग चुका है। अमेरिका का आरोप है कि रूस से तेल खरीदकर भारत मुनाफा कमा रहा है। व्हाइट हाउस में इकोनॉमिक एडवाइजर पीटर नैवारो ने भारत पर रूस की युद्ध मशीन को फंडिंग करने का आरोप लगाया। मगर भारत की रिफाइनरी से सबसे अधिक रिफाइंड तेल खरीदने वालों में यूरोप के अलावा अमेरिका भी नाम शामिल है।

 

23 अगस्त को विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इकोनॉमिक टाइम्स वर्ल्ड लीडर्स फोरम 2025 में कहा था कि भारत के रूसी तेल खरीदने को एक मुद्दे के तौर पर पेश किया जा रहा है। जबकि रूस से सबसे अधिक तेल चीन और गैस यूरोपीय संघ आयात करता है। ट्रंप प्रशासन के मुनाफाखोरी के आरोप पर जयशंकर ने दो टूक कहा कि अगर आपको भारत से तेल या रिफाइंड उत्पाद खरीदने में कोई दिक्कत है तो उसे न खरीदें। कोई आपको खरीदने के लिए मजबूर नहीं करता। 

 

यह भी पढ़ें: 'उनका तो अपना इतिहास...' जयशंकर ने USA और PAK पर कसा तंज

 

बुधवार को जब फॉक्स न्यूज की एंकर ने अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट से यही सवाल किया कि भारत के विदेश मंत्री का कहना है कि अगर आपको भारत से तेल खरीदने में परेशानी है तो मत खरीदिए। स्कॉट बेसेंट ने इस सवाल का कोई सीधा जवाब नहीं दिया। वह भारत और अमेरिका के संबंधों की बात करते रहे। मगर स्पष्ट तौर पर यह नहीं कहा कि अमेरिका भारत से रिफाइंड उत्पाद खरीदेगा या नहीं। आइये जानते हैं कि अमेरिका भारत से कितना तेल खरीदता है और यूक्रेन के खिलाफ युद्ध मशीनरी को आखिर कौन फंडिंग कर रहा है?

 

भारत से कितना तेल खरीदता है अमेरिका?

  • गुजरात के जामनगर में दुनिया की सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी है। इस रिफाइनरी का ताल्लुक रिलायंस कंपनी से है। 2024 में भारत के रिफाइंड तेल उत्पाद का निर्यात मूल्य 210 बिलियन डॉलर से अधिक था। इसमें से अधिकांश उत्पादों को अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन ने खरीदा। 

 

  • गुजरात के वाडिनार में नायरा रिफाइनरी है। इसमें 49.1% हिस्सेदारी रूसी कंपनी रोसनेफ्ट की है। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के मुताबिक 2023 में अमेरिका ने नायरा रिफाइनरी से 63 मिलियन डॉलर तेल उत्पादों का आयात किया। खास बात यह है कि प्लांट में रिफाइंड किया गया लगभग आधा तेल रूस से आया था। 

 

  • अल जजीरा ने अपनी रिपोर्ट में सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के मुताबिक बताया कि 2025 के पहले सात महीनों में जामनगर रिफाइनरी ने रूस से 18.3 मिलियन टन कच्चा तेल आयात किया है। इसकी कीमत 8.7 अरब डॉलर है। रिपोर्ट के मुताबिक इस रिफाइनरी ने फरवरी 2023 से पिछले महीने तक दुनियाभर में 85.9 अरब डॉलर के रिफाइंड उत्पादों का निर्यात किया गया। 

 

  • अनुमान है कि इसमें से लगभग 36 अरब डॉलर का निर्यात उन देशों पर किया गया, जिन्होंने रूस पर प्रतिबंध लगा रखा है। अमेरिका को 6.3 बिलियन डॉलर और यूरोपीय संघ को 19.7 बिलियन डॉलर का निर्यात किया गया। इसमें 2.3 बिलियन डॉलर का निर्यात रूसी कच्चे तेल से किया गया।

 

  • अमेरिका संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर के बाद जामनगर रिफाइनरी से उत्पाद खरीदने वाला चौथा सबसे बड़ा देश है। मात्रा के लिहाज से वह सबसे बड़ा आयातक है। 2022 में मूल्य सीमा लागू होने के बाद से जुलाई 2025 तक डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ने सिर्फ जामनगर रिफाइनरी से 84 लाख टन तेल उत्पादों का आयात किया है। एक अनुमान के मुताबिक इसी साल अमेरिका 1.4 बिलियन डॉलर के तेल उत्पाद आयात करेगा।

क्या-क्या खरीदता है अमेरिका?

2022 में मूल्य सीमा लागू होने के बाद से इस साल जुलाई तक अमेरिका ने जामनगर रिफाइनरी से 38 फीसदी ब्लेंडिंग कंपोनेंट, 4% जेट ईंधन और 2 फीसदी पेट्रोल का आयात किया। इसके अलावा अमेरिका गैसोलीन हाई-स्पीड डीजल, विमानन टरबाइन ईंधन, एलपीजी, नेफ्था, हल्का डीजल तेल, बिटुमेन और पेट्रोलियम जेली खरीदता है।

यूरोप ने यूक्रेन की मदद कम की, रूस से तेल अधिक खरीदा

सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के मुताबिक  रूस ने 2022 में यूक्रेन पर हमला किया था। तीन साल बाद भी यूरोपीय संघ ने रूस से 21.9 बिलियन यूरो का जीवाश्म ईंधन आयात किया। यह रकम यूक्रेन को भेजी जाने वाली वित्तीय सहायता से अधिक है। पिछले साल यूक्रेन को 18.7 बिलियन यूरो की वित्तीय सहायता दी गई थी।

 

रूसी तेल के सबसे बड़े खरीदारों में चीन (78 अरब यूरो), भारत (49 अरब यूरो) और तुर्की (34 अरब यूरो) हैं। आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि यूरोपीय संघ ने यूक्रेन को वित्तीय मदद से कहीं अधिक रूसी तेल खरीदा है। अगर अमेरिका के शब्दों में कहें तो यूरोपीय संघ रूस की युद्ध मशीन को फंडिंग कर रहा है।

 

CREA की रिपोर्ट के मुताबिक यूक्रेन के साथ युद्ध शुरू होने के बाद से अब तक रूस ने जीवाश्म ईंधन के निर्यात से 935 अरब यूरो का धन कमाया है। इसमें से 213 अरब यूरो की कमाई उसे यूरोपीय संघ के देशों से हुई।

 

यह भी पढ़ें: पुतिन से किम जोंग तक आएंगे; 3 सितंबर को चीन में क्या होने वाला है?

कैसे हुआ था रूसी तेल का मूल्य निर्धारण?

फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद 5 दिसंबर 2022 को रूसी कच्चे तेल पर अमेरिका, यूरोपीय संघ, यूनाइटेड किंगडम और कनाडा ने प्रतिबंधों का ऐलान किया। में वैश्विक महंगाई रोकने उद्देश्य से अमेरिका ने मूल्य निर्धारत करने की पहल की। उसने जी-7 देशों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ के साथ बैठक की।

 

इसके बाद दिसंबर 2022 में जी-7 देशों ने रूसी तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल मूल्य सीमा तय की। अमेरिका ने भारत को इस कीमत पर रूसी तेल खरीदने को प्रोत्सहित किया। उसका तर्क था कि इससे रूस को तेल से होने वाली आय कम होगी और वैश्विक महंगाई रोकने में मदद मिलेगी। 

 

 

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap