logo

ट्रेंडिंग:

रोहिंग्या बच्चों को कैसे मिला पढ़ाई का हक? कानून समझिए

दिल्ली में रोहिंग्या शरणार्थियों के जिन बच्चों को स्कूलों में एडमिशन मिला है, उनके पास शरणार्थी दर्जा है। शरणार्थी प्रमाण पत्र UNHCR की ओर से जारी किया जाता है। पढ़ें रिपोर्ट।

Rohingya

दिल्ली में कुछ रोहिंग्या शरणार्थियों के पास UNHRC कार्ड है। (प्रतीकात्मक तस्वीर, Photo Credit: PTI)

भारत में नागरिक हों या शरणार्थी, किसी भी बच्चे को शिक्षा के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। जब तक बच्चे भारतीय जमीन पर हैं, भले ही उनके मां-बाप अवैध घुसपैठिए की तरह आए हों, तब भी उनके शिक्षा के बुनियादी अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। यह कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में रोहिंग्या शरणार्थियों के बच्चों के लिए सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ने वाले वकील अशोक अग्रवाल का। 

दिल्ली के कुछ सरकारी स्कूलों में रोहिंग्या शरणार्थियों के बच्चों को एडमिशन मिला है। आम आदमी पार्टी (AAP) नेताओं ने कहा है कि दिल्ली में रोहिंग्याओं के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है लेकिन यही भारतीय जनता पार्टी की सरकार, रोहिंग्याओं को भारत से बाहर निकालने की सियासत करती थी।

AAP विधायक संजीव झा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, 'सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि किसी भी रोहिंग्या बच्चे का स्कूल में दाखिला पात्रता की जांच के बाद ही दिया जाए। ऐसे में अगर इन बच्चों को सरकारी स्कूलों में एडमिशन मिला है तो इसका अर्थ है कि बीजेपी सरकार ने इन्हें पात्र मान लिया है।'


यह भी पढ़ें: अमेरिका में कैसे मिलता है शरणार्थी दर्जा? ट्रंप की क्यों है इनपर नजर

सुप्रीम का आदेश क्या था?
12 फरवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शिक्षा में किसी भी बच्चे के साथ भेदभाव नहीं होगा। रोहिंग्या शरणार्थी बच्चों को दिल्ली में सार्वजनिक स्कूलों और अस्पतालों में प्रवेश देने की मांग वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई थी। याचिका रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव नाम की एक NGO ने दायर की थी। याचिका में मांग की गई थी कि दिल्ली में रहने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की बुनियादी मांग को पूरा किया जाए।


सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से क्या पूछा था?
सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में रोहिंग्या परिवारों के ठिकाने और उनकी स्थिति के संबंध में जानकारी मांगी थी। जस्टिस सूर्य कांत और एन कोटिस्वर सिंह की बेंच ने यह पूछा था कि ये परिवार कहां रह रहे हैं, किसके घर में हैं, और उनके विवरण क्या हैं। NGO के वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने बताया कि रोहिंग्या शरणार्थियों के पास UNHCR की ओर से जारी शरणार्थी कार्ड हैं। रोहिंग्या शरणार्थी शाहीन बाग, कालिंदी कुंज और खजूरी खास इलाकों में रहते हैं। शाहीन बाग और कालिंदी कुंज में वे झुग्गियों में, जबकि खजूरी खास में किराए के मकानों में रह रहे हैं। उन्होंने कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा था कि आधार कार्ड न होने की वजह से शरणार्थियों को सार्वजनिक स्कूलों और अस्पतालों में प्रवेश नहीं मिल रहा। चूंकि वे UNHCR कार्डधारी शरणार्थी हैं, उनके पास आधार कार्ड नहीं हो सकता।


क्या कानूनी तौर पर गलत है रोहिंग्या बच्चों का एडमिशन?
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने कहा, 'भारत में शिक्षा का अधिकार यहां के नागरिकों और विदेशी नागरिकों, दोनों को है। यह अधिकार बच्चों को 'शिक्षा का अधिकार नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009' से मिलता है। यह अधिनियम 1 अप्रैल 2010 से लागू हुआ है। भारतीय संविधान में मूल रूप से, शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में शामिल नहीं किया गया था। राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अनुच्छेद 45 में कहा गया था कि राज्य 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का प्रयास करेगा, लेकिन यह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं था।

यह भी पढ़ें: वक्फ कानून को सुप्रीम कोर्ट रद्द कर सकता है या नहीं?

अशोक अग्रवाल ने कहा, 'भारतीय संविधान में इस अनुच्छेद को अनिवार्य करने के लिए संवैधानिक संशोधन भी हुए। अनुच्छेद 21A 86वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से 10 दिसंबर 2002 को संविधान में जोड़ा गया। यह 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित करता है। रोहिंग्या शरणार्थियों के बच्चों के लिए भी यह अधिकार, उनके बुनियादी हक की तरह है।' RTE एक्ट के मुताबिक किसी भी बच्चे को स्कूल में एडमिशन से वंचित नहीं किया जा सकता, चाहे उनके पास दस्तावेज हों या न हों।

शरणार्थी दर्जा फिर भी चुनौती क्या है?
रोहिंग्या शरणार्थियों को UNHCR की ओर से शरणार्थी कार्ड जारी किए जाते हैं। भारत उनकी शरणार्थी स्थिति को मान्यता देता है। हालांकि, भारत 1951 की शरणार्थी संधि का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, इसलिए इन कार्डों का कानूनी दर्जा सीमित है।

क्यों रोहिंग्या बच्चों के एडमिशन में आती हैं दिक्कतें?
स्कूल प्रशासन बच्चों से आधार कार्ड मांगते हैं। रोहिंग्या शरणार्थियों के पास आधार कार्ड नहीं होता है। यही वजह है कि शिक्षा और अन्य सेवाओं तक उनकी पहुंच नहीं होती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कुछ जगहों पर बच्चों को स्कूलों में एडमिशन मिलने शुरू हुए हैं।

दिल्ली के किन स्कूलों में पढ़ रहे हैं रोहिंग्या बच्चे?
द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर पूर्वी दिल्ली में सर्वोदय बाल विद्यालय और सर्वोदय कन्या विद्यालय में  रोहिंग्या बच्चों को एडमिशन मिला है। 19 रोहिंग्या शरणार्थियों के अभिभावकों ने इन स्कूलों में एडमिशन के लिए अर्जी दी थी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इन्हें एडमिशन मिला। 

5 अप्रैल 2025 को हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया कि रोहिंग्या परिवारों के 19 बच्चे पहली बार सरकारी स्कूल में पढ़ने गए। सुप्रीम कोर्ट ने 12 फरवरी के अपने फैसले में यह भी कहा था कि रोहिंग्या बच्चों को पहले सरकारी स्कूलों में आवेदन करना चाहिए, अगर उन्हें पात्रता के बाद भी स्कूलों में एडमिशन से वंचित किया जाता है तो वे दिल्ली हाई कोर्ट का रुख कर सकते हैं।  

यह भी पढ़ें: वक्फ कानून मानने से अगर राज्य इनकार करें तो क्या होगा? समझिए


बच्चों की पढ़ाई पर भी हो रही सिसायत

आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई को लेकर सियासत हो रही है। रोहिंग्या बच्चों के शिक्षा के अधिकारों के लिए काम करने वाले वकील अशोक अग्रवाल ने कहा, 'शरणार्थी बच्चे हों या घुसपैठियों के साथ आए बच्चे। शिक्षा हर बच्चे का बुनियादी हक है। अगर अवैध शरणार्थियों के बच्चे भी भारतीय जमीन पर हैं तो तब उन्हें शिक्षा का अधिकार है, जब तक कि उनके मां-बाप को डिपोर्ट न कर दिया जाए। इस पर हो रही सियासत गलत है।'

Related Topic:#Delhi Government

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap