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5 दशकों का आंदोलन, संसद में बवाल; तेलंगाना के अलग राज्य बनने की कहानी

2 जून 2014 को तेलंगाना भारत का 29वां राज्य बना था। अलग तेलंगाना की मांग को लेकर कई दशकों तक आंदोलन चला। इस दौरान सैकड़ों मौतें भी हुईं। संसद में भी जबरदस्त बवाल हुआ।

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प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)

आजादी के बाद 1948 में जब निजाम की रियासत का अंत हुआ तो हैदराबाद नया राज्य बना। हालांकि, 1956 में राज्य पुनर्गठन कानून के बाद जब आंध्र प्रदेश बना, तो इसमें हैदराबाद का हिस्सा रहे तेलंगाना को भी मिला दिया। यह तब हुआ, जब पुनर्गठन आयोग ने आंध्र और तेलंगाना को अलग-अलग राज्य बनाने की सिफारिश की थी। भाषा के आधार पर बनने वाला आंध्र प्रदेश पहला राज्य था। तेलंगाना में रहने वाले अपने लिए अलग राज्य की मांग कर रहे थे लेकिन इसे दरकिनार कर दिया गया। लंबे वक्त चले आंदोलन और विरोध प्रदर्शनों के बाद 2 जून 2014 को तेलंगाना को 29वां राज्य बनाया गया। आज तेलंगाना को 11 साल हो गए हैं, लेकिन इसके बनने के पीछे एक लंबा इतिहास रहा है।


तेलंगाना का नाम 'तेलुगु अंगाना' शब्द से बना है, जिसका मतलब होता है- ऐसी जगह जहां तेलुगु बोली जाती है। निजाम की रियासत में तेलंगाना का इस्तेमाल इसलिए किया जाता था, ताकि इसे मराठी भाषी इलाकों से अलग किया जा सके। अलग तेलंगाना की मांग को लेकर 1940 के दशक में कम्युनिस्टों ने आंदोलन शुरू किया। हालांकि, यह आंदोलन जमींदारी के खिलाफ था। छह साल में इस आंदोलन को दबा दिया गया और तेलंगाना की मांग भी कमजोर पड़ गई।

 

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तेलंगाना और आंध्र

1947 में आजादी मिलने के बाद भाषायी आधार पर राज्यों के बंटवारे की मांग उठी। इसे लेकर 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बना। आयोग की सिफारिश के आधार पर 1956 में राज्यों का पुनर्गठन किया गया। इस आधार पर 14 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेश बने।


1 नवंबर 1956 में आंध्र प्रदेश बनाया गया। इसमें तेलंगाना को भी शामिल किया गया। आंध्र पहला राज्य था, जिसका भाषायी आधार पर गठन हुआ था।

 

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1969 का तेलंगाना आंदोलन

1969 में अलग तेलंगाना की मांग को लेकर एक नया आंदोलन शुरू हुआ। इस दौरान उस्मानिया यूनिवर्सिटी आंदोलन का केंद्र बना। इस आंदोलन में पुलिस की कार्रवाई में 300 से ज्यादा लोग मारे गए थे।


इसी दौरान एन. चेन्ना रेड्डी ने 'तेलंगाना प्रजा समिति' नाम से एक राजनीति पार्टी बनाई और उन्होंने 'जय तेलंगाना' का नारा दिया था। हालांकि बाद में उनकी पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया। इससे तेलंगाना आंदोलन को बड़ा झटका लगा। इसके बाद इंदिरा गांधी ने उन्हें आंध्र प्रदेश का मुख्यमंत्री भी बनाया। 

चंद्रशेखर राव और TRS

1990 के दशक तक के. चंद्रशेखर राव तेलुगु देशम पार्टी (TDP) का हिस्सा हुआ करते थे। 1999 के चुनावों के बाद उन्हें मंत्री बनने की उम्मीद थी लेकिन उन्हें डिप्टी स्पीकर बनाया गया। साल 2001 में चंद्रशेखर राव ने अलग तेलंगाना की मांग को लेकर तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) बनाई। 

 

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कुछ इस तरह बना तेलंगाना

2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अलग तेलंगाना बनाने का वादा किया। हालांकि, कांग्रेस सरकार ने जब इस पर कुछ ठोस कदम नहीं उठाया तो 2009 में चंद्रशेखर राव अनशन पर बैठ गए। 11 दिन तक चले अनशन के बाद तत्कालीन यूपीए सरकार ने अलग तेलंगाना बनाने का वादा किया।


2013 आते-आते तेलंगाना को लेकर बवाल बढ़ता जा रहा था। तेलंगाना में कांग्रेस पार्टी को लेकर भी नाराजगी बढ़ती जा रही थी, क्योंकि बहुत से नेता राज्य का बंटवारा नहीं चाहते थे।


यह वो वक्त था जब कांग्रेस कमजोर पड़ रही थी। आखिरकार 2013 में अलग तेलंगाना को लेकर यूपीए सरकार आंध्र प्रदेश पुनर्गठन बिल लेकर आई। फरवरी 2014 में यह बिल लोकसभा से पास हो गया। इस दौरान लोकसभा की कार्यवाही का सीधा प्रसारण बंद हो गया था। इसके दो दिन बाद 21 फरवरी 2014 को यह बिल राज्यसभा से भी पास हो गया। मार्च 2014 में राष्ट्रपति ने इस बिल पर दस्तखत किया। आखिरकार 2 जून 2014 को आंध्र से अलग होकर तेलंगाना बना।

 

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संसदीय इतिहास का वह काला दिन!

तेलंगाना के मुद्दे पर लोकसभा और राज्यसभा में जबरदस्त हंगामा हुआ। यह हंगामा इतना जबरदस्त था कि बार-बार संसद की कार्यवाही को रोकना पड़ा। हालांकि, 13 फरवरी 2014 को लोकसभा में जो कुछ हुआ, वह संसदीय इतिहास के 'काले दिन' के तौर पर दर्ज हो गया।


13 फरवरी 2014 को लोकसभा में तत्कालीन गृहमंत्री सुशील शिंदे ने जैसे ही तेलंगाना को अलग राज्य बनाने का बिल पेश किया, वैसे ही जोरदार हंगामा शुरू हो गया। तेलंगाना का विरोध करने वाले सांसदों ने बवाल कर दिया। 


इसी दौरान कांग्रेस सांसद एल राजगोपाल ने पहले तो गिलास तोड़ा और कार्यवाही बाधित करने के लिए काली मिर्च का स्प्रे छिड़क दिया। मिर्च का स्प्रे छिड़कने के बाद कई सांसदों की तबीयत बिगड़ गई। उस दिन संसद में चार एम्बुलेंस बुलाई गईं और कई सांसदों को अस्पताल में भर्ती करवाया गया।


हंगामा इतना बढ़ा कि बाकी सांसद भी इसमें शामिल हो गए। टीडीपी सांसद वेणुगोपाल पर चाकू निकालने का आरोप लगा। हालांकि, उन्होंने इन आरोपों का खंडन कर दिया। इस घटना को विदेशी मीडिया ने भी 'संसदीय इतिहास का काला दिन' बताया था।

 

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आज भी अनसुलझे हैं कई मुद्दे!

आंध्र प्रदेश के बंटवारे के बाद 2 जून 2014 को तेलंगाना अस्तित्व में आया था। अलग होने के दस साल बाद भी दोनों राज्यों के बीच कई मुद्दों को लेकर सहमति नहीं बन सकी है।


आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच अब भी संपत्तियों का बंटवारा, राज्य सरकारों के संस्थान, बिजली बिल बकाया, कर्मचारियों का उनके मूल राज्य में ट्रांसफर करने जैसे मुद्दे अनसुलझे हैं। न्यूज एजेंसी PTI ने पिछले साल सूत्रों के हवाले से बताया था कि आंध्र प्रदेश पुनर्गठन कानून की 9वीं और 10वीं अनुसूची में लिखित इंस्टीट्यूशन और कॉर्पोरेशन का बंटवारा पूरा नहीं हुआ है, क्योंकि अब तक दोनों राज्यों के बीच इसे लेकर एक राय नहीं बन सकी है।


दोनों राज्यों के बीच बिजली बिल का बकाया भी बड़ा मुद्दा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, तेलंगाना पर आंध्र प्रदेश का 7 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का बकाया है। तेलंगाना की ओर से बकाया नहीं चुकाने के कारण आंध्र प्रदेश पर बोझ बढ़ रहा है। हर साल आंध्र प्रदेश सरकार बिजली पैदा करने के लिए बैंकों को 11% ब्याज चुकाती है।


आंध्र सरकार दावा करती है कि बंटवारा करने के साथ-साथ उसके साथ नाइंसाफी भी कई गई। आंध्र दावा करता है कि एक लाख 30 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की देनदारी उस पर डाल दी गई। इसके अलावा 24 हजार करोड़ रुपये का कर्ज भी आंध्र पर डाल दिया गया। दावा है कि आंध्र में 58% आबादी होने के बावजूद रेवेन्यू का 48% हिस्सा ही दिया गया।

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