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हाथी के अटैक के लिए इंसान जिम्मेदार! सरकारी आंकड़े दिमाग हिला देंगे

पिछले पांच वर्षों में मानव-हाथी संघर्ष के कारण 2,853 लोगों की मौत हुई है और 2023 में मौतों की संख्या पांच साल के उच्चतम स्तर 628 पर पहुंच गई है।

Human-Animal Conflicts report on elephant attacks on human

हाथी-इंसान हमले, Image Credit: Pexels

डिप्रेशन, बेचैनी, गुस्सा और अकेलेपन से इंसानों की तरह हाथी भी जूझते है। ऐसे में हाथी का आतंक और इंसानों पर अटैक करने की खबरें भी लगातार सुनी होगी। दो दिन पहले ही कोयंबटूर के वेल्लिंगिरी हिल्स में एक जंगली हाथी ने मंदिर परिसर के अंदर हड़कंप मचा दिया। आस-पास की दुकानों पर हमला किया। इस घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ। हालांकि, हाल ही में मानवीय गतिविधियों में वृद्धि और जंगल से निकटता के कारण हाथी और इंसानों के बीच ऐसे हमले बहुत आम हो गए हैं।

इन हमलों पर क्या कहता है सरकारी डेटा?

राज्यसभा में केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह से एक सवाल में पूछा गया कि पिछले 5 वर्षों में मानव-हाथी संघर्ष के कारण कितनी मौते हुईं? इसके जवाब में उन्होंने बताया कि 2019 में हाथियों के कारण 587 लोगों की मौत हुई, 2020 में 471, 2021 में 557, 2022 में 610 और 2023 में 628 लोगों की मौत हुई।

कौन से राज्य में सबसे अधिक दर्ज की गई मौतें

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में मानव-हाथी संघर्ष के कारण 2,853 लोगों की मौत हुई है और 2023-24 में मौतों की संख्या पांच साल के उच्चतम स्तर 628 पर पहुंच गई है। आंकड़ों से पता चला है कि इस अवधि के दौरान ओडिशा में 624 ऐसी मौतें दर्ज की गईं, इसके बाद झारखंड में 474, पश्चिम बंगाल में 436, असम में 383, छत्तीसगढ़ में 303, तमिलनाडु में 256, कर्नाटक में 160 और केरल में 124 मौतें हुईं।

 

इंसानों पर हमला क्यों करते हैं हाथी?

हजारों सालों से लोग हाथियों के साथ सह-अस्तित्व में हैं, लेकिन सीमाएं, डेवलपमेंट एक्टिविटी, क्लाइमेट और  प्राकृतिक संसाधन बदल रहे हैं, जिससे  इंसानों और हाथियों पर दबाव पड़ रहा है। हाथी शाकाहारी होते हैं जो प्रतिदिन 150 किलोग्राम तक चारा खाते हैं और 190 लीटर तक पानी पीते हैं। उन्हें जीवित रहने के लिए पर्याप्त भोजन और पानी खोजने के लिए बड़े क्षेत्रों में यात्रा करनी पड़ती है लेकिन जिस जमीन पर वे निर्भर हैं, वहां बड़ी तेजी से लोगों का डेरा जम रहा है। 

 

गांवों, खेतों, शहरों, राजमार्गों या खनन जैसे औद्योगिक विकास उनके लिए समस्या बनने लगा है। वहीं, बाड़ और रेल की पटरियों से चोट लगने का जोखिम भी आम हो गया हैं। जिस भूमि पर वे कभी चरते थे, वह अब किसानों का घर बनता जा रहा है। पानी पीने की तलाश उन्हें ना चाहते हुए भी ग्रामीणों के संपर्क में ले आता है जो हाथी-मानव संघर्ष का मुख्य कारण होता है।

क्या कर रही भारत सरकार?

राज्यसभा में जवाब देते हुए कीर्ति वर्धन सिंह ने बताया कि वन्यजीव आवासों का प्रबंधन और देख-रेख का जिम्मा मुख्य रूप से राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों का है। हालांकि, केंद्र सरकार 'प्रोजेक्ट एलीफेंट' स्कीम के तहत वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करती है। फरवरी 2021 में मंत्रालय ने मानव-वन्यजीव संघर्ष से निपटने के लिए एक एडवाइजरी जारी की थी। इसमें इंटर-डिपार्टमेंटल एक्शन, हॉटस्पॉट की पहचान समेत रेपिड रिस्पॉन्स टीमों की स्थापना की सिफारिश की गई।  इसके अलावा पर्यावरण मंत्रालय ने फसलों को नुकसान सहित मानव-वन्यजीव संघर्षों के प्रबंधन पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दिशा-निर्देश भी जारी किए।

 

बता दें कि राज्य वन विभागों के साथ समन्वय में मंत्रालय ने 15 हाथी रेंज राज्यों में 150 हाथी गलियारों को भी मान्यता दी है और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से इन गलियारों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए आवश्यक कदम उठाने को कहा है। केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने सितंबर 2022 में सभी डिस्कॉम और ट्रांसमिशन कंपनियों को हाथियों और अन्य वन्यजीवों पर बिजली ट्रांसमिशन लाइनों और अन्य बुनियादी ढांचे के प्रभाव को कम करने के लिए भी गाइडलाइंस जारी किए है। इसके अलावा रेल दुर्घटनाओं में हाथियों की मौत को रोकने के लिए रेलवे और पर्यावरण मंत्रालयों के बीच एक स्थायी समन्वय समिति भी स्थापित की गई है।

 

 

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ये रिपोर्ट पढ़ी क्या?

हाथियों, उनके आवास और गलियारों की सुरक्षा, मानव-हाथी संघर्ष के मुद्दों को हल करने और देश में बंदी हाथियों के कल्याण के लिए केंद्र 'प्रोजेक्ट एलीफेंट' लेकर आई है। इसके तहत राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान किया जा रहा है। पिछले पांच वित्तीय वर्षों में प्रोजेक्ट टाइगर एंड एलीफेंट के तहत कितना बजट लागू हुआ? यहां देखें:

 

साल बजट अनुमान संशोधित अनुमान खर्च
2019-20 30.00 cr 33.04 cr 32.85 cr
2020-21 35.00 cr 25.00 cr 24.96 cr
2021-22 33.00 cr 32.00 cr 30.26 cr
2022-23 35.00 cr 16.36 cr 16.30 cr
2023-24* 336.80 cr 244.60 cr 243.75 cr

 

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भी 3 जून, 2022 को फसलों को होने वाले नुकसान सहित मानव-वन्यजीव संघर्षों के प्रबंधन पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसमें वन सीमांत क्षेत्रों में उन फसलों को बढ़ावा देना शामिल है जो जंगली जानवरों के लिए ठीक नहीं हैं। 

 

अब तक 14 प्रमुख हाथी राज्यों में 33 हाथी रिजर्व स्थापित किए जा चुके हैं। 29 अप्रैल, 2022 को संचालन समिति की 16वीं बैठक के दौरान मानव-हाथी संघर्ष के प्रबंधन के लिए फ्रंटलाइन कर्मचारियों के लिए एक फील्ड मैनुअल जारी किया गया। 

 

मानव-हाथी संघर्ष को कम करने और हाथियों से होने वाली संपत्ति को नुकसान के लिए स्थानीय समुदायों को मुआवजा दिया जाता है। इसमें जंगली जानवरों के हमलों से हुई मौतों के मामले में अनुग्रह राशि को 5 लाख से बढ़ाकर 10 लाख रुपये कर दिया गया है।

 

हाथियों की परेड पर केरल हाई कोर्ट की टिप्पणी

'अगर हाथियों का  इस्तेमाल किसी धर्मग्रंथ द्वारा अनिवार्य नहीं है, तो यह एक जरूरी धार्मिक प्रथा नहीं है।'29 नवंबर को केरल हाई कोर्ट ने कोचीन देवस्वोम बोर्ड की एक याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की और कहा कि जानवरों की भलाई के लिए ये निर्देश बेहद ही अहम है। दरअसल, त्रिपुनिथुरा में एक मंदिर में 15 हाथियों की परेड उत्सव बेहद ही अहम मानी जाती हैं। इसके लिए हाथियों के बीच तीन मीटर की दूरी बनाए रखने के दिशा-निर्देश का पालन करने से छूट मांगी गई थी।

 

जस्टिस ए.के. जयशंकरन नांबियार और गोपीनाथ पी. की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि ‘अगर हाथियों का इस्तेमाल किसी धर्मग्रंथ द्वारा अनिवार्य नहीं है, तो यह एक जरूरी धार्मिक प्रथा नहीं है. हम यह नहीं कह रहे हैं कि हाथी न रखें. लोगों की आस्था और धार्मिक उत्साह को बनाए रखने के लिए, हाथी रखना ठीक है, लेकिन आपको यह साबित करना होगा कि 3 मीटर से कम दूरी उचित है।'

 

जस्टिस नांबियार ने कहा, ‘हम यह मानने से इनकार करते हैं कि हिंदू धर्म इतना नाजुक है कि एक हाथी की उपस्थिति के बिना यह ढह जाएगा.’ वहीं जस्टिस गोपीनाथ ने कहा, ‘जब तक आप यह नहीं दिखाते कि हाथियों के बिना धर्म का अस्तित्व खत्म हो जाता है, तब तक जरूरी धार्मिक प्रथा का कोई सवाल ही नहीं उठता।'

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