हाल ही में जारी हुई एक रिपोर्ट बताया गया है कि, साल 2023-2024 में भारत के शहरी क्षेत्रों में 89 मिलियन यानी 8.9 करोड़ से ज्यादा महिलाएं लेबर मार्किट यानी वे लोग जो काम करना चाहते हैं, इससे बाहर रहीं। हालांकि, पिछले छह सालों में महिला रोजगार में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है लेकिन यह आंकड़ा अब भी कम है। यह रिपोर्ट, जो ‘इंडियन जेंडर एम्प्लॉयमेंट पैरेडॉक्स’ नाम से प्रकाशित हुई है, जिसे ग्रेट लेक्स इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, चेन्नई द्वारा तैयार किया गया है।
महिलाओं की प्रतिभा का सही उपयोग न होना
रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में करीब 1.9 करोड़ शिक्षित शहरी महिलाएं अपनी नीजि पसंद या सामाजिक बंधनों की वजह से काम नहीं कर पा रही हैं। जिससे पढ़ाई पर किया गया निवेश बेकार जा रहा है। समाज में आज भी महिलाओं के लिए कुछ रूढ़ियां बनी हुई हैं, जो उन्हें नौकरी करने से रोकती हैं।
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महिलाओं को काम से दूर रखने वाले कुछ बड़े वजहों में परिवार और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी, काम के विकल्पों की कमी और दफ्तर आने-जाने की मुश्किलें जैसी परेशानियां हैं। इनके चलते, कई अच्छी पढ़ी लिखी महिलाएं भी आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं हो पाते हैं।
पुरुषों की तुलना में महिलाओं की बेरोजगारी दर
हालांकि, रिपोर्ट में एक चौंकाने वाली बात यह भी सामने आई है कि भारत के शहरी इलाके में युवा पुरुषों की बेरोजगारी दर (10%) महिलाओं (7.5%) से ज्यादा है। 20 से 24 वर्ष की साल के पुरुषों को रोजगार मिलने में महिलाओं की तुलना में ज्यादा मुश्किल हो रही है।
शिक्षा और आय में असमानता
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 62% मामलों में पति की आय पत्नी से अधिक होती है, जबकि दोनों की शिक्षा समान होती है। 41% घरों में महिलाएं घर की पूरी जिम्मेदारी उठाती हैं, जबकि सिर्फ 2% पुरुष इस भूमिका को निभाते हैं।
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वहीं शहरी इलाकों में कई महिलाएं घर से काम करने (रिमोट वर्क) का विकल्प अपनाती हैं। रिपोर्ट में पाया गया कि 86% महिलाएं अपने काम के समय में से तीन घंटे तक बच्चों की देखभाल में लगाती हैं। सिर्फ 44% महिलाओं को ऐसा लगता है कि उन्हें अच्छा सहयोग मिलता है।