• NEW DELHI 28 Aug 2025, (अपडेटेड 28 Aug 2025, 10:54 PM IST)
देश के ग्रामीण इलाकों में अधिकांश बच्चे सरकारी शिक्षा व्यवस्था पर निर्भर है। शहरी इलाकों में तस्वीर अलग है। यहां निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या अधिक है। आइये जानते हैं सीएमएस एजुकेशन सर्वेक्षण 2025 से जुड़ी अहम बातें।
सांकेतिक तस्वीर। (AI Generated Image)
पंजाब और हरियाणा की राजधानी चंडीगढ़ में बच्चों को पढ़ाना आसान नहीं है। यहां माता-पिता एक बच्चे की पढ़ाई पर सालाना औसतन 49,711 रुपये खर्च करते हैं। हरियाणा में यही खर्च 19,951 रुपये है। अगर पड़ोसी राज्य पंजाब की बात करें तो यहां प्रति छात्र औसतन 22,692 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। पढ़ाई पर सबसे कम व्यय लक्षद्वीप में सिर्फ 1,801 रुपये है।
बिहार में माता-पिता अपने हर बच्चे पर 5,656 रुपये खर्च करते हैं। व्यापक मॉड्यूलर सर्वेक्षण-2025 की रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में 18,305, कर्नाटक में 18,756, मणिपुर में 23,502, तमिलनाडु में 21,526 और उत्तर प्रदेश में 11,188 रुपये औसतन प्रति छात्र पढ़ाई पर खर्च होता है। देश की राजधानी दिल्ली में यह खर्च 19,068 रुपये है।
सभी प्रकार के स्कूल पर प्रति छात्र खर्च का ब्योरा।
सर्वे रिपोर्ट यह भी बताती है कि देशभर में स्कूली शिक्षा पर प्रति छात्र औसत व्यय सरकारी स्कूल की तुलना में गैर-सरकारी स्कूलों में सात गुना से अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों में एक छात्र पर औसतन 2,639 और गैर-सरकारी स्कूलों में 19,554 रुपये खर्च होते हैं। अगर शहर की बात करें तो वहां सरकारी स्कूल में प्रति छात्र 4,128 और गैर-सरकारी स्कूलों में 31,782 रुपये अनुमानित खर्च होता है।
अगर सरकारी स्कूलों की पढ़ाई पर होने वाले खर्च की बात करें तो सबसे अधिक प्रति छात्र 8,487 का खर्च अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में आता है। इसके अलावा केरल में 7,038, सिक्किम में 6,479, जम्मू-कश्मीर में 6,339 और हिमाचल प्रदेश में 6,009 रुपये व्यय करना पड़ता है। बिहार में भी सरकारी स्कूल पर पढ़ने वाले एक बच्चे की पढ़ाई पर 2,481 रुपये का औसतन खर्च आता है। यूपी के सरकारी स्कूलों पर पढ़ने वाले हर बच्चे पर 2,325 रुपये खर्च करने पड़ते हैं।
सरकारी स्कूलों में प्रति छात्र खर्च का ब्योरा राज्यवार।
क्या प्राइवेट स्कूलों में बच्चे पढ़ा पाएगा आम आदमी?
प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ा पाना आम आदमी के बस की बात नहीं है। अरुणालचल प्रदेश में प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले प्रति छात्र खर्च 63,197 रुपये है। आंध्र प्रदेश में यह आंकड़ा 32,612 रुपये है।
निजी स्कूलों में प्रति छात्र खर्च का ब्योरा राज्यवार।
बिहार में 20,734, छत्तीसगढ़ में 24,690, दिल्ली में 46,716, गुजरात में 38,622, हरियाणा में 39,015, हिमाचल प्रदेश में 39,145, पंजाब में 43,915, यूपी में 8,988, चंडीगढ़ में 79,006 हजार रुपये प्रति बच्चा खर्च करना पड़ता है।
सरकारी स्कूलों में कहां अधिक बच्चे पढ़ते?
सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक देश के ग्रामीण इलाकों में करीब 66 फीसदी बच्चों का नाम सरकारी स्कूलों में लिखा है। लगभग 33.9 फीसदी बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं। शहरी क्षेत्र में यह आंकड़ा उलट हो जाता है। मसल शहरों में लगभग 30.1 फीसदी बच्चे ही सरकार स्कूलों में पढ़ते हैं। 70 फीसदी छात्रों का दाखिला निजी स्कूलों में है।
माता-पिता पर सबसे अधिक पाठ्यक्रम शुल्क का बोझ
देशभर में लोगों को अपने बच्चों की पढ़ाई में सबसे अधिक बोझ पाठ्यक्रम शुल्क के तौर पर चुकाना पड़ रहा है। सर्वे के मुताबिक गैर-सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 95.7 फीसदी छात्रों ने पाठ्यक्रम शुल्क का भुगतान किया है। सरकारी स्कूल में यह आंकड़ा सिर्फ 26.7 फीसदी है। देशभर में माता-पिता ने औसतन प्रति छात्र पाठ्यक्रम शुल्क के तौर पर 7,111 रुपये का भुगतान किया।
अगर बात सिर्फ शहरों की करें तो यहां पाठ्यक्रम शुल्क के तौर पर औसतन 15,143 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह खर्च 3,979 रुपये है। पाठ्यक्रम शुल्क के बाद माता-पिता को सबसे अधिक बोझ स्टेशनरी का उठाना पड़ता है। स्टेशनरी पर प्रति छात्र औसतन 2,002 रुपये खर्च करने पड़े हैं।
व्यापक मॉड्यूलर सर्वेक्षण 2025 के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में पढ़ने वाले लगभग 25.5% छात्र निजी कोचिंग का सहारा ले रहे हैं। वहीं शहरी क्षेत्र में यह आंकड़ा बढ़कर 30.7% फीसदी हो गया है।
देशभर में कोचिंग पर माता-पिता प्रति छात्र औसतन 2,409 रुपये खर्च करते हैं। देशभर के लगभग 95 फीसदी छात्रों ने बताा कि उनकी पढ़ाई का बोझ परिवार के लोग उठाते हैं। सिर्फ 1.2 फीसदी छात्रों ने बताया कि उनकी पढ़ाई का पहला जरिया सरकारी वजीफा है।
कैसे तैयार की गई सर्वे रिपोर्ट?
यह रिपोर्ट अप्रैल से जून- 2025 के दौरान आयोजित व्यापक मॉड्यूलर सर्वेक्षण पर तैयार की गई। सर्वे कुल 4,366 गांव और शहरी ब्लॉक में आयोजित किया गया। इसमें कुल कुल 52,085 परिवार और 2,21,617 व्यक्तियों ने हिस्सा लिया।